RSS विजयदशमी उत्सव

विजयदशमी का पर्व भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसे अच्छाई की बुराई पर विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, और इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के लिए विजयदशमी का विशेष महत्व है, क्योंकि संघ की स्थापना भी इसी दिन 1925 में नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी।

यह दिन RSS के लिए अपनी स्थापना के उद्देश्यों की पुनः पुष्टि करने और संगठन की भावी दिशा पर विचार करने का अवसर प्रदान करता है। हर साल संघ प्रमुख (सरसंघचालक) विजयदशमी के अवसर पर अपने उद्बोधन के माध्यम से संगठन और राष्ट्र के समक्ष अपने विचार रखते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का विजयदशमी उत्सव पर उद्बोधन: विस्तृत विश्लेषण

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और महत्व

विजयदशमी को संघ का स्थापना दिवस माना जाता है। संघ की स्थापना के समय देश औपनिवेशिक शोषण के दौर से गुजर रहा था, और भारतीय समाज विभाजन, जातिवाद और विदेशी शासन के बोझ तले दबा हुआ था।

डॉ. हेडगेवार ने इस स्थिति को देखते हुए समाज को एकजुट करने और राष्ट्रवाद की भावना जाग्रत करने के उद्देश्य से RSS की नींव रखी। इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य भारतीय संस्कृति और परंपराओं को पुनर्जीवित करना, समाज को संगठित करना, और देश के लिए समर्पण भाव से काम करना था।

विजयदशमी पर संघ प्रमुख का उद्बोधन केवल संघ के स्वयंसेवकों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है। यह उद्बोधन न केवल संगठन की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालता है, बल्कि राष्ट्र और समाज से जुड़े समकालीन मुद्दों पर भी संघ की दृष्टि प्रस्तुत करता है।

कपिल मुनि (सांख्य शास्त्र प्रणेता) | Kapil Muni (Sanakhya shastr)  

उद्बोधन के प्रमुख बिंदु

विजयदशमी पर RSS के सरसंघचालक के उद्बोधन में कई प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की जाती है। इनमें से कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

1. राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा

RSS हमेशा से राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता को सर्वोच्च प्राथमिकता देता रहा है। सरसंघचालक अपने उद्बोधन में भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के प्रति सजग रहने की आवश्यकता पर जोर देते हैं। वे सेना, अर्धसैनिक बलों और सुरक्षा एजेंसियों के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं और सीमा पर तैनात सैनिकों की वीरता को नमन करते हैं।

इसके साथ ही, राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए तकनीकी सशक्तिकरण, स्वदेशी उत्पादन और आत्मनिर्भरता के महत्व पर भी बल दिया जाता है।

2. संस्कृति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण

RSS भारतीय संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण और प्रसार के लिए प्रतिबद्ध है। विजयदशमी के दिन दिए गए उद्बोधन में भारतीय संस्कृति के मूल्यों, धर्म, दर्शन और सामाजिक संरचना की रक्षा और उन्हें पुनर्जीवित करने की आवश्यकता पर जोर दिया जाता है। संघ का मानना है कि भारतीय समाज की उन्नति और स्थायित्व उसकी सांस्कृतिक जड़ों में निहित है।

3. समाज में एकता और समरसता

संघ के लिए समाज में एकता और समरसता का महत्व सर्वोपरि है। सरसंघचालक अपने उद्बोधन में जाति, धर्म और वर्ग के भेदभाव को समाप्त करने और समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की अपील करते हैं।

वे समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों के उत्थान की बात करते हैं और यह सुझाव देते हैं कि समाज के हर वर्ग को राष्ट्र निर्माण में समान अवसर और भूमिका मिलनी चाहिए।

4. आर्थिक आत्मनिर्भरता

भारत की आर्थिक नीति और आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) पर भी संघ प्रमुख अपने विचार व्यक्त करते हैं। वे देश को आत्मनिर्भर बनाने और विदेशी निर्भरता को कम करने पर जोर देते हैं।

विजयदशमी के उद्बोधन में “मेक इन इंडिया” जैसी पहल को सुदृढ़ करने, छोटे और मझोले उद्योगों को समर्थन देने, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की बात होती है।

5. शिक्षा और युवाओं का मार्गदर्शन

RSS का मानना है कि शिक्षा केवल रोजगार के लिए नहीं, बल्कि एक समग्र और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण के निर्माण के लिए होनी चाहिए।

विजयदशमी पर सरसंघचालक शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर चर्चा करते हैं और युवाओं को राष्ट्र सेवा के प्रति प्रेरित करने का आह्वान करते हैं।

यह विशेष रूप से “राष्ट्रीय शिक्षा नीति” जैसे मुद्दों पर संघ की विचारधारा को दर्शाने का समय होता है।

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6. महिला सशक्तिकरण

संघ महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके सम्मान के लिए भी कार्य करता है। सरसंघचालक अपने उद्बोधन में महिलाओं की भूमिका को समाज और राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण मानते हैं।

वे महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा और उनके सामाजिक योगदान को बढ़ावा देने के लिए समाज से आह्वान करते हैं।

7. धार्मिक और सामाजिक एकता

RSS का विजयदशमी उद्बोधन हिंदू समाज के साथ-साथ सभी धार्मिक और सांप्रदायिक समूहों के बीच एकता और सद्भाव पर बल देता है।

संघ प्रमुख “सर्वधर्म समभाव” की भावना को प्रोत्साहित करते हैं और समाज में धर्म के आधार पर विभाजन को समाप्त करने की अपील करते हैं।

समकालीन मुद्दों पर चर्चा

RSS का विजयदशमी का उद्बोधन समाज और राष्ट्र की समकालीन चुनौतियों पर भी चर्चा करता है। इसमें देश की राजनीति, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, वैश्विक समस्याओं, और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर संघ की राय प्रस्तुत की जाती है। इसके अलावा, कोविड-19 जैसी महामारी, स्वास्थ्य, विज्ञान, और तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला जाता है।

संघ का भविष्य का दृष्टिकोण

विजयदशमी के दिन दिए गए उद्बोधन में संघ प्रमुख भविष्य की योजनाओं और संगठन की दिशा पर भी चर्चा करते हैं। वे संघ के विस्तार, नए स्वयंसेवकों को जोड़ने, और समाज में संघ के योगदान को बढ़ाने के लिए दिशा-निर्देश देते हैं। वे स्वयंसेवकों को अनुशासन, सेवा, और समर्पण के साथ राष्ट्र निर्माण के कार्य में योगदान करने की प्रेरणा देते हैं।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विजय दशमी उत्सव और इस अवसर पर दिया गया सरसंघचालक का उद्बोधन संघ की विचारधारा और कार्यों का महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह न केवल संगठन के स्वयंसेवकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि पूरे समाज और राष्ट्र के लिए संघ की दृष्टि को स्पष्ट करता है।

यह उद्बोधन संघ के विचारों, उद्देश्यों और समर्पण को पुनः पुष्ट करता है और समाज और राष्ट्र को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।

पुनर्वसु आत्रेय (आयुर्वेद चिकित्सक) | Punarvasu Atreya (Ayurveda doctor)

ब्रह्मगुप्त- महान भारतीय गणितज्ञ | Brahmagupta- Great Indian Mathematician

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