प्रेम विवाह में आकर्षण का ज्योतिषीय कारण एवं उपाय:- हमारे प्राचीन सनातन धर्म में प्रारंभिक अवस्था में कोई निश्चित सामाजिक बंधन, कानून या फिर नैतिक नियम नहीं था । सभी मनुष्य भी पशुवत् यौनाचार करता था। जिस कारण से समाज में अव्यवस्था एवं अराजकता ही फैली रहती थी । फलस्वरूप यथासमय यौन नियंत्रण के लिए विवाह नामक संस्कार की स्थापना हुई। स्मृतिकारों ने जिन 16 संस्कारों का वर्णन किया है। उनमें से एक विवाह संस्कार भी है।
यह संस्कार संतान परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखने, आत्म संयम, आत्मोत्सर्ग एवं पारस्परिक सहयोग के द्वारा जीवन में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति हेतु नर -नारी युग्म को एक सूत्र में बांधने का प्रयास मात्र था। विवाह का सर्वोपरि मूलभूत उद्देश्य काम को मर्यादित रूप अथवा लोकोपकारी रूप समाज में प्रस्तुत करना था। यह संस्कार विवाह के बाद पति पत्नी को पाप से बचाता है।
वैदिक समाज में विवाह का स्वरूप
वैदिक समाज में विवाह का स्वरूप पूर्ण रूप से प्रतिष्ठित हो चुका था । नर – नारी संबंधों को विवाहिक मर्यादा में अनुशासित करते हुए हमारे ऋषि-मुनियों ने आठ प्रकार के विवाह को स्वीकार किया है। जिसमें ब्रह्म, दैव, प्राजापत्य, आसुर, गंधर्व, राक्षस और पैशाच है। पुनः इन आठ प्रकार के विवाहों को दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है । प्रथम चार प्रकार के विवाह प्रशस्त तथा अंतिम चार प्रकार के विवाह को समाज में मान्यता नहीं दी गई है। इन्हीं चार में गंधर्व विवाह आजकल के अनुसार प्रेम विवाह के रूप में स्वीकार किया जाता है। जो कि प्राचीन मत के अनुसार अप्रशस्त श्रेणी में आता है। हिमालय की तराई में स्थित गंधर्व समुदाय द्वारा अंगीकृत यह विवाह प्रकार गांधर्व कहलाता है।
मनु के अनुसार-
इच्छयाऽअन्योन्यसंयोगः कन्यायाश्च वरस्य च ।
गांधर्वः स तु विज्ञेयो मैथुन्यः कामसम्भवः ॥ -मनु स्मृति
अर्थ – कन्या एवं वर की इच्छा और परस्पर सहमति से स्थापित संबंध, जो शारीरिक संसर्ग तक पहुंच सकते हैं, की परिणति के रूप में हुए विवाह को ‘गांधर्व’ विवाह की संज्ञा दी गई है। परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना ‘गंधर्व विवाह’ कहलाता है।
वैदिक काल में उचित वर्ग चयन हेतु योजन संपन्न कन्या को उसके माता पिता की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अनुमति सहमति आज्ञा प्राप्त होती थी। राग आधारित होने से इसे स्वस्थ और धर्म विहीन होने के कारण इसे अप्रशस्त के रूप में स्वीकार किया गया
वर्तमान में प्रेम विवाह को प्रोत्साहन मिल रहा है। क्योंकि दहेज की कुप्रथा को रोकने में सहयोग मिल रहा है। हां यह बात सही है कि देश, काल एवं परिस्थितियों के अनुसार इसके स्वरूप में परिवर्तन हो रहा है।
संतान के ऊपर अपना स्वामित्व, लाड प्यार और पारिवारिक अनुशासन के कारण विवाह का यह स्वरूप क्षीण हुआ है। यूं तो प्रेम का अर्थ अत्यंत व्यापक है। लेकिन यहां प्रेम का अर्थ अविवाहित युवक और युवती के बीच शाश्वत आकर्षण वाले प्रेम से हैं। परंतु वर्तमान में प्रेम का जो घृणित रूप सामने आ रहा है। प्रेम शब्द को लोगों ने दूषित कर दिया है। कामातुर दो व्यक्ति अपनी काम पिपासा शांत करने के लिए प्रेम को साधन के रूप में प्रयोग कर रहे है। यदि कोई कामातुर व्यक्ति किसी नवयुवती या महिला से प्रेम करने लगे या कोई कामातुर स्त्री किसी पुरुष से प्रेम करने लगे तो क्या इसे प्रेम कहेंगे ? कदापि नहीं । उसे व्यभिचार कहा जाएगा । क्योंकि विवाह संस्कार जिस यौन नियम के लिए बना है यह उसका उल्लंघन है ।
निष्कर्ष यह है कि यदि व्यक्ति दैहिक अंतरंगता का आनंद लेने अथवा यौन सुख हेतु मिथ्या प्रेम प्रदर्शन करें। तो यह प्रेम का दूषित हुआ स्वरूप है। इसे चरित्रहीनता से परिभाषित किया जाएगा । युवक-युवती के बीच आकर्षण के पश्चात ही प्रेम या प्रीति जागती है। लेकिन यह आकर्षण किन-किन के बीच संभव होगा यह भी एक ईश्वरीय विधान है।
प्रेम विवाह में आकर्षण के कारण
जन्म कुंडली में ग्रहों की पारस्परिक स्थिति के आधार पर इस विधान को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। इस आकर्षण के फलस्वरूप युवक-युवती में प्रेम हो जाता है। लेकिन कोई जरूरी नहीं कि प्रत्येक युगल के आकर्षण से निर्मित प्रेम विवाह के रूप में परिणित हो जाए। ग्रहों की ऐसी स्थिति यहां है जो विपरीत लिंगी को आकर्षित कर प्रेम जाल में उलझा लेती है । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार परस्पर आकर्षित युवक – युवती की कुंडली में सामान्य निम्न नियम पाए जाते हैं
- दोनों की चंद्र राशि समान हो।
- दोनों के चंद्र लग्नेश एक ही भाव में हो ।
- दोनों ही चंद्र राशियों का स्वामी एक ही ग्रह हो जैसे मेष- वृश्चिक, वृषभ -तुला , मिथुन- कन्या, धनु- मीन या मकर- कुंभ।
- युवती की जन्म कुंडली में एक ग्रह जिस भाव में है पुरुष की कुंडली में वही ग्रह उससे सप्तम भाव में हो जैसे स्त्री की कुंडली में मंगल प्रथम भाव में हो तो वह ऐसे पुरुष की ओर आकर्षित होगी जिसके सप्तम भाव में मंगल होगा। यदि ऐसा युग्म वैवाहिक बंधन में बंधेगा तो पारस्परिक प्रीति उत्पन्न होगी। मांगलिक दोष का प्परिहार भी हो जाता है और दांपत्य सुखी होगा। इस प्रकार स्त्री की जन्मपत्री में गुरु चतुर्थ में हो और पुरुष की जन्म कुंडली में गुरु दशम में हो अर्थात एक दूसरे के सप्तम भाव में वही ग्रह हो तो दांपत्य जीवन परस्पर आकर्षण युक्त होता है।
- स्त्री की जन्म कुंडली में लग्नेश , सप्तमेश या शुक्र जिस भाव में हो , पुरुष जन्म कुंडली में उपर्युक्त ग्रह उसी भाव में हो अथवा चंद्र लग्नेश जिस भाव में हो उस से सप्तम भाव में उपयुक्त ग्रह पुरुष कुंडली में हो।
- दोनों की चंद्र लग्न पर एक ही ग्रह की दृष्टि हो जैसे- दोनों के चंद्रमा को गुरु या बुध देखता हूं ।
- दोनों की कुंडलियों में 2 ग्रहों में पारस्परिक युति / दृष्टि संबंध हो जैसे -स्त्री की कुंडली का मंगल पुरुष के शुक्र को देखता हो तथा पुरुष का मंगल स्त्री के शुक्र को देखता हो।
- दोनों की चंद्र राशि समसप्तक हो जैसे -स्त्री का चंद्रमा कर्क राशि में हो तथा पुरुष का चंद्रमा मकर राशि में हो।
- स्त्री की कुंडली में मुख्य ग्रह शुक्र, मंगल या चंद्रमा जिस भाव में हो उससे त्रिकोण ( 1,5, 9 ) में वही ग्रह पुरुष की कुंडली में हो।
- पुरुष का सप्तमेश जिस राशि में हो उसी राशि में स्त्री का चंद्रमा हो अथवा स्त्री का सप्तमेश जिस राशि में हो उसी राशि में पुरुष का चंद्रमा हो।
- स्त्री की कुंडली में मुख्य कारक ग्रह जिस भाव में हो वह ग्रह पुरुष कुंडली में उसी भाव में हो।
- स्त्री की लग्न राशि पुरुष की चंद्र राशि हो और पुरुष की लग्न राशि स्त्री की चंद्र राशि हो जैसे- स्त्री का लग्न कुंभ है तो पुरुष का चन्द्र कुंभ राशि में हो तथा स्त्री का चंद्र तुला राशि में हो तो पुरुष का लग्न तुला लग्न हो।
प्रेम विवाह के उपाय-
1) शुक्र की पूजा करें ।
2) पंचमेश व सप्तमेश ग्रह की पूजा करें ।
3) पंचमेश का रतन धारण करें।
4) ब्लू टोपाज पहने। चंद्रकांतमणि पहने।
5 ) इत्र का प्रयोग करें ।
6 ) रेशमी वस्त्र धारण करें।
प्रेम विवाह कारक ग्रह या फिर बाधक ग्रह जो योगकारक हो उसी का परिहार करने से प्रेम विवाह को शाश्वत और चिरस्थाई बनाया जा सकता है।
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