आचार्य चाणक्य (कौटिल्य)-अर्थशास्त्र प्रणेता | Acharya Chanakya (The Pioneer of Economics)- आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) विश्व के महानतम विचार को में गिना जाता है। उन्होंने उस समय लिखना आरंभ किया जब यूनान में प्लेटो, अरस्तु और सिसरो जैसे महान दार्शनिक राज्य पर अपने विचार प्रस्तुत कर चुके थे। अर्थशास्त्र के लेखक कौटिल्य एक यथार्थवादी विचारक थे। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के सलाहकार और मंत्री थे। वह चाहते थे कि राजा शक्तिशाली बना रहे और अपने राज्य का विस्तार साम-दाम-दंड-भेद की कूटनीति के माध्यम से करता रहे ताकि उसे धन प्राप्ति हो जो राज्य की खुशहाली के लिए जरूरी है। उन्होंने राज्य के साथ प्रकृति या अथवा अंग बताए एवं कहा कि इन सातों के बिना कोई भी राज्य पूर्ण नहीं है। उन्होंने लोक प्रशासन को राज्य की शक्ति का अनिवार्य पहलू बताया। उन्होंने प्रशासन के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और समझाया कि प्रशासन कला भी है और विज्ञान भी जिसमें एक राजा को भी दक्ष होना चाहिए। शासकों की योग्यता पर उन्होंने अत्यधिक बल दिया।
आचार्य चाणक्य ने अर्थशास्त्र का अध्ययन करके जनमानस को समझाया कि किस प्रकार से एक अच्छा प्रशासक लोगों की भलाई कर सकता। वित्तीय प्रशासन प्रतिरक्षा प्रशासन जनकल्याण व प्रशासन का राज्य में क्या महत्व है इसके विषय में अर्थशास्त्र के माध्यम से उन्होंने समझाने का प्रयास किया।
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चाणक्य (कौटिल्य) का जीवन परिचय
कौटिल्य का मूल नाम था विष्णु गुप्त चाणक्य भी कहा जाता है। के संबंध में जितना विवाद रहा उससे कहीं अधिक भ्रम पूर्ण भावनाएं इनके स्थिति काल के संबंध में प्रसारित हुई। आचार्य कौटिल्य की जीवन संबंधी जानकारी और उनके अद्भुत ग्रंथ अर्थशास्त्र की छानबीन करने में विदेशी विद्वानों का वर्षों तक घोर विवाद चलता रहा। इस तर्क वितर्क और वाद-विवाद की परंपरा में जिन देशी विदेशी विद्वानों का भरपूर हाथ रहा उनमें पंडित श्याम शास्त्री, महामहोपाध्याय, गणपति शास्त्री, श्री काशी प्रसाद जायसवाल, नरेंद्रनाथ लाहा, श्री राधाकुमुद मुखर्जी, श्री देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर, विनय कुमार सरकार और श्री जयचंद विद्यालंकार प्रमुख हैं। इसी प्रकार विदेशी विद्वानों में श्री हिलेब्रांट , श्री हर्टल ,यकोबी साहब, श्री बीसेंट स्मिथ, श्री ऑटो स्टैंड इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं।
कौटिल्य अर्थशास्त्र के उद्धारक के रूप में पंडित श्यामशास्त्री का नाम अर्थशास्त्र की महानता के साथ अमर हो चुका है। चाणक्य का जन्म 325 पूर्व में हुआ था। कुछ विद्वानों का मत है कि इनका जन्म 400 ईसवी पूर्व में हुआ था। उनके पिता का नाम चणक अथवा शिवगुप्त था। कौटिल्य का जीवनकाल सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य एवं उनके पूर्वज नंद के समकालीन था। आचार्य कौटिल्य का जन्म स्थान विवादास्पद विषय रहा है। कुछ विद्वान उनका जन्म स्थल गंधार क्षेत्र स्थित तक्षशिला तथा कुछ मगध अर्थात बिहार मानते हैं। बौद्ध जैन साहित्य के अनुसार कौटिल्य तक्षशिला के ही निवासी थे। कौटिल्य ने अनेक वनस्पति एवं धातुओं का उल्लेख किया है, जो गंधार में थे। उस क्षेत्र के संबंध में चाणक्य के द्वारा लिखने का यही कारण है कि उनका संबंध उत्तर-पश्चिम क्षेत्र से था तथा उन्होंने वही अध्ययन किया। अनेक दक्षिण के लेखकों ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया है कि कौटिल्य दक्षिण के ब्राह्मण थे और अर्थशास्त्र दक्षिण की रचना है। दक्षिण के अधिकांश लेखकों का मत है कि अर्थशास्त्र की कोई पांडुलिपि उत्तर भारत में नहीं मिली है। अर्थशास्त्र दक्षिण भारत की ही रचना है, किंतु यह भी स्मरणीय तथ्य है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपने सम्राट पद से अवकाश ग्रहण करने पर 299 ईसवी पूर्व में दक्षिण भारत चले गए थे तथा वही उनकी मृत्यु हो गई। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राज्य दिला कर एक राज्य संहिता देश को दी थी। कौटिल्य के सम्मुख संपूर्ण भारतवर्ष एक इकाई के रूप में स्थापित हो गया था अतः कौटिल्य भी चंद्रगुप्त मौर्य के साथ दक्षिण चले गए एवं इस अवकाश काल में अर्थशास्त्र की रचना की गई। इससे स्पष्ट होता है कि कई विद्वान कौटिल्य को उत्तर पश्चिम का मानते हैं तो कई विद्वान दक्षिण का मानते हैं।
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प्राचीन भारतीय इतिहास कौटिल्य की निश्चित जन्म तिथि एवं मृत्यु तिथि के पहलू पर मौन है। मुद्राराक्षस नाटक जिसका नायक चाणक्य है इस पर कोई प्रकाश नहीं डालता। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार चाणक्य चंद्रगुप्त के पुत्र बिंदुसार के शासनकाल में भी महामात्य था एवं उसमें 16 राजधानियां जीतकर पूर्व से पश्चिम तक का क्षेत्र बिंदुसार के अधीन कर दिया था, जैन ग्रंथों के अनुसार चाणक्य की मृत्यु चंद्रगुप्त के समय में ही हो गई थी। चाणक्य की मृत्यु के संबंध में निम्नलिखित बातें भी प्रचलित हैं:
नंद का सुबंधु नामक आमात्य था। वह चाणक्य से बदला लेना चाहता था। सुबंधु ने चंद्रगुप्त से कहा -मैं आपके हित की एक बात बताता हूं। चाणक्य ने अपनी माता को मरवा डाला है। इसके बाद चाणक्य चंद्रगुप्त से मिलने गए तो चंद्रगुप्त ने उनका आदर नहीं किया। चाणक्य, चंद्रगुप्त की नाराजगी का कारण समझ गया। उसने अपनी मृत्यु निकट जानकर अपनी संपत्ति अपनी संतान को बांट दी और जंगल में अपने आश्रम में जाकर वर्ण अनशन ग्रहण करके शरीर त्याग दिया।
अतः कौटिल्य के संबंध में प्राप्त ग्रंथों के आधार पर स्पष्ट कहा जा सकता है कि कौटिल्य तीक्ष्ण बुद्धि के धनी, वेदों एवं मंत्रों के ज्ञाता, धन एवं शक्ति से घृणा करने वाले, तपस्वी, सूक्ष्मदर्शी, स्वाभिमानी, मनोवैज्ञानिक, असाधारण प्रतिभावान, दूरदर्शी आदि विशेषता युक्त व्यक्तित्व के स्वामी थे।
चाणक्य की शिक्षा
बौद्ध जैन साहित्य तथा अन्य स्रोतों के आधार पर यह अनुमान किया जाता है कि कौटिल्य की जन्मभूमि तक्षशिला थी एवं उन्होंने तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की थी। पाटलीपुत्र आने से पूर्व ये नीति, वैद्यक, ज्योतिष, रसायन आदि लोकोपयोगी विविध विद्याएं पढ़ चुके थे। ये साहस, धैर्य और दृढ़ता जैसे सद्गुणों की भी समुचित शिक्षा प्राप्त कर चुके थे। विद्या अध्य्यन की समाप्ति पर वे तक्षशिला विश्वविद्यालय के प्राध्यापक हो गए। इसके विपरीत कुछ विद्वान तक्षशिला विश्वविद्यालय के स्थान पर नालन्दा को कौटिल्य का अध्ययन केंद्र स्वीकार करते हैं किन्तु तक्षशिला विश्वविद्यालय को ही अधिक प्रामाणिक माना जाता है, क्योंकि तक्षशिला तत्कालीन शिक्षा का श्रेष्ठतम केन्द्र था।
कौटिल्य तत्कालीन वर्ण व्यवस्थात्मक परंपराओं के अनुरूप ब्राह्मण होने के कारण अध्यापन कार्य करते थे। शास्त्र एवं शस्त्र के ज्ञाता एवं शिक्षक के रूप में उन्हें अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त थी।एक आदर्श अध्यापक होने के कारण कौटिल्य राजनीति से पृथक रहना चाहते थे परन्तु परिस्थितियों के कारण कौटिल्य भारत की संपूर्ण राजनीति का केंद्र बिंदु बन गए।
कौटिल्य का राजनीति में प्रवेश एवं मौर्य साम्राज्य की स्थापना एक प्राध्यापक के पद से प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचने वाले आचार्य कौटिल्य का राजनीति में प्रवेश मगध राज्य से हुआ था। ऐतिहासिक शोधों के अनुसार 632 से 672 ईसवी पूर्व तक मगध की शासन सत्ता शिशुनाग वंश के अधीन रही तदनंतर नंद वंश के उत्तराधिकारी हुए। जिसका प्रथम प्रतापी सम्राट महापद्मनंद था। 88 वर्ष तक राज्य उपरांत उसका निधन हुआ तथा 22 वर्ष तक उसके उत्तराधिकारीयों का अस्तित्व बना रहा। कौटिल्य का मध्य में आगमन महापद्मनंद के समय हुआ था। जहां राज्यसभा में सम्राट के द्वारा कौटिल्य का अपमान हुआ तथा अपमानित किंतु स्वाभिमानी कौटिल्य ने नंद वंश का समूल नाश करने हेतु प्रतिज्ञा की। राजसभा में उपस्थित प्रतिनिधियों के समक्ष चाणक्य ने शिखा खोलते हुए घोषणा की कि जब तक में नंद वंश का समूल नाश नहीं करूंगा तब तक शिखा नहीं
बांधूंगा। ना से संबंधित अनेक किंबदंती या प्रचलित हैं जिनके अनुसार नंद वंश के मंत्री स्व कटार ने राजा से प्रतिशोध लेने की भावना से चाणक्य को राजभवन में श्राद्ध भोज मैं आमंत्रित किया तथा वहां शारीरिक दृष्टि से कुरूप ब्राह्मण होने के कारण राजा द्वारा चाणक्य का अपमान किया गया, रामस्वरूप चाणक्य ने उक्त प्रतिज्ञा की।
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चाणक्य का जीवन यापन
चंद्रगुप्त मौर्य कौटिल्य की सहायता से ही चक्रवर्ती सम्राट बना था तथा कौटिल्य न केवल मौर्य साम्राज्य का महामंत्री था अपितु साम्राज्य का सारा कार्यभार संभालता था। लेकिन सर्वशक्तिमान होने के पश्चात भी एक आदर्श ब्राह्मण की तरह वह त्याग के आदर्श को ग्रहण कर तपस्वी ही बना रहा। विद्वानों के अनुसार कौटिल्य अत्यंत परिश्रमी त्यागी साधु प्रकृति का सादा जीवन व्यतीत करने वाला एवं आजीवन ब्रह्मचारी था। कौटिल्य चक्रवर्ती सम्राट के राज्य प्रसाद के वैभव विलास एवं पद को त्याग कर राजधानी से दूर गंगा के तट पर कुटी में जीवन के शेष दिन चिंतन एवं मनन में व्यतीत करने लगा।
चाणक्य का व्यक्तित्व
प्राचीन भारतीय राजनीति में कौटिल्य का व्यक्तित्व अनेक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा है। एक साधारण गृहस्थ ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर उसने अपने युग की महान तथा शक्तिशाली राज्य शक्ति का सामना किया। अपनी कूटनीति, चातुर्य ,दृढ़ता, स्वाभिमान एवं साहस के बल पर नंद वंश का नाश करके देश को एक योग्य शासन प्रदान किया। कौटिल्य ने अपने वैयक्तिक सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु कोई कार्य नहीं किया। अपनी इच्छा के अनुसार साम्राज्य की स्थापना करने के पश्चात भी उन्होंने त्याग तथा शांति के मार्ग का अनुसरण किया। कौटिल्य ने भारतीय संस्कृति के अनुसार वर्णाश्रम के जो आदर्श स्थापित किए हैं उन्हें स्वयं के जीवन में चरितार्थ करके भी दिखाया है। एक यथार्थवादी एवं व्यवहारिक विचारक होने के कारण कौटिल्य इस सिद्धांत में विश्वास करते थे कि कुटिल के साथ सज्जनता का व्यवहार नहीं करना चाहिए अपितु कुटिल के साथ कुटिलता पूर्ण व्यवहार ही उचित होता है।भारतीय विचार को में कौटिल्य प्रथम विचारक हैं जिसने एक ऐसी शासन व्यवस्था तथा राजनीतिक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जिनके आधार पर मौर्य साम्राज्य का उद्विकास होकर इतिहास में एक आदर्श रूप में प्रतिस्थापित हुआ।
प्राचीन कथा साहित्य और कौटिल्य अर्थशास्त्र में चाणक्य के व्यक्तित्व की यह भी एक विशेषता देखी जाती है कि उसने राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की सिद्धि में साधनों के नैतिकता पर किसी प्रकार से ध्यान नहीं दिया है। ऐसा भी कहा जाता है कि कौटिल्य क्रोधी स्वभाव के व्यक्ति थे। अपने क्रोध के कारण ही उन्होंने नंद वंश को समाप्त कर दिया था।
चाणक्य के राज्य के तत्व सप्तांग सिद्धांत-
कौटिल्य ने पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तकों द्वारा प्रतिपादित राज्य के चार आवश्यक तत्त्वों – भूमि, जनसंख्या, सरकार व सम्प्रभुता का विवरण न देकर राज्य के सात तत्त्वों का विवेचन किया है। इस सम्बन्ध में वह राज्य की परिभाषा नहीं देता किन्तु पहले से चले आ रहे साप्तांग सिद्धांत का समर्थन करता है। कौटिल्य ने राज्य की तुलना मानव-शरीर से की है तथा उसके सावयव रूप को स्वीकार किया है। राज्य के सभी तत्त्व मानव शरीर के अंगो के समान परस्पर सम्बन्धित, अन्तनिर्भर तथा मिल-जुलकर कार्य करते हैं-
स्वाम्यमात्यजनपददुर्गकोशदण्डमित्राणि प्रकृतयः ॥अर्थशास्त्र ०६.१.०१॥
(1) स्वामी (राजा) शीर्ष के तुल्य है। वह कुलीन, बुद्धिमान, साहसी, धैर्यवान, संयमी, दूरदर्शी तथा युद्ध-कला में निपुण होना चाहिए।
(2) अमात्य (मंत्री) राज्य की आँखे हैं। इस शब्द का प्रयोग कौटिल्य ने मंत्रीगण, सचिव, प्रशासनिक व न्यायिक पदाधिकारियों के लिए भी किया है। वे अपने ही देश के जन्मजात नागरिक, उच्च कुल से सम्बंधित, चरित्रवान, योग्य, विभिन्न कलाओं में निपुण तथा स्वामीभक्त होने चाहिए।
(3) जनपद (भूमि तथा प्रजा या जनसंख्या) राज्य की जंघाएँ अथवा पैर हैं, जिन पर राज्य का अस्तित्व टिका है। कौटिल्य ने उपजाऊ, प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण, पशुधन, नदियों, तालाबों तथा वन्यप्रदेश प्रधान भूमि को उपयुक्त बताया है।
जनसंख्या में कृषकों, उद्यमियों तथा आर्थिक उत्पादन में योगदान देने वाली प्रजा सम्मिलित है। प्रजा को स्वामिभक्त, परिश्रमी तथा राजा की आज्ञा का पालन करने वाला होना चाहिए।
(4) दुर्ग (किला) राज्य की बाहें हैं, जिनका कार्य राज्य की रक्षा करना है। राजा को ऐसे किलों का निर्माण करवाना चाहिए, जो आक्रमक युद्ध हेतु तथा रक्षात्मक दृष्टिकोण से लाभकारी हों। कौटिल्य ने चार प्रकार के दुर्गों-औदिक (जल) दुर्ग, पर्वत (पहाड़ी) दुर्ग, वनदुर्ग (जंगली) तथा धन्वन (मरुस्थलीय) दुर्ग का वर्णन किया है।
(5) कोष (राजकोष) राज्य के मुख के समान है। कोष को राज्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना गया है, क्योंकि राज्य के संचालन तथा युद्ध के समय धन की आवश्यकता होती है। कोष इतना प्रचुर होना चाहिए कि किसी भी विपत्ति का सामना करने में सहायक हो। कोष में धन-वृद्धि हेतु कौटिल्य ने कई उपाय बताए हैं। संकटकाल में राजस्व प्राप्ति हेतु वह राजा को अनुचित तरीके अपनाने की भी सलाह देता है।
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(6) दण्ड (बल, डण्डा या सेना) राज्य का मस्तिष्क हैं। प्रजा तथा शत्रु पर नियंत्रण करने के लिए बल अथवा सेना अत्यधिक आवश्यक तत्त्व है। कौटिल्य ने सेना के छः प्रकार बताए हैं। जैसे-वंशानुगत सेना, वेतन पर नियुक्त या किराए के सैनिक, सैन्य निगमों के सैनिक, मित्र राज्य के सैनिक, शत्रु राज्य के सैनिक तथा आदिवासी सैनिक। संकटकाल में वैश्य तथा शूद्रों को भी सेना में भर्ती किया जा सकता है। सैनिकों को धैर्यवान, दक्ष, युद्ध-कुशल तथा राष्ट्रभक्त होना चाहिए। राजा को भी सैनिकों की सुख-सुविधाओं का ध्यान रखना चाहिए। कौटिल्य ने दण्डनीति के चार लक्ष्य बताए हैं- अप्राप्य वस्तु को प्राप्त करना, प्राप्त वस्तु की रक्षा करना, रक्षित वस्तु का संवर्धन करना तथा संवख्रधत वस्तु को उचित पात्रों में बाँटना।
(7) सुहृद (मित्र) राज्य के कान हैं। राजा के मित्र शान्ति व युद्धकाल दोनों में ही उसकी सहायता करते हैं। इस सम्बन्ध में कौटिल्य सहज (आदर्श) तथा कृत्रिम मित्र में भेद करता है। सहज मित्र कृत्रिम मित्र से अधिक श्रेष्ठ होता है। जिस राजा के मित्र लोभी, कामी तथा कायर होते हैं, उसका विनाश अवश्यम्भावी हो जाता है।
इस प्रकार कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत राज्य के सावयव स्वरूप (Organic form) का निरूपण करते हुए सभी अंगो (तत्त्वों) की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है। यद्यपि यह सिद्धांत राज्य की आधुनिक परिभाषा से मेल नहीं खाता, किन्तु कौटिल्य के राज्य में आधुनिक राज्य के चारों तत्त्व विद्यमान हैं। जनपद भूमि व जनसंख्या है, अमात्य सरकार का भाव है तथा स्वामी (राजा) सम्प्रभुत्ता का प्रतीक है। कोष का महत्त्व राजप्रबन्ध, विकास व संवर्धन में है तथा सेना आन्तरिक शान्ति व्यवस्था तथा बाहरी सुरक्षा के लिए आवश्यक है। विदेशी मामलों में मित्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, किन्तु दुर्ग का स्थान आधुनिक युग में सुरक्षा-प्रतिरक्षा के अन्य उपकरणों ने ले लिया है।
चाणक्य की कृतियां
चरक के पुत्र विष्णु गुप्त ने भारतीय शासकों को राजनीति की शिक्षा प्रदान करने एवं योग्य शासक का निर्माण करने हेतु निम्नांकित ग्रंथों की रचना की थी –
. अर्थशास्त्र
. लघु चाणक्य
. वृद्ध चाणक्य
. चाणक्य नीतिशास्त्र
. चाणक्य सूत्र
चाणक्य की विभिन्न कृतियों में अर्थशास्त्र एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। चाणक्य नीति एवं राजनीति से संबंधित समस्त पुस्तकें अर्थशास्त्र पर ही आधारित हैं।
संदर्भ ग्रन्थ –
. रघुनाथ सिंह, कौटिल्य अर्थशास्त्रम, कृष्णदास अकादमी वाराणसी 1977
. वाचस्पति गैरोला, कौटिल्य अर्थशास्त्र, चौखंबा विद्याभवन वाराणसी 1977
. विशाखदत्त, मुद्राराक्षस ।
सौजन्य- रंजना कुमारी, शिखा रानी, मनप्रीत कौर( शिक्षा शास्त्री सत्र-2022-23)
यह भी देखें-
– संस्कृतभाषायाः वैज्ञानिकता | संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता | Scientism of Sanskrit language
भारत में संस्कृत विश्वविद्यालय | Sanskrit Universities in India
जन्मदिन की बधाई संस्कृत में | Birthday wishes message in sanskrit
सूक्तियाँ | Sanskrit Suktiyan (Proverb)
संस्कृत में गिनती (संख्याज्ञान)