जन्मकुण्डली से मांगलिक दोष विचार:- भारतीय ज्योतिषीय शास्त्रीय परंपरा अनुसार वैवाहिक जीवन सुखमय रहे इस निमित्त दोनों पक्षों की कुंडलियों का मिलान करते समय मांगलिक दोष पर सर्वाधिक विचार किया जाता है क्योंकि इसका सीधा सीधा संबंध कुंडली के सप्तम भाव अर्थात विवाह भाव अथवा भार्या पत्नी भाव से रहता है जिनकी कुंडली में मांगलिक दोष रहता है और उनका वैवाहिक जीवन ज्योतिषीय दृष्टि से सुखमय नहीं रह पाता। ज्योतिष शास्त्र में मांगलिक विचार के संबंध में किन किन बातों को ध्यान रखने के लिए कहा गया है इस लेख में हम उन विषयों को जानेंगे।
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मांगलिक दोष विचार
वैवाहिक सुखमय जीवनयापन,धनधान्य की अभिवृद्धि व समृद्धि, आरोग्यता, मनोनुकूल पत्नी, आज्ञाकारी संतान विघ्नबाधा और क्लेशरहित जीवन की इच्छा सभी मनुष्य करते हैं।
मंगल दोष का विचार कुण्डली मिलान के अंतर्गत किया जाता है। मंगल दोष को भौम दोष, कुज दोष, मांगलिक दोष इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। दक्षिण ज्योतिष शास्त्र में इसे कलत्र दोष के नाम से भी जाना जाता है। यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली मंगलदोष से युक्त हो तो उसे मांगलिक कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में मांगलिक दोष का विचार क्रमशः लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव से किया जाता है।
- लग्न से शरीर व स्वास्थ्य का विचार।
- चतुर्थ भाव से भोग उपभोग वस्तुओं का, आवासीय भूमि, वाहन यानसुख एवं गृह भवन आदि का विचार।
- सप्तम भाव से कामसुख मनोनुकूल पति पत्नी का निर्णय किया जाता है।
- जीवन में होने वाली आधि व्याधि जरा पीड़ा मृत्युभय का विचार अष्टम भाव से किया जाता है।
- सदव्यय, शय्यासुख का विचार बारहवें भाव से किया जाता है।
मंगल दोष का अशुभ फल
- लग्नस्थ मंगल शरीर का क्षय करता है।
- चतुर्थ स्थान सभी सुखों का होता है। गृहणी के बिना गृहसुख कैसे प्राप्त हो सकता है।
- सातवां स्थान एवं आठवां स्थान स्त्री से साक्षात संबंध रखता है।
- बारहवां स्थान शय्यासुख, समृद्धि का कारक है और शय्या का सुख बिना पत्नी के संभव नहीं है।
अत: इन स्थानों में बैठा हुआ भौम भावसम्बद्ध सुख का विनाश करता है। वरकन्या की जन्मकुंडली में यदि इन स्थानों में मंगलग्रह की स्थिति हो तो भौमदोष (मांगलिक दोष) होता है। जो भाव फल का नाश करता है।
“लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे।
कन्याभर्तृ विनाशाय भर्ता कन्या विनाशक:।। “
इसी प्रकार यदि कोई अन्य पाप ग्रह भी इन स्थानों में हो तो वह भी कुज दोष कारक होता है। कुछ विद्वानों के मतानुसार कुजदोष:-
कु :- कुत्सित, दुष्प्रभावपूर्ण, क्लेशकारी, निंदित।
ज :- उत्पादक, फलप्रदाता, उत्पन्न करने वाला होता है। जो किसी भी पापग्रह की युति द्वारा संभव है।
” यो यो भाव: स्वामि दृष्टोपयुतो वा सौम्यर्वा स्यात्तस्य तस्याभिवृद्धि:।
पापैरेवं तस्य भावस्य हानिर् निर्दिष्ट व्योमजन्मतो प्रश्नतो वा।।”
अगस्त्य संहिता के अनुसार लग्न की अपेक्षा द्वितीय स्थान में गया हुआ मंगल भौमदोष उत्पन्न करता है और दक्षिण भारतीय केरलीय ज्योतिष इसका मंडन करते हुए द्वितीय भावस्थ भौम को मंगलिकदोष कारक मानता है।
” धने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे।
भार्याभर्तृ विनाशाय भर्तुश्च स्त्री विनाशनम्।।”
यदि लग्न शरीर का कारक है तो चंद्रमा मन और मस्तिष्क का, शुक्र रतिसुख का कारक है। दांपत्य जीवन में शरीर की अपेक्षा मन अधिक प्रभावी होता है, शरीर और मन दोनों की तुलना में रतिसुख महत्वपूर्ण माना गया है। यह भी पढ़े- प्रेम विवाह में आकर्षण के ज्योतिषीय कारण एवं उपाय
विविध विद्वानों के मतानुसार मांगलिक योग:-
- लग्न की अपेक्षा चंद्र कुंडली से अधिक दुष्प्रभावी होता है।
- शुक्र लग्न से सर्वाधिक दुष्प्रभावपूर्ण मानते हैं।
- कतिपय विद्वानों के मत से सप्तम भाव से भी मांगलिक योग का विचार किया जाता है परंतु यह योग सदैव समान ना होकर के ह्रास और वृद्धि को प्राप्त करते हैं।
अतः ग्रहमेलापक में चंद्रलग्न और शुक्रलग्न से भी यह विचार अवश्य ही करना चाहिए।
दम्पत्यो जन्मकाले व्ययधनहिबुके सप्तमे लग्न – रंध्रे।
लग्नाच्चंद्राच्च शुक्रादपि भवति यदि भूमिपुत्रे द्वयोर्वै।
मंगल के समान ही अन्य पापग्रह शनि सूर्य राहु केतु का संबंध वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं कहा गया है कभी-कभी लग्न चतुर्थ सप्तम अष्टम और द्वादश भाव में बैठे हुए यह पापग्रह मांगलिक दोष कारक होते हैं।
लग्नेक्रूरा व्ययेक्रूरा धनेक्रूरा: कुजस्तथा ।
सप्तमेभवने क्रूरा: परिवार क्षयंकरा:।।
कुछ विद्वानों के अनुसार सूर्य से यह विचार करना चाहिए अर्थात चतुर्थ अष्टम द्वादशस्थान में गया हुआ सूर्य हो तो, विवाहित वर की मृत्यु की प्राप्ति होती है।
“अष्टमेचतुर्थे च द्वादशे दिवाकरे। विवाहितो वरो मृत्युन प्राप्नोती न संशय।”
विचारणीय बिन्दु
- जिनकी कुंडली में प्रथम भाव में मंगल ग्रह हो तो वह मांगलिक होता है
- कुंडली के चतुर्थ भाव में मंगल होने पर मंगल दोष रहता है
- कुंडली के सप्तम भाव में मंगल ग्रह होने पर जातक मांगलिक होता है
- अष्टम भाव में मंगल ग्रह होने पर लड़का अथवा लड़की मांगलिक होती है
- कुंडली के बारहवें भाव में मंगल होने पर जातक मांगलिक माना जाता है
इस प्रकार वर की जन्मकुण्डली में लग्न से, चन्द्रमा से,और शुक्र से पांचों भावों (1,4,7,8,12) में स्थित हुए मंगलादि पापग्रह मांगलिक दोषकारक होते हैं। जो कन्या के लिए हानिप्रद होते हैं,और यदि कन्या की कुण्डली में हो तो वर के लिए हानिप्रद हैं। यह निर्णय ज्योतिर्विदों द्वारा किया जाता है।
आभार-
डॉ.महेन्द्र कुमार
प्राध्यापक, श्री सनातन धर्म संस्कृत कालेज चण्डीगढ़ 23B
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