माँ दुर्गा का छठा अवतार है:- नवरात्रों में माँ कात्यायनी की पूजा अर्चना छठे दिन विशेष रूप से की जाती है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार माँ भगवती का छठा अवतार की आराधना से उसके भक्त गणों को धर्म अर्थ काम मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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माँ कात्यायनी को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्रदान करने वाली तथा रोग शोक संताप और भय आदि को दूर करने वाली देवी भी कहा जाता है।
माँ कात्यायनी का स्वरूप
इस स्वरूप में माता अपने वाहन सिंह के ऊपर आरूढ़ होकर अपनी चारों भुजाओं में से दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा अभय मुद्रा में तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में होता है। माता की बाईं और की ऊपर वाली भुजा में तलवार और नीचे वाली भुजा कमल के फूल से सुशोभित होती है। इस प्रकार के स्वरूप वाली माँ कात्यायनी की उपासना एवं आराधना से भक्तों गणों संतो आर्यों को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। तथा रोग संताप आदि से मुक्त होकर अपने जीवन को सफल करते हैं। माँ भगवती की आराधना से भक्तों गुणों को परम पद की प्राप्ति होती है।
माँ कात्यायनी की पूजा पाठ विधि
माँ दुर्गा के इस अवतार की पूजा अर्चना बहुत ही सात्विक और शुद्ध होकर भक्तगण करते हैं। भक्तगण प्रातः काल शुद्ध स्नान आदि कर माँ भगवती की पूजा अर्चना करने के लिए उनकी मूर्ति के समक्ष बैठकर हाथ में पुष्प आदि लेकर माँ कात्यायनी के मंत्र का उच्चारण कर उनका ध्यान करना चाहिए। साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करना भी श्रेयस्कर रहता है। विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती के 11वें अध्याय का पाठ इस दिन के लिए ज्यादा शुभ कर माना गया हैइस दिन माँ कात्यायनी के साथ-साथ भगवान शिव की भी पूजा-अर्चना करनी चाहिए और जो वस्तुएं भगवान शिव को प्रिय हो वही वस्तुएं मां कात्यायनी के चरणों में भी अर्पित करनी चाहिए इस प्रकार माँ कात्यायनी को प्रसन्न कर विशेष आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
देवी कात्यायनी को प्रश्न्न करने हेतु विशेष मन्त्र
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवि दानवघातिनी॥
माँ कात्यायनी कवच–
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी।।
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी।।
माँ कात्यायनी देवी की पावन
माँ भगवती के छठे अवतार मां कात्यायनी की कथा के संदर्भ में पुराण आदि ग्रंथों में इसका विशेष वर्णन मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार कत नामक प्रसिद्ध ऋषि हुए उनके पुत्र कात्यायन हुए उन्हीं के इस कात्यायन गोत्र प्रारंभ हुई हुआ।
जब महिषासुर नाम का राक्षस का अत्याचार देवी देवताओं और ऋषि-मुनियों संतों पर बहुत अधिक बढ़ गया तो उसके विनाश के लिए ब्रह्मा विष्णु महेश अत्री देवों ने अपने तेज और आशीर्वाद से ऋषि कात्यायन को उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर कात्यायनी के रूप में मां दुर्गा ने जन्म लिया। मां कात्यायनी के दिव्य स्वरूप को देखकर सभी देव देवी देवताओं ने उनको विशेष शक्तियां भेंट की महर्षि कात्यायन के घर पैदा होने के कारण ही भगवती मां के छठे अवतार का नाम का मां कात्यायनी हुआ। मां के इसी स्वरूप ने महिषासुर के अत्याचारों को समाप्त कर पुनः धर्म की स्थापना की।
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