सन्तान प्राप्ति योगसन्तान प्राप्ति योग

जन्मकुण्डली से जानें संतान प्राप्ति के योग:- इस संसार में ज्योतिष शास्त्र ही एक मात्र ऐसा शास्त्र है जो हमें भविष्य की सम्भावनाओं से अवगत कराता है। ज्योतिष शास्त्र के होरा नामक स्कन्ध के जातकालंकार, वृहत्होरापराशर आदि ग्रन्थों में कईं प्रकार के योगों का वर्णन मिलता है। वह चाहे राजयोग हों, विद्यायोग हों, विवाहयोग हो, अथवा सन्तानयोग हों सभी प्रकार के विषयों का वर्णन होरा स्कन्ध के ग्रन्थों में मिलता है। आज के लेख में हम जन्मकुण्डली से जानें सन्तान प्राप्ति के योग के बारे में जानेंगे।

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संतान प्राप्ति के योग

मनुष्य सौभाग्य आरोग्य धनधान्य समृद्धि बहुविध अभिवृद्धिपूर्ण सुखमय जीवन की कामना करता है। वह चाहता है कि माता पिता का परमसुख, मनोवृतानुसारिणी पत्नी आज्ञाकारी संतान उसे प्राप्त हो। बाल्यावस्था और युवावस्था मनुष्य जैसे कैसे व्यतीत कर लेता है, परंतु वृद्धावस्था में संतान का सुख अपेक्षित रहता है।

ज्योतिष शास्त्र के द्वारा संपूर्ण मानवजीवन के विषय में जन्मकुंडली से ही ज्ञात होता है। जैसे की कुंडली में प्रथम भाव से शारीरिक सुख, चतुर्थ भाव से मातृ,  दशम से पितृ, सातवां भाव से पत्नी का और पांचवे भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है।

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संतान सुख

पांचवें भाव से कन्या संतति या पुंसंतति का विचार किया जाता है। भावी संतान की योग्यता या अयोग्यता, माता पिता को प्रसन्नचित्त, सुखप्रद या दुखदायी संतान का विचार इस भाव से किया जाता है।इस प्रकार पंचम भाव से संतान का विचार किया जाता है।

उसी प्रकार ग्रहों में मुख्य रुप से बृहस्पति को संतान का कारक माना जाता है। अतः पंचम भाव में ग्रह के युति और स्थिति को देखना चाहिए। यदि वहां पर जलीय राशियों में चंद्रमा शुक्र या इनके साथ बुध हो तो प्रथम कन्या संतति  और अग्नितत्व राशियों में यदि सूर्य और शनि हो तो पुत्र संतति विचार किया जाता है।

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पुत्र प्राप्ति योग

  • मकर या कुंभ से पंचम भाव में शनि हो तो एक पुत्र होता है।
  • यदि पंचम भाव में कुंभ राशि का शनि हो तो 5 पुत्र होते हैं।
  •  यदि मकर राशि का मंगल हो तो तीन पुत्र होते हैं।
  • यदि पंचम भाव में एकाकी बृहस्पति हो तो भी पुत्र प्राप्ति होती है।

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कन्या संतति

  • यदि पंचम भाव में कर्क राशि का चंद्रमा हो तो कन्या संतति या अल्प संतति होती है।
  • यदि पंचम भाव में मकर राशि का शनि हो तो तीन पुत्रियां होती है।
  • यदि पंचम भाव को देखता हुआ शनि एकादश भाव में हो तो कन्या संतति की प्राप्ति होती है।
  • नवम भाव में एक से अधिक पापग्रह कन्या संतान देने वाले होते हैं।
  • यदि पंचम भाव में बुध शुक्र और चंद्रमा मैं से कोई ग्रह हो तो कन्या संतान की प्राप्ति होती है।

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संतान विलंब योग

  1. यदि चतुर्थ भाव में बृहस्पति हो और पांचवे या अष्टम भाव में चंद्रमा हो तब 30 वर्ष की आयु के उपरान्त संतान की प्राप्ति होती है।
  2. पंचम भावमें एकाकी बृहस्पति भी क्षणिक बाधक होकर विलंब से संतान प्राप्ति होती है।
  3. यदि बृहस्पति पंचम भाव में हो और उससे पंचम भाव में कोई पाप ग्रह हो तो संतान का अभाव होता है।
  4. पांचवें भाव में शुभग्रह की दृष्टि से रहित जितने पापग्रह हों उतने वर्षों तक संतान का विलंब रहता है।

संतान बाधा

  1. पंचमेश या पंचम भाव  पापग्रह से युत हो तो संतान बाधा होती है।
  2. पंचमेश शत्रुराशि, नीच राशि या अस्तगत हो तो संतान बाधा होती है।
  3. पंचमेश त्रिक स्थान(षष्ठ अष्ट द्वादश भाव में हो तो संतान बाधा होती है।
  4. शनि मंगल और राहू पंचमेश या पंचम भाव को प्रभावित करते हों तो संतान बाधा होती है।
  5. लग्नेश पंचमेश नवमेश त्रिक स्थान में हों तो भी संतान बाधा होती है।
  6. बृहस्पति या बृहस्पति से पंचम भाव का स्वामी यदि त्रिक स्थान में हो तब भी संतान बाधा होती है।
  7. पंचम भाव में मेष, वृष और कर्क राशि के राहु केतु हों तो शीघ्र ही संतान प्राप्ति होती है।

संतान बाधा के कारण

पंचम भाव में मंगल हो तो बार-बार गर्भपात होता है यदि पंचम भाव में शनि राहु केतु या सूर्य हो तो संतान होकर मर जाती है।

बृहस्पति और शुक्र यदि बाधक हो तो शारीरिक शिथिलता के कारण, और शनि राहु केतु बाधक हो तो वंशेश के कोप से और यदि राहु के नवांश में पंचमेश हो तो भूत प्रेत आदि के कारण संतान बाधा उत्पन्न होती है।

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आभार-

डॉ.महेन्द्र कुमार

प्राध्यापक, श्री सनातन धर्म संस्कृत कालेज चण्डीगढ़ 23B

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