ब्रह्मगुप्त

ब्रह्मगुप्त- महान भारतीय गणितज्ञ | Brahmagupta- Great Indian Mathematician- ज्योतिषशास्त्र की व्युत्पति “ज्योतिषा सूर्यादि ग्रहाणां बोधकम् शास्त्रम्” से की गई है|इसका अर्थ है सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिषशास्त्र कहा जाता है | भारतीय ज्योतिष के तीन स्कन्ध है- सिद्धांत, होरा और संहिता। सिद्धांत अर्थात् गणित। गणित शास्त्र में सबसे पहले आर्यभट्ट का नाम तथा उनके बाद ब्रह्मगुप्त का नाम आता है। हमारे अध्ययन का विषय है ब्रह्मगुप्त। 

ब्रह्मगुप्त ने सिद्धांत ज्योतिष को अपना प्रमुख केंद्र माना और अपने ग्रंथों की रचना की। ब्रह्मगुप्त के ग्रन्थ सिद्धांत स्कंध पर आधारित है।

 जीवन परिचय   

जन्मस्थान- ब्रह्मगुप्त महान् भारतीय गणितज्ञ थे।  यह गणित के सिद्धांतों का ज्योतिष में प्रयोग करने वाले पहले व्यक्ति थे । यह खगोल शास्त्री भी थे। इनका जन्म शक 520 है। इनके पिता का नाम जिष्णु था। ये भीनमाल के निवासी थे। इनका जन्म वैश्य कुल के एक संपन्न परिवार में हुआ था। ये गुप्त वंश से थे। ब्रह्मगुप्त के पिता एक अंतरिक्ष प्रयोगशाला के प्रमुख थे। यह प्रयोगशाला भीनमाल के मुख्य नगर उज्जैन में स्थित थी। ब्रह्मगुप्त ज्योतिष शास्त्र के प्रकांड पंडित थे। ब्रह्मगुप्त के ग्रंथ ब्रह्मस्फुट सिधांत में इनका  इस प्रकार से मिलता है-

श्रीचापवंशतिलके श्रीव्याघ्रमुखे नृपे शकनृपाणाम् ।

पञ्चाशतसंयुक्तैर्वर्षशतै:पंचभि: ५५० रतीतै:।।

व्रह्मस्फुटसिद्धान्त: सज्जनगणितज्ञगोलवित् प्रीत्यै

त्रि़ंशद्वर्षेण कृतो जिष्णुसुतब्रह्मगुप्तेन ।।

इससे ज्ञात होता है कि इन्होंने यह ग्रंथ चापवंश के राजा व्याघ्रमुख नामक राजा के शासन काल में ५५० वर्ष में लिखा। यह ग्रंथ इन्होंने ३० वर्ष की आयु में लिखा था । इससे सिद्ध होता है की इनका जन्म समय शक ५२०  है। भास्कराचार्य ने इन्हे ‘गड़क चूड़ामणि’ की उपाधि दी है। और इनके सिद्धांतों को मूल मानकर अपने ग्रंथ ‘सिद्धांत शिरोमणि’ की रचना की। ये अच्छे वेध कर्ता थे इन्होंने वेधों के अनुकूल भगणों की कल्पना की है।

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निवास स्थान- ब्रह्मगुप्त भीनमाल के निवासी थे। यह गांव वर्तमान में गुजरात प्रदेश के आबू पर्वत और लूणी नदी के बीच में स्थित हैं। यह एक छोटा सा गांव हैं। पहले इसका नाम भीलमाल या श्रीमाल था। यह माघ कवि की भी जन्मभूमि है।भीनमाल उज्जैन में स्थित है। उस समय उज्जैन शिक्षा व ज्ञान का मुख्य केंद्र था। ब्रह्मगुप्त ने अपना सिद्धांत चापवंश के राजा व्याघ्रमुख के समय में लिखा है और वे भील्लमालकाचार्य कहलाते हैं । जिससे यह कह सकते है की इनका जन्मसथान भिनमाल था। ह्वेन्स्वांग्  ने ब्रह्मगुप्त काल के लगभग गुजरात की राजधानी भिलमाल लिखी है और अभी भी गुजराती ज्योतिषियों में यह कथा प्रचलित है कि ब्रह्मगुप्त भिनमाल के निवासी थे। अत: उनका निवास स्थान भिनमाल ही होना चाहिए।  अपने ग्रन्थों में इन्होंने शिव की स्तुति की है जिससे यह ज्ञात होता है कि यह शैवभक्त थे।

ब्रह्मगुप्त
ब्रह्मगुप्त- महान गणितज्ञ

ब्रह्मगुप्त के ग्रन्थ-

ब्रह्मगुप्त की अनेक रचनाओं का उल्लेख मिलता है परंतु आजकल इनके दो ग्रंथ उपलब्ध होते हैं। ब्रह्मस्फुटसिद्धांत और खण्डखाद्यक। खण्डखाद्यक का रचनाकाल 587 है। इससे ज्ञात होता है कि इन्होंने 67 वर्ष की उम्र में खण्डखाद्यक ग्रंथ लिखा। ब्रह्मसफुट्सिधांत की रचना 550 शक यानी की 30 वर्ष की उम्र में की। इनका अन्य ग्रंथ ध्यानग्रह उपदेश है, परंतु वह आजकल उपलब्ध नही होता है। ब्रह्मगुप्त की दोनो पुस्तकों को अरबी भाषा में भी लिखा गया है। अरबी में इनके नाम ‘अल सिन्द हिंद’और ‘अलत अर्कंद’ है।’अल सिंध हिंद’ ब्रह्मस्फुटसिद्धांत का अरबी नाम है और ‘अलत अर्कंद’ खंड खाद्यक का अरबी नाम है। इन पुस्तकों के अरबी में अनुवाद के बाद अरबी गणित काफी विकसित हो गया था।

बह्मस्फुटसिद्धान्त-

यह ग्रन्थ ब्रह्मगुप्त की प्रथम रचना है। इसका रचनाकाल 550 शक है। यह ग्रंथ दो भागों में विभक्त है पूर्वार्ध और उतरार्ध। पूर्वार्ध में 10 अध्याय है और उतरार्ध में 14 अध्याय है। इस प्रकार ब्रह्मस्फुटसिधांत के कुल 24 अध्याय है। ब्रह्मगुप्त ने शून्य का एक विभिन्न अंक के रूप में उल्लेख किया है। इस ग्रन्थ में इन्होंने ऋणात्मक अंको और शून्य पर गणित करने के सभी नियमों का भी वर्णन किया है। ब्रह्मस्फुट सिद्धांत में 24-25 अध्याय और 1008 श्लोक हैं। इसके 12वें अध्याय में अंक गणित से सम्बंधित विषयों की जानकारी दी गई है। इस ग्रन्थ के मंगलाचरण में शिव की स्तुति करते हुए कहते हैं-

 जयति प्रणातसुरासुरमौलिगरत्नप्रभाच्छुरितपाद:।

      कर्ता जगदुत्पतिस्थितिविलयानां महादेव:।।

खण्डखाद्यक-

ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित अन्य ग्रंथ है। इसके दो भाग है। पूर्वार्ध और उत्तरार्ध । पूर्वार्ध में 9 अध्याय और 194 आर्याएं है। उत्तरार्ध में 4 अध्याय और 72 आर्याएं है। पूर्व खंड में ब्रह्मगुप्त ने आर्यभट द्वारा लिखे गए नियमों को प्रतिपादित किया है। उतर्खाद्यक में ब्रह्मगुप्त ने ऐसे नियम बताये हैं जो पहले नही थे। इस ग्रंथ में ब्रह्मगुप्त ने भारतीय ज्योतिष के अनुसार पंचांग बनाने की विधि का वर्णन किया है। ब्रह्मगुप्त के सिधांतों को मूल मानकर भस्करचार्य ने अपने ग्रंथ की रचना की। ग्रंथ के मंगलाचरण में शिव की स्तुति करते हुए ब्रह्मगुप्त लिखते है-

 प्रणिपत्य महादेवं जगदुत्पत्तिस्थितिप्रलयहेतुम्।

वक्ष्यामि खण्डखाद्यकमाचार्यार्यभट्टतुल्यफलम् ।।

ब्रह्मगुप्तसिद्धान्त के नियम-

.सर्वप्रथम ब्रह्मगुप्त ने दशमलव प्रणाली की व्याख्या की थी। ब्रह्मगुप्त ने  शून्य के विषय में कहा कि किसी संख्या में शून्य को जोड़ना तथा घटाने से वह संख्या नही बदलती है। किसी भी संख्या को शून्य से गुणा या भाग देने से  वह शून्य हो जाती है।

.ब्रह्मगुप्त मानते थे कि पृथ्वी स्थिर है और सूर्य घूमता है। व्रह्मस्फुटसिद्धान्त में व्रह्मगुप्त ने एक वर्ष की अवधि ३६५ दिन, ६ घंटे, ५ मिनट और १९ सैकिंड बताई है। जो की आधुनिक गणना के निकट है।

.   ब्रह्मगुप्त ने ही सर्वप्रथम चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल का सूत्र प्रदान किया था। उस चतुर्भुज को चक्रीय चतुर्भुज कहते है जिसके चारों शीर्षों से होकर कोई वृत खिंचा जा सके। यदि किसी चक्रीय चतुर्भुज की भुजाएँ a, b, c तथा d हो।तो इसका क्षेत्रफल-

A=√(s-a) (s-b)(s-c) ( s-d)

S उस चक्रीय चतुर्भुज का अर्धपरिमाप है, अर्थात-

S=a+b+c+d/2

यह नियम ब्रामस्फुट सिद्धांत के से लिया गया है। श्लोक है–––

स्थूलफलं त्रिचतुर्भुज-बाहु-प्रतिबाहु-योग-दल-घातस् ।

भुज-योग- अर्ध- चतुष्टय- भुज- ऊन- घातांक पदं सूक्ष्मम् ।।

अर्थात् त्रिभुज और चतुर्भुज का स्थूल क्षेत्रफल उसकी आमने-सामने की भुजाओं के योग के आधे के  गुणनफल के बराबर होता है तथा सूक्ष्म क्षेत्रफल भुजाओं के योग के आधे में से भुजाओं की लम्बाई क्रमश: घटाकर और उनको गुणा करके वर्गमूल लेने से प्राप्त होता है।

.   सबसे पहले ब्रह्मगुप्त ने गुरुत्वाकर्षण के विषय में कहा था कि “ पिंड पृथ्वी की ओर गिरते हैं क्योंकि पृथ्वी का स्वाभाव पिंडी को आकर्षित करना है ठीक वैसे ही जैसे पानी का प्रवाह करना प्रकृति है।”

ब्रह्मगुप्त के समय के १२०० साल बाद १६८७ ईस्वी में आईजैक न्यूटन ने इस घटना को फिर से खोजा और इसे गुरूत्वाकर्षण का नियम कहा।

.   ब्रह्मगुप्त ने खण्डखाद्यक पुस्तक में ज्योतिषी पंचांग को बनाने की पूर्ण विधि का वर्णन किया है।ब्रह्मगुप्त के सिधांतों को मूल मानकर भास्कराचार्य ने अपने ग्रन्थ की रचना की। सन 1817 में अंग्रेजी विद्वान कोलबर्क ने ब्रह्मगुप्त के ग्रंथ के कुट्टकध्याय का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया। तब यूरोपीय विद्वानों ने माना था की आधुनिक बीजगणित भारतीय बीजगणित पर आधारित है।

. ब्रह्मगुप्त ने अपनी गणित पद्धतियों से पृथ्वी की परिधि ज्ञात की थी। जोकि आधुनिक मान से मिलती जुलती है।

. ब्रह्मगुप्त ने सबसे पहले शून्य के नियमों का प्रतिपादन किया था। उन्होंने बताया की किसी संख्या को शून्य से गुना या भाग करने पर व शून्य ही रहती है।

. ब्रह्मगुप्त ने सबसे पहले तुर्य यंत्र का आविष्कार किया था। ब्रामसफुट्सिधांत् में यह इसके बारे में कहते हैं–––

अंकितमंशनवत्या धनुषोअ्र्धं तुर्यगोलकं यन्त्रम् ।

 घटिकानतोन्नतांश ग्रहान्तराद्यं धनुर्विद्या ।।

धनुष के आधे भाग को 90° से अंकित करने से वह तुर्य गोलक नाम का यन्त्र होता है। यहाँ भी धनुर्यन्त्र की तरह घटी, नतांश, उन्नतांश ग्रहांतरादि सिद्ध होता है।

९. ब्रह्मगुप्त ने यंत्राध्याय में 17 प्रकार के यंत्र बताये है वे हैं – धनुर्यंत्र, तुर्ययंत्र, चक्रयंत्र, यष्टि यंत्र, शंकु यंत्र, घटी यंत्र, कपाल यंत्र, करत्री यंत्र, पीट संज्ञक यंत्र, सलील यंत्र, भ्रम यंत्र, अवलग्व सूत्र, छाया कर्ण, शंकु छाया, दिनार्ध मान, सूर्य, अक्षांश ये नतकाल के लिए 17 काल यंत्र है ।

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ब्रह्मगुप्त के आविष्कार

ब्रह्मगुप्त ने द्विघातीय अनिर्धार्य समीकरण के हल की विधि की खोज की। इनकी विधि का नाम चक्रवाल विधि के नाम से जाना जाता है। गणित के सिधांतों का ज्योतिष में प्रयोग करने वाले ये प्रथम व्यक्ति थे। इनके ब्रह्मस्फुटसिद्धांत के द्वारा ही अरबों को भारतीय ज्योतिष का पता चला। तुरीय यन्त्र की रचना सर्वप्रथम ब्रह्मगुप्त के द्वारा ही की गई थी।

ब्रह्मगुप्त का विशेष योगदान

ब्रह्मगुप्त खगोलशास्त्री भी थे और इन्होंने शून्य के उपयोग के नियम खोजे थे। ब्रह्मगुप्त का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने यह समझाया कि एक पूर्णांक के घन और घनमूल को कैसे खोजना है तथा वर्ग और वर्गमूल की गणना को सुविधाजनक बनाने वाले नियम दिए। ब्रह्मगुप्त ने गणित के क्षेत्र में जितने भी योगदान दिए है उन सभी योगदानों को आज भी विश्व गणित में याद किया जाता है।

628 ई. में लिखी गई ब्रह्मस्फुटसिद्धांत ब्रह्मगुप्त द्वारा लिखी गई पहली पुस्तक मानी जाती है। क्योंकि इस पुस्तक में ब्रह्मगुप्त ने पहली बार शून्य को एक अलग अंक के रूप में दर्शाया था। साथ ही ब्रह्मगुप्त जी ने ऋणात्मक अंकों व शून्य पर किए जाने वाले गणित सूत्रों की चर्चा भी इस पुस्तक में की थी। इस पुस्तक के साढ़े चार अध्याय मुख्य रूप से गणित पर आधारित हैं। ब्रह्मगुप्त के पुस्तक में बीजगणित को ऊपर रखा गया है।ब्रह्मगुप्त ने अपनी पुस्तक में वर्गीकरण की विधि का भी बहुत ही सरल वर्णन किया है। इन्होंने अपनी पुस्तक में गणित के विलोम विधि का भी वर्णन किया है।

668  ई में ब्रह्मगुप्त जी ने खण्डखाद्यक की रचना की थी। अपनी इस पुस्तक में उन्होंने ज्योतिषी पंचांग बनाने की सम्पूर्ण विधि का वर्णन किया था। ब्रह्मगुप्त के मूलांकों को आधार बनाकर भास्कराचार्य ने अपने ग्रन्थ ‘सिद्धांत शिरोमणि’ की रचना की। वे ब्रह्मगुप्त को अपना गुरु मानते हैं।

ब्रह्मगुप्त और उनके सूत्र

ब्रह्म गुप्त ने ज्योतिष में कई प्रयोग किए और वैदिक गणित में अपना योगदान भी दिया। उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथों में ग्रहों की गणना और नक्षत्रों पर विचार और ज्योतिष में बनने वाले अनेक योग इत्यादि भी बताएं।

ब्रह्मगुप्त ने धर्म और कर्मकांड की विचारधारा से खुद को बहुत अलग नहीं किया । ग्रहण से संबंधित जब वह अपने धार्मिक विचारों को रखते हैं तो अलबरूनी इसका विरोध करते हुए कहा कि अगर धार्मिक कर्मकांडों को ही माना है तो क्यों चंद्रमा के सूर्य को ग्रहण लगाने की व्याख्या करने के लिए पृथ्वी की छाया के ब्यास की गणना क्यों करते हो ऐसे में कुछ चीजों के प्रति उनकी आलोचना भी हुई । पर उनके  गणितीय और ज्योतिषी सिद्धांतों ने सभी के समक्ष उनकी योग्यता को प्रभावशाली ढंग से दिखाया।

. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से लंका  क्षेत्र में सूर्य के उत्पन्न होने से रवि के दिन में सृष्टि की उत्पत्ति का आरंभ हुआ इसी समय से ही दिन, माह ,वर्ष ,युग और कल्प का आरंभ होता है तथा इन सभी की उत्पत्ति का समय चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तिथि थी ।

. सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के समय का मापन कैसे निकाला जाए।

ब्रह्मगुप्त  जी ने शून्य के बारे में अपने विचार दिए जिसमें उन्होंने एक स्वतंत्र अंक बताया था । शून्य के उपयोग पर बात की पर जीरो पर दिए गए उनके सिद्धांत में कमी रही जिसे स्वीकारा नहीं गया।

. ब्रह्मगुप्त की रचनाओं का बाद में अरबी भाषा में भी अनुवाद किया गया जिनको सिंदहिंद और अकरन्द नाम दिया गया।

. ब्रह्मगुप्त ने त्रिभुज और चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल ज्ञात करने का सूत्र दिया।

. चक्रीय चतुर्भुज की भुजाएं और उनके कर्णों की लंबाई कैसे जाने यह भी बताया।

६. पृथ्वी की परिधि ज्ञात करने का नियम दिया जो आधुनिक मान के निकट बैठता है।

ब्रह्मगुप्त द्वारा बताए गए बहुत से नियमों को आने वाले आचार्य ने अपनाया इसमें से भास्कराचार्य ने ब्रह्मा गुप्त के द्वारा बताए गए नियमों को अपने ग्रंथ का आधार भी बनाया इनकी रचनाओं का बाद में अरबी में अनुवाद भी हुआ उन्होंने ब्रह्मगुप्त के ब्रह्मस्फुट ग्रंथ को ‘सिंदहिंद’ और खंडखाद्य को ‘अलअकरन्द’ नाम दिया गया।

सौजन्य- क्षमा, ईशा, शिवाली (के.सं. विश्वविद्यालय वेदव्यासपरिसर शिक्षाशास्त्री प्रथमवर्ष सत्र-2022-23)

सन्दर्भ-

भारतीय ज्योतिष पुस्तक – अनुवादक- शिवनाथ झारखंडी।

Google – him.wikipedia.org

ब्रह्म स्फुट सिद्धांत ग्रन्थ

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