मंगलदोष के परिहार एवं उपाय:- दाम्पत्य जीवन सुखी हो इसलिए वर कन्या की कुण्डली मिलान के समय मंगल दोष पर सर्वाधिक विचार किया जाता है। क्योंकि जिनकी कुंडली में मंगल दोष रहता हो, उनका दाम्पत्य जीवन ज्योतिषीय दृष्टि से सुखमय नहीं रह पाता। ज्योतिष शास्त्र में मंगल दोष के परिहार में जिन सन्दर्भ उपायों का ध्यान रखा जाता है आज उन उन विषयों के संदर्भ में जानेंगे। यह भी पढे़- प्रबल और निर्बल मंगल दोष विचार
सृष्टि में प्रत्येक समस्या या बाधा का समाधान उपलब्ध है। वरकन्या की कुंडली मिलान में मांगलिक विचार वैवाहिक सुख का निर्णायक होता है। जिस प्रकार कांटे से कांटा निकाला जाता है, उसी प्रकार मांगलिक वर के लिए मांगलिक कन्या का चयन किया जाता है।
मंगलदोष के परिहार एवं उपाय- इसी प्रकार आनंदपूर्ण सुखमय जीवन, समृद्ध, आरोग्य, विघ्नबाधा और क्लेशरहित जीवन की कामना से प्रत्येक मनुष्य ज्योतिषीय उपाय करते रहते हैं। इन्हीं में एक है मंगलदोष परिहार एवं उपाय। । यह भी पढ़े– जन्मकुण्डली से मांगलिक दोष विचार
शास्त्रोक्त मंगल दोष परिहार
मंगलदोष के परिहार एवं उपाय- मंगल दोष वाली कन्या का मंगलदोष वाले वर के साथ यदि विवाह कर दिया जाए तो मंगल दोष का अनिष्ट फल नष्ट हो जाता है।
“कुजदोषवती देय कुजदोषवते किल। नास्ति दोषो न चानिष्टम् दम्पत्यो सुखवर्धनम्।।
यदि कन्या की जन्म कुंडली में जिस स्थान का मंगल दोष है, और वर के उसी स्थान में कोई अन्य शनि सूर्यादि क्रूरग्रह हो तो मंगल दोष नष्ट हो जाता है। यदि वर की जन्मकुंडली में मंगल दोष हो और कन्या के उसी भाव में कोई क्रूरग्रह हो तब भी मंगल दोष नष्ट हो जाता है।
शनिभौमोथवा कश्चित् पापो वा तादृशो भवेत्। तेष्वेव भवनेषु भौमदोष विनाशकृत।।
कुण्डली मिलान में वरकन्या के राशिस्वामी परस्पर मित्र हों या एक ही हो और दोनों का गण एक हो। २७ गुणों से अधिक गुण प्राप्ति पर मंगल दोष नहीं होता है।
राशिमैत्री यदायाति गणैक्य वा यदा भवेत्। अथवा गुण बाहुल्ये भौमदोषो न विद्यते।।
मुहूर्त पारिजात ग्रंथानुसार मेष राशि का मंगल लग्न में, वृश्चिक राशि का चतुर्थ भाव में, मकर का मंगल सातवें घर में, कर्क राशि का आठवें घर में एवं धनु राशि का मंगल 12 वें घर में हो तो मंगल दोष नहीं होता है। यथा-
अजे लग्ने व्यये चापे पाताले वृश्चिके कुजे। द्यूने मृगे कर्किचाष्टौ भौमदोषो न विद्यते।।
मांगलिक दोष के कतिपय सिद्धांत
मंगलदोष के परिहार एवं उपाय- मांगलिक दोष के शास्त्रोंक्त कतिपय सिद्धान्तों का वर्णन यहां किया जा रहा है।
- यदि किसी जातक की कुण्डली में मेष राशि का मंगल लग्न में तो मांगलिकदोष नहीं होता है।
- वृश्चिक राशि का मंगल चतुर्थ भाव में हो तो भी मांगलिकदोष नहीं होता है।
- मकर राशि का मंगल सप्तम भाव में हो तो भी मांगलिकदोष नहीं होता है।
- कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में हो तो भी मांगलिकदोष नहीं होता है।
- धनु राशि का मंगल द्वादश भाव में हो तब भी मांगलिक दोष नहीं होता है।
- मीन राशि का मंगल सप्तम और कुंभ राशि का मंगल अष्टम भाव में हो तब भी मांगलिक दोष नहीं रहता है। यह भी पढ़े- प्रेम विवाह में आकर्षण के ज्योतिषीय कारण एवं उपाय
मांगलिक भंग योग
- द्वितीय स्थान में चंद्रमा और शुक्र की युति हो, गुरु मंगल को देखता हो तब मांगलिक दोष नहीं होता है।
- केंद्रस्थान में राहु हो या राहु और मंगल दोनों केंद्र स्थान में हो तब भी मांगलिकदोष नहीं होता है।
- बलवान गुरु और शुक्र लग्न में या सप्तम भाव में हो।
- नीच राशि अस्त वक्री या शत्रु की राशि में मंगल हो तो इन पांचों मांगलिक स्थानों में मंगल के होने पर भी मांगलिक दोष नहीं होता है।
ग्रहस्थिति द्वारा मांगलिक दोष का परिहार:-
इसी तरह यदि केंद्र (1,4,7,10) और त्रिकोण (5,9) स्थानों में शुभग्रह हों और तृतीय षष्ठ एकादश स्थानों में पापग्रह हों सप्तमेश सप्तम भाव में हो तब भी भौम दोष नहीं होता है।
केन्द्र कोणे शुभादये च त्रिषडायेsप्यसद्ग्रहाः। तदा भौमस्य दोषो न मदने मदपस्तथा ।।
मंगल दोष अथवा मंगलीक का निर्णय कुण्डली विशेष में सभी ग्रहों के पारस्परिक अनुशीलन के पश्चात् सावधानी पूर्वक करना चाहिए। मिलान करते समय केवल मंगल या मंगलीक पर ही अत्यधिक बल न देते हुए मेलापक सम्बन्धी अन्य तत्त्वों का भी सर्वाङ्ग रूप से विवेचन करना चाहिए।
आभार-
डॉ.महेन्द्र कुमार
प्राध्यापक, श्री सनातन धर्म संस्कृत कालेज चण्डीगढ़ 23B
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