मंगल दोष विचारमंगल दोष विचार

मांगलिक दोष यह शब्द सुनकर बहुत बार हम घबरा जाते हैं। परंतु भारतीय ज्योतिष शास्त्र परंपरा में मांगलिक दोष के ऊपर सूक्ष्म अति सूक्ष्म विचार किया गया है। मांगलिक दोष प्रबल एवं निर्बल दोनों तरह का होता है अर्थात् बहुत ज्यादा मांगलिक दोष और बहुत कम मांगलिक दोष। जिन जातकों की कुंडली में मंगल दोष बहुत ज्यादा होता है अर्थात ज्यादा प्रबल होता है उनके विवाह संबंधी अथवा वैवाहिक जीवन में ज्यादा समस्या एवं कष्ट रहते हैं। शास्त्रानुसार जातक की मृत्यु होने का वर्णन प्राप्त होता है।

आज के लेख में हम जन्मकुण्डली में मंगल दोष कितना प्रबल और कितना निर्बल रहता है इसके बारे में विस्तृत रूप से जानेंगे। यह भी पढ़े- जन्मकुण्डली से मांगलिक दोष विचार 

शास्त्रोक्त मंगल दोष विचार

सप्तम भाव दांपत्य जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। इस भाव में पाप ग्रह की स्थिति अधिक हानिप्रद है। लग्न में सप्तम की अपेक्षा अल्प प्रभावपूर्ण, चतुर्थ स्थान में लग्न की अपेक्षा और अल्प प्रभावपूर्ण मानते हैं। इस प्रकार सप्तम लग्न चतुर्थ अष्टम द्वादश स्थान में मांगलिक दोष का दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर कम होता जाता है।

प्रबल और निर्बल मांगलिक दोष विचारज्योतिषशास्त्र मांगलिकदोष की प्रमाणिकता और दुष्प्रभाव को दर्शाता है। अतः कुंडली मिलान में मांगलिक का दुष्प्रभाव ज्ञातकर उसका फल भी जानना चाहिए जैसे कि भाव में प्रबल मांगलिक और किस भाव में अल्प या आंशिक मांगलिक होता है।

नारद जी मंगल को अष्टमभाव और लग्न में महादोषयुक्त अर्थात् प्रबल मांगलिक मानते हैं।

“कुजाष्टमे महादोषो लग्नादष्टमे कुजे।”

‘गर्गाचार्य के मत में लग्न, सप्तम और अष्टमभाव में मंगल का दुष्प्रभाव अधिक कहा है।’


वर की कुंडली में इन स्थानों में मंगल की युति हो तो वह भी कन्या का विनाश करता है और यदि कन्या की कुंडली में यह स्थिति हो तो वर का विनाश जानना चाहिए।

“कन्यानाशस्तु तनुमद मृत्युस्थे भौम:।

कुजे अष्टमे मूर्तिगते अथवास्ते।।

वरस्य नाशम् प्रवदंतीति गर्गा:।।”

इस प्रकार लग्न सप्तम और अष्टम भाव अधिक दुष्प्रभावी अर्थात मांगलिक है।

वर कन्या की कुंडली में मंगल शनि सूर्य राहु केतु क्रूरग्रह पांचभावों में अवांच्छित क्लेशप्रद और दुखदायक कहे गए हैं। यहां भी मंगल और शनि कृत मांगलिक दोष वैवाहिक जीवन में विशिष्ट हानिकारक कहे गए हैं। यह भी पढ़े- घर की इस दिशा में कूड़ेदान को कभी ना रखें, अन्यथा होगी हानि

मंगल दोष विचार हेतु ध्यातव्य बिन्दु

  • मंगल की अपेक्षा शनि,
  • शनि की अपेक्षा सूर्य,
  • सूर्य की अपेक्षा राहु,
  • राहु की अपेक्षा केतु कम दुष्प्रभावपूर्ण अर्थात अल्पघातक होते हैं।

मंगल दोष का विश्लेषण

चतुर्थ अष्टम और द्वादश स्थान में सूर्य दांपत्य जीवन के लिए हानिप्रद और वरकन्या का नाशक कहा गया है। ज्योतिष शास्त्रानुसार उच्चराशि गत ग्रह, मूलत्रिकोण, मित्रराशि और स्वराशि में स्थित ग्रह का फल अधिक होता है किंतु नीच व शत्रुराशि और अस्तगत ग्रह का अल्पफल कहा गया है।

परस्पर तुलना कर प्रबल व अल्पदोष का निर्णय करना भ्रामक हो सकता है। इसलिए ज्योतिर्विद को वरवधू की कुंडली का गणितीय विश्लेषण कर भी मांगलिक दोष की प्रबलता न्यूनता ज्ञात करनी चाहिए।

आभार-

डॉ.महेन्द्र कुमार

प्राध्यापक, श्री सनातन धर्म संस्कृत कालेज चण्डीगढ़ 23B

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2 thought on “प्रबल और निर्बल मंगल दोष विचार | Mangl dosh Vichar”
  1. अति उत्तम बहुत अच्छा लगा पढकर धन्यवाद महोदय ।

  2. धन्यवाद नरेश जी। आपके द्वारा दिया गया पुनर्बलन ही हमें आगे और अच्छे लेख लिखने के लिए प्रेरित करेगा। आप अपना स्नेह ऐसे ही बनाए रखें। आपका आभार

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