नवग्रहों के मन्त्र तथा उनकी जप संख्या :- ग्रहों का प्रभाव इस संपूर्ण जगत पर साक्षात दिखाई देता है। चाहे वह मनुष्य हो या अन्य प्राणी पेड़ पौधे अथवा धूल मिट्टी कण कुछ भी हो, सभी पर ग्रहों का प्रभाव सदैव रहता है। सभी प्राणियों में मनुष्य सबसे ज्यादा बुद्धिमान माना गया है। अतः मनुष्य अपने ऊपर पढ़ने वाले ग्रहों के अशुभ प्रभाव का ज्ञान कर उसको दूर करने प्रयास करता है।
नवग्रहों में सूर्य चंद्रमा को तो साक्षात ग्रह के रूप में स्वीकार किया गया है कथा मंगल बुद्ध गुरु शुक्र शनि इनको ज्योतिष शास्त्र में तारा ग्रह के रूप में स्वीकृति दी गई है। शेष 2 ग्रह राहु और केतु इन दोनों को छाया ग्रह के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है।
यह नवग्रह सभी प्राणियों पर अपना अलग-अलग प्रभाव उनके पूर्व जन्म के अर्जित कर्मों के आधार पर वर्तमान कर्मों के आधार पर पढ़ता रहता है। जैसा कि मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है तो वह अपने ऊपर पड़ने वाले इन नव ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को सकारात्मक स्वरूप प्रदान करने की दृष्टि से इन नव ग्रहों का पूजा पाठ जब आदि करता है।आज के लेख में हम इन नवग्रहों के विशेष मंत्रों के बारे में जानेंगे और साथ ही यह भी जानेंगे कि इन नवग्रहों के मंत्रों की जाप संख्या शास्त्रों में कितनी बताई गई है। जिसका जाप कर हम पीड़ादायक ग्रह के दोष को कम कर सकते हैं।
ग्रह | मन्त्र | जप संख्या |
सूर्य | ऊँ ह्यं ही हौं स: सूर्याय नमः | 7000 |
चंद्र | ॐ सों सोमाय नमः | 11,000 |
मंगल | ऊँ हूं श्रीं भौमाय नमः | 10,000 |
बुध | ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नमः | 9,000 |
बृहस्पति | ऊँ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पतये नमः | 12,000 |
शुक्र | ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः | 16,000 |
शनि | ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः | 23,000 |
राहु | ऊँ भ्रां भ्री भ्रौं स: राहवे नमः | 18,000 |
केतु | ऊँ ह्रीं ऐं के केतवे नमः | 10,000 |
उपरोक्त वर्णित नवग्रहों के मन्त्र तथा जप संख्या का शुद्धोच्चारण कर इनके कुप्रभाव को कम कर सकते हैें।
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