शैलपुत्री
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
माँ दुर्गा की प्रथम शक्ति माँ शैलपुत्री- दुर्गा देवी के नौ रूपों की पूजा-उपासना विधि विधान पूर्वक की जाती है। जिनका तात्विक परिज्ञान, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व समाज के लिए अति आवश्यक है। यह भी पढ़े-अक्टूबर माह 2020 के त्यौहार एवं पर्व
मां दुर्गा का शैलपुत्री के रूप में पूजन किया जाता है। हिमालय की पुत्री के कारण शैलपुत्री के रुप में विख्यात हुईं। वृष वाहन होने के कारण वृषारूढ़ा के रुप में माता को सर्वत्र पूजा जाता है। देवी दक्षिण हस्त में त्रिशूल और वाम हस्त में कमल से सुशोभित है।
माँ शैलपुत्री की कथा
आद्य शक्ति प्रथम दुर्गा हैं। देवी मां सती के नाम से भी विख्यात हैं।जिनका मार्मिक वृंतात प्राय सभी पुराणों में वर्णित है।
इस सृष्टि के सृष्टा के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति के अनेक कन्या संतति हुईं। उनमें से सती नाम की कन्या का भगवान शंकर के साथ विवाह हुआ। किसी यज्ञ में शंकर भगवान से दक्ष प्रजापति रुष्ट हो गए।
उसके बाद उन्होंने अपने यज्ञ में सभी देवताओं को आमन्त्रित किया, परंतु भगवान शंकर को निमंत्रित नहीं किया। माता सती पिता के घर में हो रहे यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो गई। भगवान शंकरजी ने बहुत समझाया कि उन्हें नहीं निमंत्रित किया गया है।इसलिए उनका में वहां जाना उचित नहीं है।
माता सती के हठ को देखकर शंकरजी ने जाने की अनुमति दे दी। माता सती जब पिता के घर पहुंचीं तो मां को छोड़कर सभी ने उनका व्यंग्य और उपहास किया।दक्ष ने भी भगवान शंकर का अपमान किया। इससे माता सती को बहुत दुख हुआ।
अपने पति का अपमान न सहने के कारण योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर लिया। इस कारण शंकर भगवान ने उस यज्ञ को नष्ट कर दिया।
माता सती द्वितीय जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री के नाम से विख्यात हुईं। पार्वती और हेमवती भी माता के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से होने पर उन की अर्द्धांगिनी बनीं। माता की भक्ति और शक्ति अनंत महत्त्वपूर्ण है।
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