Anand samvatsar

इस वर्ष आनन्द नामक संवत्सर

इस वर्ष देश के पंचांगकारों ने अपने पंचांग में संवत्सर का आनयन कर कुछ ने आनंद संवत्सर तो कुछ ने राक्षस संवत्सर को मान्यता प्रदान की। जिससे हिन्दू धर्म अनुयायीयों में भ्रम जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है।

काशी विद्वत परिषद वनारस के विश्व प्रसिद्ध ज्योतिषियों ने आनलाईन बैठक कर सनातन धर्मावलम्बियों के आनन्द नामक सम्वत्सर सम्बन्धि भ्रम को दूर करने का प्रयास किया। आज के लेख में हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि कैस इस वर्ष आनन्द नामक संवत्सर होगा।

आचार्यों ने सौरमान, चान्द्रमान तथा मध्यम गुरूमान से प्रभवादि सवत्सरों की प्रवृत्ति माना है।

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प्रभवादि संवत्सर विवेचन-

यथा महर्षि नारदमुनि, “गृह्यते सौरमानेन प्रभवाद्यब्द लक्षणम्”, “सौरस्तु मेषादि मीनान्तः।” अर्थात् सौरमेषादि के समय स्पष्टगुरू का जिस प्रभवादि संवत्सर प्रवेश होता है, वहाँ सौर प्रभवादि संवत्सर होता है। इसका विचार दक्षिण भारत में या पश्चिम के देशों में जिस स्थान पर सौरमेषादि से पंचाङ्ग गणना की जाती है वहाँ सौर प्रभवादि संवत्सर होता है।


“तस्यास्तु दक्षिणे भागे सौरमानेन वर्तते ।
एवं संवत्सरो पूर्णे कुर्यादुद्यापन क्रियाम् ||”


इच्छुक पाठकों को इस सन्दर्भ में विशेष कालमाधव आदि में देखना चाहिये ।

चान्द्रप्रभवादि संवत्सर विवेचन


“तत्र चान्दः संवत्सरश्चैत्रशुक्ल प्रतिपदादि फाल्गुनदर्शान्तः।” अर्थात् चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन स्पष्टगुरू मान से जो प्रभवादि संवत्सर का प्रवेश होता है वहीं प्रभवादि संवत्सर चान्द्र प्रभवादि संवत्सर होता है जो वर्षपर्यन्त संकल्पादि में ग्राह्य है तथा स्पष्टगुरू मान से जो मास तथा प्रभवादि संवत्सर होता है उसी का फल विचार संहिता ग्रन्थों में ग्राह्य है।
निर्णय सिन्धु में महर्षि आर्ष्टिवेण के अनुसार सभी शुभकार्यों में चान्द्रप्रभवादि को ही ग्रहण करना चाहिये।
यथा- (निर्णयसिन्धु) (वृ.सं०गुरू चा०अ०श्लो०-१)


स्मरेत्सर्वत्र कर्मादौ चान्द्रसंवत्सरं सदा। नान्यं यस्माद्वत्सरादौ प्रवृत्तिस्तस्य कीर्तिताः।।
नक्षत्रेण सहोदयमुपगच्छति येन देवपतिमन्त्री।
तत्संज्ञ वक्तव्यं वर्ष मासक्रमेणैव ।।


माधवाचार्य के अनुसार भी पाँच कालमान मानव के दैनिक उपयोग में आते हैं यथा– तत्राब्दो माधवमते पञ्चधा सावनः सौर: चान्द्रो नाक्षत्रो बार्हस्पत्य इति।

यद्यपि ज्योतिषे गुरोर्मध्यराशिभोगेन प्रभवादीनां मघादी प्रवृतिरूक्ता, तथापि प्रभवादीनां चान्द्रत्वमप्यस्ति ।
व तत्र चान्द्रोऽब्दः षष्टिभेदः ।

निर्णयसिन्धौ प्रथम परिच्छेद गर्गेणोक्तम् यथा- प्रभवो विभवशुक्ल – क्रोधन क्षयरिति

गुरूप्रभवादि संवत्सर विवेचन

“मध्यगत्या भभोगेन गुरो गौरववत्सरः” इत्यादि कथनानुसार गुरु मध्यम गति से एक राशि भोगकर दूसरी राशि प्रवेश करता है तो उस प्रवेश काल तक एक बार्हस्पत्य
वर्ष या बार्हस्पत्य संवत्सर होता है। उस समय प्रभवादि षष्टि संवत्सरों का गणितागत जो संवत्सर हो उसका प्रवेश होता है।

सूर्यसिद्धान्त अ.१४ में ब्रह्म, दिव्य, पैत्र्य, प्राजापत्य, गौरव, सौर, सावन, चान्द्र एवं नक्षत्र काल में नव प्रकार के काल मानों की चर्चा है। इन नव विधकाल मान में कुछ आचार्यों के मत से मानव जीवन में चार प्रकार के कालमान तथा कुछ आचार्यों के मत से पाँच प्रकार के कालमान का व्यवहार होता है। अर्थात् सौर, सावन, चान्द्र एवं नाक्षत्र कालमान में मानव के दैनिक उपयोग में आते हैं। इसलिये आचार्यों ने इन चार कालमानों को मुख्य माना है। सामान्यतया गुरू एक राशि पर तेरह मास रहता है। इसलिये गौरव (बार्हस्पत्य) मान को स्थूल मानकर इसका ग्रहण नहीं किया जाता है। किन्तु कुछ आचार्यों ने गौरवकाल ग्रहण किया है। इस प्रकार गौरव (बृहस्पति) काल को लेकर पाँच कालमान मानव जीवन के दैनिक उपयोग में आते हैं।

इस वर्ष आनन्द संवत्सर कैसे ?

प्रभव आदि 60 संवत्सरों का निर्णय मध्यम गुरु के कुंभ राशि से आरम्भ कर किया जाता है अर्थात् मध्यम गुरु यदि कुम्भ राशि में है तो प्रभव संवत्सर, मीन राशि में विभव संवत्सर एवं मेष राशि  में शुक्ल संवत्सर होगा ।इसी क्रम में मध्यम गुरु के मेष राशि में आने पर विजय संवत्सर एवं वृष राशि में जय संवत्सर तथा मध्यम गुरु केेेे मिथुन राशि में मन्मथ संवत्सर होगा । आगे इसी क्रम में जब मकर राशि में मध्यम गुरु है तो आनंद संवत्सर होता है तथा कुंभ राशि के मध्यम गुरु में राक्षस नाम का संवत्सर होगा । वर्तमान समय में लगभग सभी पंचांग संशोधित नवीन गणित  चित्रापक्ष से  ही निर्मित किए जा रहे हैं । चित्रापक्ष नवीन संशोधित गणित के अनुसार  संवत् 2078 के चैत्र शुक्ल प्रतिपदा  मंगलवार को  केतकी अहर्गण 3660 है इससे मध्यम गुरु  मकर राशि के 27 वें अंंश  पर आता है। अतः गणना सेे स्पष्ट है कि मध्यम गुरु  के मकर राशि में स्थित होने से संवत 2078 में आनंद संवत्सर है । सूर्य सिद्धांत की  गणना से मध्यम गुरु कुम्भ राशि के 01 अंश पर  आता है अतः  प्राचीन गणित सूर्य सिद्धांत के अनुसार कुम्भ राशि में मध्यम गुरु के स्थित होने से राक्षस नाम का संवत्सर होता है । अतः सिद्ध है कि  संशोधित चित्रापक्ष गणना के अनुसार संवत् 2078 में आनंद नाम का संवत्सर है क्योंकि लगभग सभी पंचांग संशोधित नवीन चित्रापक्ष गणना से ही  प्रकाशित किए जा रहे हैं अतः संवत्सर भी संशोधित गणना के अनुसार ही लिया जाना समुचित है। यस्मिन पक्षे यत्र काले येन दृग्गणितैक्यंं दृश्यते तेन पक्षेण कुर्यात्तिथ्यादिनिर्णयम्।। वसिष्ठ जी के उक्त वचन से स्पष्ट है कि दृग्गणित द्वारा ही पंचांग संबंधी निर्णय लिया जाना चाहिए । अतः संवत् 2078 में आनंद संवत्सर वर्षपर्यंत अनुष्ठान आदि के संकल्प में कहा जाएगा।

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