वाटिकावास्तु वास्तुशास्त्र के अनुसार वाटिका निर्माण :- मनुष्य इस धरती पर एक मात्र ऐसा प्राणी है जो हमेशा कुछ ना कुछ नया करने का प्रयास करता रहता है । क्योंकि मनुष्य हमेशा से ही एक जिज्ञासु प्राणी रहा है इसलिए वह सभी प्राणीयों में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है ।
वास्तु अनुसार वाटिका निर्माण
“आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है” इस उक्ति से ज्ञात होता है कि आवश्यकता के लिए मनुष्य हमेशा नित नये अविष्कार, खोज आदि कार्यों में संलग्न रहा है जिसका स्वरूप हम वर्तमान में कईं प्रकार के अविष्कारों तथा अन्वेषणों के रूप में देख पातें हैं। इन्हीं खोजों तथा अविष्कारों में से एक स्वरूप आज हम ज्योतिष शास्त्र के रुप में देख पाते हैं जो कि हमारी प्राचीन संस्कृति तथा ज्ञानगंगा का द्योतक है। यह भी पढ़े- व्यापार वृद्धि के लिए वास्तु टिप्स
वास्तुशास्त्र के अनुसार वाटिका निर्माण- ज्योतिषशास्त्र का विषयवस्तु क्षेत्र बहुत विस्तृत है जिसके अनेक विषय आज भी समाज में अपनी उपयोगीता बनाये हुए हैं । ज्योतिष शास्त्र के इन्हीं विषयों में से एक ऐसा विषय हैं जो आज भी आधुनिक परिवेश में बिना किसी विवाद के अपना स्थान उपयोगीता के साथ बनाये हुए है वह है वास्तुशास्त्र ।
आज हम इस लेख के माध्यम से वास्तुशास्त्र के अनुसार वाटिका निर्माण के बारे में जान पायेंगे।
नवग्रह
ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए मंत्रपाठ , हवन , ध्यान और उपाय संबंधी रत्नों का उपयोग किया जाता है। इन सभी के अत्यधिक मूल्यवान होने से कई बार ये सभी सामान्य जन की पहुंच से दूर होते हैं। इस स्थिति में कुछ पौधों की जड़ो का प्रयोग रत्नों के विकल्प के रूप में किया जाता है।
पृथ्वी से आकाश की ओर देखने पर स्थिर दिखने वाले ग्रह नक्षत्र पिण्डादि को और स्थिति बदलते रहने वाले पिण्डों अथवा छायाओं को ग्रह कहते हैं। ग्रह का अर्थ है पकड़ना अथवा ग्रहण करना।
भारतीय ज्योतिष परम्परा के अनुसार ग्रहों की संख्या 9 मानी गयी है, जैसा निम्र श्लोक के वर्णन से प्राप्त होता है-
अथ खेटा रविचन्द्रो मङ्गलश्च बुधस्तथा ।
गुरुः शुक्रः शनी राहुः केतुश्चैते यथाक्रमम् ।।
अर्थात् सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि राहु और केतु ये नव ग्रह हैं। – शब्द कल्पद्रुम इनमें प्रथम 7 तो पिण्डीय ग्रह हैं और अन्तिम दो राहु और केतु पिण्ड रूप में नहीं हैं बल्कि छाया ग्रह हैं।
ऐसी मान्यता है कि इन ग्रहों की विभिन्न नक्षत्रों में स्थिति का विभिन्न मनुष्यों पर विभिन्न प्रकार का प्रभाव पड़ता है, ये प्रभाव अनुकूल और प्रतिकूल दोनों होते हैं। ग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों के शमन के अनेक उपाय बताये गये हैं जिनमें एक उपाय यज्ञ भी है।
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नवग्रह अनुसार वनस्पतियां
नवग्रह अनुसार वनस्पतियां- यज्ञ द्वारा शान्ति के उपाय में हर ग्रह के लिए अलग-अलग विशिष्ट नवग्रह वनस्पतियों की समिधा (हवन) प्रयोग की जाती है, जैसा निम्नश्लोक में वर्णित है-
अर्कः पलाशः खदिरश्चापामार्गोऽथ पिप्पलः।
औडम्बरः शमी द्रूवा कुशश्च समिधः क्रमात्।।
अर्थात अर्क (मदार), पलाश, खदिर (खैर), अपामार्ग (लटजीरा), पीपल, ओड़म्बर (गूलर), शमी, दूब और कुश क्रमश: (नवग्रहों की) समिधायें हैं।
नवग्रह अनुसार वनस्पतियों की सूची निम्र प्रकार से देख सकते है-
ग्रह | संस्कृत नाम | हिन्दी नाम | आङ्गल नाम |
1. सूर्य | अर्कः | आक | कैलोट्रपिस प्रोसेरा |
2. चन्द्र | पलाशः | ढाक | ब्यूटिया मोनोस्पर्मा |
3. मंगल | खादिरः | खैर | अकेसिया कटेचू |
4. बुध | अपामार्गः | लटजीरा | अकाइरेन्थस एस्पेरा |
5. बृहस्पति | पिप्पलः | पीपल | फाइकस रिलीजिओसा |
6. शुक्र | औदुम्बरः | गूलर | फाइकस ग्लोमरेटा |
7. शनि | शमी | छयोकर | प्रोसोपिस सिनरेरिया |
8. राहु | दूर्वा | दूब | पाइनोडान डेक्टाइलान |
9. केतु | कुशः | कुशा | डेस्मोस्टेचिया बाईपिन्नेटा |
ग्रह शांति के यज्ञीय कार्यों में सही पहचान के अभाव में अधिकतर लोगों को सही वनस्पति नहीं मिल पाती, इसलिए नवग्रह वृक्षों को धार्मिक स्थलों के पास रोपित करना चाहिए ताकि यज्ञ कार्य के लिए लोगों को शुद्ध सामग्री मिल सके । यही नहीं, यह विश्ववास किया जाता है कि पूजा-अर्चना के लिए इन वृक्ष वनस्पतियों के संपर्क में आने पर भी ग्रहों के कुप्रभावों की शांति होती है। वर्तमान में भी देखा गया है कि इन्हीं वृक्षों का विवाहकृत्यों पर पूजन का विधान प्राप्त होता है। अतः नवग्रह वनस्पतियों के रोपण की महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है।
नवग्रह वाटिका निर्माण
नवग्रह वाटिका- मानव का प्रकृति, पेड़-पौधों के साथ सदियों से अटूट सम्बन्ध रहा है। वृक्ष, मानव जीवन का आधार है। पेड़-पौधों का बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने में ही नहीं , बल्कि जलवायु एवं वातावरण के संतुलन में भी सर्वोपरि योगदान रहता है। वृक्षों से हमें फल, फूल, औषधि और लकड़ी आदि तो मिलती ही है, साथ ही घर और अपने आसपास के वातावरण को शुद्ध करने तथा आनन्ददायक बनाने में भी सहायता प्राप्त होती है।
नवग्रहवाटिका का रेखा चित्र–
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वास्तुशास्त्र के अनुसार गृह वाटिका
निवास योग्य घरों में कौन-कौन से वृक्ष लगाने चाहिए? कौन से नहीं लगाने चाहिए इस पर भारतीय मनीषियों का बृहद् चिन्तन प्राप्त होता है।
भारतीय संस्कृति में वृक्षों का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । आयुर्वेद के जनक महर्षि चरक ने भी वातावरण की शुद्धता के लिए विशेष वृक्षों का महत्त्व बताया है । वास्तु शास्त्र में वृक्ष रोपण के सन्दर्भ में गृहरत्नविभूषणनामक ग्रन्थ में विस्तृत रूप में चर्चा प्राप्त होती है।
यथा-
शस्तं पूर्वं वटं गेहादुदुम्बरतरुं यथा ।
याम्येऽश्वत्थं पश्चिमे च सौम्ये प्लक्षं सुशोभनम् ।।
वास्तुमध्ये स्वर्णतुल्यं वृक्षं s नैव तु रोपयेत् ।
रोपयेत् तुलसीवृक्षं सुखदं ह्यजिरे बुधः।।
अर्थात् घर की किस दिशा में कौन से वृक्ष लगाना शुभ हैं । घर के पूर्व में वटवृक्ष, दक्षिण में गूलर, पश्चिम में पीपल और उत्तर में पाकड़ का वृक्ष शुक्ष है। गृह के मध्य में सुवर्ण के समान दिखने वाले वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। सुख चाहने वाले विद्वान लोगों को घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगाना चाहिए।
यत्र तत्र स्थिता वृक्षा बिल्वदाडिम्बकेशराः।
पनसो नारिकेलश्च शुभं कुर्वन्ति नित्यशः ।।
राजमार्तण्ड के वचनानुसार आवासीय घर के समीप बेल, अनार, नागकेशर, कटहल और नारियल के वृक्ष हमेशा शुभफलकारी होते हैं।
सुरदारुचन्दन शमी मधूकतरवः तथा।
ब्राह्मणानां शुभा वृक्षा सर्वकर्मषु शोमनाः।।
देवदारु चन्दन शमी महुआ ये वृक्ष ब्राह्मणों के लिए शोमन और सब कर्मों के लिए श्रेष्ठ हैं। कुछ विद्वान इन्हें ब्राह्मण वृक्ष भी कहते हैं। ज्ञान के पिपासु एवं आध्यात्मिक लोगों के लिए ये वृक्ष उत्तम फल को देने वाले कहे गये हैं।
क्षत्रियाणां तु खदिर बिल्वार्जुन कंशिशियाः।
शाल तनीक सरला नृपवेश्मि सिद्धिदा।।
अर्थात् शाल खदिर तुनिका सरल ये वृक्ष क्षत्रियों के लिए राजाओं के लिए राज कर्मियों के लिए शुभ होते हैं इनकी कठोरता एवं दृढ़ता के कारण ये वृक्ष क्षत्रीय वृक्ष कहलाते हैं।
वैश्यानां खादिरं सिन्धुस्यंदनाश्च शुभवहाः ।
अर्थात् वैश्यवर्ग के लिए व्यापारी लोगों के घरों के बाहर खदिर सिन्धु स्पंदन ये वृक्ष शुभफलदायी कहे गये हैं।
तिन्दुकार्जुनशाशाश्च वैसराम्राश्च कण्टकाः।
ये चान्ये श्रीरिवृक्षाश्च ते शूडाणां सुभावहा।।
तिन्दुक अर्जुन शाश वैसर आम कंटक और अन्य जो क्षीरवृक्ष( दुध देने वाले)वृक्ष हैं, वे शूद्रों के लिए सेवाधारी व्यक्तियों के लिए शुभ कहे गये हैं।
वास्तु शास्त्रकार कहते हैं कि पहले भूखण्ड को वृक्षादि से सुशोभित करें, पहले शुभ मुहूर्त में भूखण्ड पर वृक्ष लगाएं पीछे गृह का निर्माण करें, अन्यथा वह शुभ नहीं होता।
जम्बीरैः पुष्पवृक्षैश्च पनसैर्दाडिमैस्तथा ।
जातीभिर्मल्लिकाममिश्च शतपत्रैश्च केसरैः
नालिके रैश्च पुष्पैश्च कर्णिकारैश्च किशंकैः ।
वेष्टितं भवनं नृगां सर्वसौख्य प्रदायकम् ।।
आदौ वृक्षाणि विन्यस्म पश्चाद् गेहानि निन्यसेत् ।
अन्यथा यदि कुर्यात्तु तद्गृहं नैव शोभनम् ।।
अर्थात् जम्बीर, पुष्प वाले वृक्ष, पनस, अनार, जाती चमेली,शतपत्र( कमल) केसर, नारियल पुष्प और कर्णिकार(कनेर) से वेष्टित घर मनुष्य को सम्पूर्ण प्रकार के सुख व ऐश्वर्य प्रदान करता है।
पूर्वेण फलिता वृक्षः क्षीरवृक्षाश्च दक्षिणे ।
पश्चिमेन जलं श्रेष्ठं पद्मोत्पल भूषितम् ।।
बगीचेव या खेत में पूर्व दिशा की ओर फलवाले वृक्ष लगाने चाहिएं क्योंकि वे उस दिशा में उत्तम फल देते हैं। दक्षिण दिशा में क्षीर (दूध) वाले वृक्ष तथा पश्चिम दिशा में पक्ष और उत्पलों से भूषित वृक्ष श्रेष्ठ होते हैं।
सुरदारुचन्दन शमी शिंशियाः खदिरस्तथा ।
शालाः शालविस्तृताश्च प्रशस्ताः सर्वजातिषु ।।
अर्थात् देवदारु, चन्दन, शमी, शिंशिया, खदिर, शाल और शाल विस्तृत अर्थात् शाल समान विस्तार वाले वृक्ष सभी जातियों के लिए समान रुप से श्रेष्ठ हैं।
उपरोक्त विवरण से ये तो ज्ञात हो जाता है कि वाटिका निर्माण के लिए कौन-कौन से वृक्ष शुभकर तथा लाभकर हैं परन्तु इसी के साथ ये भी ज्ञात होना आवश्यक है कि वे कौन-कौन से वृक्ष या पौधे है जिनको वाटिका में अथवा गृह-वाटिका में लगाना हमारे शास्त्रों में शुभ नहीं माना गया है।
स्त्रीनाम्ना ये च तरवस्ते वर्ज्या गृहकर्माणि ।
क्षीरिणः क्षीरनाशाय फलिनः पुत्रनाशनाः ।।
अर्थात् जो वृक्ष स्त्री के नाम से प्रसिद्ध है वे भी घर के कार्यों में वर्जित कहे गये है। जैसे मालती चम्पा चमेली जूही इत्यादि। दूध वाले वृक्ष दूध को और फल देने वाले वृक्ष पुत्रों को नष्ट करते हैं।
वाटिका निर्माण के लाभ
- वाटिका हमारे पर्यावरण को शुद्ध रखने में सहायक सिद्ध होती है।
- वाटिका में लगाए गए पेड़-पौधे स्थानीय दृष्टि से सकारात्मक उर्जा प्रदान करने वाले होते हैं।
- नवग्रह वाटिका में लगाए गए पौधे हमें औषधि युक्त वायु प्रदान करते हैं।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार लगाए गए पौधे हमें कईं प्रकार की बिमारीयों से बचाते हैं।
- वास्तु के नियमानुसार व्यवस्थित ढंग से लगए गए पेड़-पौधे हमें मानसिक शान्ति प्रदान करते हैं।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम देख सकते हैं कि हम लोग जैसे-जैसे प्रकृति से दुर होते गये तब तब प्रकृति ने हमें माँ की तरह फटकार लगाई है ताकि हम अपने जीवन को प्रकृति अनुरूप यापन करें। प्रकृति अनुकुल जीवन जीने के लिए भारतीय संस्कृति परम्परा में हमारे ऋषि-मुनियों ने वास्तु जैसे शास्त्र के रूप में हमें प्रकृति के साथ जोड़े रहने का ज्ञान दिया है जो की अपनी वैज्ञानिकता को सिद्ध करता है। उपर्लिखित वास्तुशास्त्रोक्त नियमों व सावधानियों के अनुसार वृक्षों व पौधों को जीवन में स्थान दिया जाए तो मानव जीवन में सुख, समृद्धि, शांति व प्रश्न्नता हमेशा बने रहेगी।
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बहुत ही उत्तम विषय