कपिल मुनिकपिल मुनि

कपिल मुनि (सांख्य शास्त्र प्रणेता) | Kapil Muni (Sanakhya shastr)– आचार्य कपिल मुनि प्राचीन भारत के प्रभावशाली मुनि थें , इन्हें ‘सांख्य शास्त्र ‘ के प्रवर्तक के रूप में माना जाता है। ‘कपिलस्मृति ‘ उनका धर्म शास्त्र है। इन्होंने संसार को स्वाभाविक गति से उत्पन्न मानकर संसार को किसी अतिरिक्त प्राकृतिक कर्ता का निषेध किया।उनका यह कहना था कि सुख दुःख प्राकृतिक देन है। तथा पुरुष ज्ञान में बद्ध है। अज्ञान का नाश होने पर पुरुष और प्राकृतिक अपने अपने स्थान पर स्थित हो जाते हैं अज्ञान जानने के लिए ज्ञान की आवश्यकता है। कपिल ने यह जो उपदेश दिया इस पर विवाद और शोध होता रहा है।

‘तत्वसमाससूत्र’ को उसके टीकाकार कपिल द्वारा रचित मानते हैं, सूत्र छोटे और सरल हैं। इसलिए मैक्समूलर ने भी उन्हें बहुत प्राचीन मुनि बताया है

8वीं शताब्दी के जैन ग्रन्थ ‘भगवदज्जुकीयम्’ में सांख्य का उल्लेख करते हुए कहा गया है –

अष्टौ प्रकृतयः, षोडश विकाराः, आत्मा, पंचावयवाः, त्रैगुण्यम, मनः, संचर, प्रतिसंचरश्च,

( आठ प्रकृतियाँ, सोलह विकार, आत्मा, पाँच अवयव, तीन, गुण, मन, सृष्टि और प्रलय) ये सांख्यशास्त्र के विषय हैं।

‘तत्वसमाससूत्र’ में भी ऐसा ही पाठ मिलता है। साथ ही तत्वसमाससूत्र के टीकाकार भावागणेश कहते हैं कि उन्होंने टीका लिखते समय पंचशिख लिखित टीका से सहायता ली है।

कवि परिचय

  भारत प्राचीन काल से ही ऋषि  मुनियों की जन्मस्थली रही है । यहाँ अनेक महान ऋषि मुनियों ने जन्म लिया उनमें से ही एक महान ऋषि हुए कपिल मुनि जिन्हें आज हम सांख्यदर्शन के प्रणेता के रूप में जानते हैं कपिल मुनि के जीवन काल से जुड़ी कुछ विशिष्ट बातें –

जीवन परिचय

 कपिल मुनि भारत के सर्वश्रेष्ठ मुनियों में से एक माने जाते हैं इन्हें सांख्य शास्त्र यानि तत्व पर आधारित ज्ञान के प्रवर्तक के रूप में भी जाना जाता है इनके द्वारा रचित सांख्य दर्शन का प्रभाव अन्य दर्शनों पर भी पड़ा है।इनके जन्म काल और जन्म स्थान के विषय में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि यह किस काल में पैदा हुए होंगे | पुराणों और महाभारत में इनके विषय में  उल्लेख मिलता है यह { महर्षि कपिल} अग्नि के अवतार तथा ब्रह्म के मानस पुत्र माने गए हैं और “श्रीमद्भागवत गीता” में कपिल मुनि भगवान विष्णु के पंचम अवतार माने गए हैं | इनके पिता कर्दम ऋषि और माता देवहूति मानें गए हैं।यह वही कपिल मुनि हैं जिन्होंने सांख्य सूत्र नामक ग्रंथ की रचना की है जिसमें उन्होंने तीन प्रमाण और 25 तत्व माने हैं | इसमें इन्होंने प्रकृति पुरुष को प्रधान तत्व माना है और प्रकृति को त्रिगुणात्मक माना है सत्वगुण, रजस और तमस्, सांख्य दर्शन में 25 तत्व माने गए हैं 1. मूल प्रकृति 2.महत् 3.अहंकार, पांच कर्मेन्द्रियां पांच ज्ञानेन्द्रियाँ पांच महाभूत पांच तनमात्रायें, और पुरुष, मन।

इनके ग्रंथ सांख्य सूत्र का प्रमुख उद्देश्य तत्व ज्ञान के द्वारा मोक्षप्राप्ति करना है। कपिल को आदि सिद्धि और सिद्ध कहा जाता है। इनके विषय में श्री कृष्ण ने गीता के {10.26} में यह कहा है —

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षिणां च नारदः|

गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिल मुनि || {10.26}

अर्थात में समस्त वृक्षों में अश्वत्थ { पीपल} हूं और देवर्षियों में नारद हूं, मैं गन्धवों में चित्ररथ और सिद्ध पुरूषों में कपिल मुनि हूं।

कपिल मुनि ने ही सर्वप्रथम ध्यान और तपस्या का मार्ग बताया था उनसे पहले कर्म ही एक मार्ग था और ज्ञान केवल चर्चा तक ही सीमित था। ज्ञान को साधना का रूप देकर कपिल मुनि ने त्याग तपस्या और समाधि को भारतीय संस्कृति में पहली बार प्रतिष्ठित किया बाद में इन्होंने अपनी माता को तत्वज्ञान का ज्ञान दिया जिसका वर्णन हमें श्रीमद्भागवत के तीसरे स्कंध मे मिलता है ।

एतन्मे जन्म लोके अस्मिन मुमुक्षूणां दुराशयायात्। 

प्रसंख्यानाय तत्वानां संमतायात्मदर्शने॥

अत: इनके जन्म काल के विषय में अभी भी स्पष्ट नहीं है कि वो कहाँ और कब पैदा हुए, पुराणों में यह उल्लेख मिलता है कि प्रत्येक कल्प के आदि में कपिल जन्म लेते हैं  कपिलवस्तु जहां बुद्ध पैदा हुए थे यह कपिल मुनि के नाम पर बसा नगर था, और सगर के पुत्र सागर के किनारे कपिल मुनि को जहाँ तपस्या करते हुए देखा था। जिस स्थान को आज हम गंगासागर के नाम से जानते हैं जहां पर गंगा और सागर का मिलन हुआ था, इससे हमें यह ज्ञात होता है कि कपिल मुनि का जन्म स्थान संभवतः कपिलवस्तु और तपस्यास्थली गंगासागर रही होगी । इससे हमें यह ज्ञात होता है कि कपिल मुनि का नाम बुद्ध से पहले प्रख्यात हो चुका था, और यदि हम कपिल मुनि के शिष्य आसुरि को और शतपथ ब्राह्मण के आसुरि को एक ही माने तो यह कह सकते हैं ब्राह्मण काल में कपिल की स्थिति रही होगी इस प्रकार 700 वर्ष पूर्व कपिल  का काल माना जा सकता है।

यह भी देखें- विद्या पर आधारित संस्कृत श्लोक

कपिल मुनि द्वारा किये गए कार्य  

कपिल मुनि द्वारा रचित ग्रन्थ सांख्य दर्शन का प्रभाव गीता में प्रतिपादित दार्शनिक पृष्ठभूमि पर पर्याप्तरूप से विद्यमान है।

सांख्यदर्शन के प्रणेता कपिल हैं, जो आदिविद्वान् कहे जाते हैं । ‘आदि- विद्वान्’ यह विशेषण ही बताता है कि कपिल सांख्य सिद्धान्त के आदि प्रणेता तो हैं ही साथ ही दर्शनशास्त्र के आदि प्रवर्तक भी हैं। सत्ययुग में ही प्रजापति कर्दम  और मनुपुत्री देवहूति द्वारा प्रादुर्भूत विष्णु के अंशावतार कपिल ने सर्वप्रथम अपनी माता देवहूति को तत्त्वज्ञान का उपदेश देकर संसार में दर्शन- शास्त्र का श्रीगणेश किया। यही कारण है कि सांख्य सबसे प्राचीन दर्शन माना जाता है । उपनिषद्, पुराण, स्मृतियाँ, रामायण महाभारत, आयुर्वेद आदि सभी में कपिलप्रणीत इस सांख्यदर्शन के सिद्धान्तों का समावेश है। भगवान् शंकराचार्य ने कपिल को वैदिक ऋषि स्वीकार किया है। श्वेताश्वतर उपनिषद में प्रत्यक्ष ही कपिल को सर्वप्रथम ज्ञानी के रूप में प्रतिष्ठित किया है —

“ऋषि प्रसूत कपिलं यस्तमग्रे ज्ञानैबिर्भात जायमानं च पश्येत्” (श्वेताश्वतर ५/२)

कपिल ने सांख्यशास्त्र का केवल फुटकर उपदेश ही दिया या इस विषय पर किसी ग्रन्थ का भी निर्माण किया, यह आज तक विवाद का ही विषय रहा है । पाश्चात्य इतिहास लेखकों ने ( जिनकी आन्तरिक भावना को भारतीय साहित्य के प्रति हम शुद्ध तथा न्यायपूर्ण नहीं समझते ) तथा उनका अन्धानु- सरण करने वाले कुछ भारतीय लेखकों ने भी कपिल को एक काल्पनिक व्यक्ति कहने की धृष्टता की है । किन्तु श्री उदयवीर शास्त्री आदि लेखकों ने प्रबल प्रमाणों द्वारा सिद्ध किया है कि “कपिल एक वास्तविक सांख्य-प्रणेता मुनि थे ।.. वर्तमान सांख्य सूत्र उन्हीं की रचना है और वही षष्टितन्त्र नाम से विख्यात था”। कुछ लोगों ने केवल तत्त्वसमास में संकलित २४ सूत्रों को ही कपिल प्रणीत माना है।

सांख्य दर्शन का प्रभाव गीता में प्रतिपादित दार्शनिक पृष्ठभूमि पर पर्याप्तरूप से विद्यमान है बौद्धों का प्रकृतिपरक नीतिवाद भी इसी पृष्ठभूमि की ओर संकेत करता है महाभारत के एक प्राचीन श्लोक में ज्ञानवाची संख्या शब्द का एक सुन्दर संकेत पाया जाता है।

 संख्या प्रकुर्वते चैव प्रकृतिं च प्रचक्षते।

तत्वानि च चतुर्विंशत्  तेन सांख्याः प्रकीर्तिताः॥

अर्थात जो प्रकृति का विवेचन करते हैं, चौबीस तत्वों का निरुपण करते हैं, और जो संख्या अर्थात ज्ञान का, उपदेश सांख्यशास्त्र के प्रवर्तक है करते हैं वे सांख्यशास्त्र के प्रवर्तक हैं।

इसी प्रकार ‘अर्थशास्त्र’ में न्याय,वैशेषिक आदि दर्शनों का, उल्लेख न करके

“सांख्य योगो लोकायत चेत्यान्वीक्षिकी”(1/2)

यहाँ सांख्य के वर्णन से उसकी आपेक्षिक प्राचीनता ही सिद्ध होती है।

( देखिए सांख्यदर्शन का इतिहास – ले० श्री उदयवीर शास्त्री)

कपिल मुनि एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे उन्होंने अपने काल के समाज की सेवा अथवा उद्धार के लिए, और लोक मर्यादाओं को स्थापित करने के लिए महान प्रयत्न किया । (पृष्ठ संख्या ४२ आचार्य उदयवीर शास्त्री, सांख्य दर्शन का इतिहास)

कपिल रचित ग्रन्थ ‘षष्टितन्त्र’ है यह ग्रन्थ कपिल मुनि द्वारा ही लिखे गये हैं. इसके कुछ प्रमाणों का उल्लेख इस प्रकार है-

‘कल्पसूत्र’ जैनग्रन्थ के प्रथम प्रकरण में महावीर स्वामी के जीवन का उल्लेख है,

जिनका विशेषज्ञ महावीर स्वामी को बताया गया है। * ग्रन्थकार के एक वाक्य –

 ‘सट्ठितन्तविशारए’ (षष्टितन्त्रविशारदः)

इस वाक्य की व्याख्या यशोविजय ने इस प्रकार की है कि- ‘षष्टितन्त्रम्  कापिलशास्त्रम्, तत्र विशारद: पण्डितः, अर्थात- कपिल के निर्माण किये हुए शास्त्र का षष्टितन्त्र है, उसमें विशारद नाम अर्थात पण्डित । यह उल्लेख महावीर स्वामी के लिए किया गया है। इससे प्रतीत होता है। महावीर स्वामी ने कपिल रचित षष्टितन्त्र का अध्ययन कर था,उसमें विशेष वैलक्षण्य प्राप्त किया था। (पृष्ठ संख्या ९६आचार्य उदयवीर शास्त्री, सांख्य दर्शन का इतिहास)

श्रीयुत कालीपद भट्टाचार्य महोदय ने अपने एक लेख’ में इस मत को स्वीकार किया है, कि ‘षष्टितन्त्र’ कपिल की रचना है । तत्त्वसमास सूत्रों को आधुनिक अनेक भारतीय’ तथा पाश्चात्य’ विद्वानों ने कपिल की रचना माना है।

निष्कर्ष

 प्रस्तुत प्रसंग एवं जीवनी में हमारा उद्देश्य समस्त वैदिक,आध्यात्मिक तथा अन्य ज्ञान धारा की शाखा-प्रशाखाओं के प्रवक्ता ऋषि-मुनियों व आचार्यों के विषय में न होकर केवल दार्शनिक परम्परा के ऋषि कपिल मुनि व उनके ”सांख्य दर्शन” के विषय में कतिपय तथ्यों को बताने का यह प्रयास है।

तथा चिन्तन, मनन, अध्ययन के परिणामस्वरूप जो तथ्य ध्यान में आये, उनको लिपिबद्ध करने का यह प्रयास है।

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संस्कृत का महत्त्व

– संस्कृतभाषायाः वैज्ञानिकता  | संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता | Scientism of Sanskrit language

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सौजन्य- हेमलता कुमारी, जीवना कुमारी, उपासना (केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय वेदव्यास परिसर बलाहर, हि.प्र.  शिक्षा शास्त्री सत्र- 2022-23 )

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