मां सिद्धिदात्री का स्वरूपमां सिद्धिदात्री का स्वरूप

माँ दुर्गा का नवाँ अवतार है- माँ सिद्धीदात्री:- हिंदू सनातन धर्म में मां दुर्गा की उपासना नवरात्रों में लोग श्रद्धा पूर्वक करते हैं। नवरात्र मां दुर्गा की आराधना का सबसे बड़ा महोत्सव है। जिसे हिंदू लोग भारत में ही नहीं अपितु देश विदेशों में भी बहुत ही धूमधाम और प्रश्न होकर मनाते हैं। दुर्गा नवमी नवरात्रों का अंतिम दिन रहता है। इस दिन भक्तगण मां दुर्गा की उपासना सिद्धीदात्री के रूप में विशेष रूप से करते हैं।

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इस वर्ष दुर्गा नवमी अर्थात् महानवमी 24 अक्टूबर शनिवार को प्रारंभ हो रही है जो 25 अक्टूबर रविवार को समाप्त होगी। भक्तगण 24 अक्टूबर शनिवार को भी दुर्गा नवमी का उपवास व्रत इत्यादि रखकर उसका पारायण कर रहे हैं। तथा 25 अक्टूबर रविवार को भी कुछ भक्तगण इसका आयोजन कर रहे हैं

मां सिद्धिदात्री का माहत्त्म्य

दुर्गा नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा उपासना विशेष रूप से भक्त करते हैं। मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना करने से भक्तगणों को परम सुख की प्राप्ति तथा शांति की प्राप्ति होती है। इस दिन भक्तगण माता को प्रसन्न करने के लिए व्रत का पारायण करते हैं। तथा मंत्र कवच दुर्गा सप्तशती इत्यादि का पाठ कर माता को प्रसन्न करते हैं। माता सिद्धिदात्री की ध्यान पूजा अर्चना करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं सिद्ध होती है। सिद्धिदात्री को महालक्ष्मी का ही स्वरूप माना जाता है अतः लोग दुर्गा नवमी के दिन माता की पूजा अर्चना कर मां से धन-धान्य वैभव आदि का आशीर्वाद मांगते हैं।

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मां सिद्धिदात्री का स्वरूप

माता इस स्वरूप में अर्थात सिद्धिदात्री के स्वरूप में कमल के पुष्प पर विराजमान होती है माँ सिद्धीदात्री का वाहन सिंह होता है। माता अपनी चारों भुजाओं में गदा, चक्र, कमल का पुष्प एवं शंख धारण किए हुए होती है। इस प्रकार का अलौकिक दिव्य स्वरूप माँ सिद्धिदात्री का होता है जो कि सब को आलोकित करता  है। यह भी पढ़े- मां दुर्गा का छठा अवतार है- माँ कात्यायनी

मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि एवं कन्या पूजन

दुर्गा नवमी को भक्तगण ब्रह्म मुहूर्त में ही उठकर शुद्ध स्नान आदि कर घर को साफ स्वच्छ कर घर के प्रांगण में रंगोली आदि का निर्माण करने के उपरांत मां दुर्गा की पूजा अर्चना के लिए तैयार होते हैं। मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना दुर्गा नवमी के दिन भक्तगण तिल आदि का भोग लगाकर करते हैं। माता को सुहाग की सारी वस्तुएं समर्पित करते हैं शुद्ध देसी घी के दीपक जला कर, धूप दीपक, कपूर, कुमकुम, रोली अनेक प्रकार के भोग मां को लगाए जाते हैं।

माँ सिद्धीदात्री पूजा अर्चना करने पर मां सिद्धिदात्री प्रसन्न होती है और भक्तजनों की मनोकामना पूर्ण करती है। तदोपरांत भक्तगण कन्या पूजन करते हैं सभी कन्याओं को उचित आसन पर बिठाकर दुर्गा के स्वरूप का आवाहन करते हैं और उनको भोजन और उपहार देकर संतुष्ट करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह भी पढ़े- माँ दुर्गा का पांचवाँ अवतार। संतान सुख और वैभव देती है- माँ स्कंदमाता

माँ सिद्धीदात्री का ध्यान

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम।

कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम॥

स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम दुर्गा त्रिनेत्राम।

शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम॥

पटाम्बर,परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम॥

प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम।

कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम॥

माँ सिद्धीदात्री का स्तोत्र पाठ

कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।

स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोस्तुते॥

पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।

नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥

परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।

परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।

विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।

भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।

मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

दुर्गा नवमी में हवन का मुहूर्त

इस बार दुर्गा नवमी 24 अक्टूबर शनिवार को 11:27 से प्रारंभ हो रही है और 25 अक्टूबर सुबह 11:14 तक रहेगी अतः शास्त्र अनुरूप हवन 25 अक्टूबर रविवार को किया जा सकता है।

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।। जय माता दी।।

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