करवाचौथ व्रत कथाकरवाचौथ व्रत कथा

पुराणोक्त करवाचौथ व्रत कथा- करवा चौथ व्रत कथा के संबंध में बहुत सी स्त्रियों को संशय रहता है कि वस्तुतः करवा चौथ व्रत की कथा है क्या? आज हम इस लेख में शास्त्रों में वर्णित करवा चौथ व्रत कथा का वर्णन कर रहें हैं।

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करवा चौथ व्रत को शास्त्रों में कार्तिक चतुर्थी अथवा करक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को करने का अधिकार केवल स्त्रियों को ही है। क्योंकि व्रत करने वाली स्त्रियों को ही फलश्रुति मिलती है।

व्रत पारायण की सामान्य विधि

सर्वप्रथम आचमन करें फिर ‘ओम तत्सत’ इत्यादि रीति से देश काल का स्मरण करें फिर संकल्प करें कि मैं अपने सौभाग्य एवं पुत्र पौत्रादि तथा निश्चल संपत्ति की प्राप्ति के लिए करक चतुर्थी अथवा  करवाचौथ व्रत का पारायण करूंगी या कर रही हूं।

इसके बाद षोडशोपचार से महादेव जी गणेश जी और स्वामी कार्तिक सहित पार्वती जी का पूजन करें।

पूजा के मंत्र ‘सर्वाणी शिवा’ के लिए प्रणाम है। हे महेश्वर भगवान की प्यारी! आप अपनी भक्त स्त्रियों को सौभाग्य और शुभ संतान प्रदान करें। इस मंत्र से गौरी की पूजा करके सम्पूर्ण शिव परिवार का मन्त्रोच्चारण करते हुए उनकी पूजा अर्चना करें।

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तदोपरांत मिष्ठान पकवान और अक्षरों के साथ 10 करवे ब्राह्मणों को देने चाहिए। तथा मिष्ठान नैवेद्य भोजन आदि के लिए निवेदन करना चाहिए। चंद्रमा उदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।

पुराणोक्त करवाचौथ व्रत कथा

शास्त्रों में व्रत पारायण विधि का वर्णन प्राप्त होने के उपरांत कथाकार सूत जी भगवान कहने लगे कि जब अर्जुन इंद्रकील पर्वत पर तपस्या करने चला गया। उस समय द्रोपदी का मन विचलित होने लगा और चिंता करने लगी कि अर्जुन ने बड़ा कठिन काम करना प्रारंभ कर दिया है। यह निश्चय है कि मार्ग में विघ्न करने वाले बहुत से वैरी हैं।

कृष्ण की इच्छा थी कि पतिदेव के काम में कोई विघ्न ना आए, इसी चिंता को करके जगतगुरु श्री कृष्ण भगवान ने द्रोपदी से पूछा।

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 द्रोपदी बोली- हे जगन्नाथ! आप एक अत्यंत गुप्त व्रत को मुझे बतावें जिसके करने से सब और के विघ्न दूर टल जाएं। श्री कृष्ण बोले कि हे महाभागे! जैसा आपने मुझसे पूछा है। उसी प्रकार पार्वती जी ने महादेव जी से पूछा था। उनके प्रश्न को सुनकर महादेव जी ने कहा कि हे पार्वती महेश्वरी! तुम सुनो मैं तुम्हें सब विघ्न हारिणी करक चतुर्थी का व्रत बताता हूं पार्वती ने पूछा कि हे भगवन! करक चतुर्थी का महत्व और इस व्रत को करने की क्या विधि है आप कहिए। यह व्रत पहले किसने किया था इसको भी कहिए।

महादेव जी बोले! कि जहां बहुत से विद्वान रहते हैं जिस जगह बहुत सा चांदी सोना एवं परिजनों को प्रमुखता दी जाती है। जहां सुंदर स्त्री पुरुषों के दर्शन से तीनों गुणों को वशीभूत कर लेता है। जहां निरंतर वेद ध्वनि होती रहती है। ऐसे स्वर्ग से भी रमणीय इंद्रप्रस्थपुर में वेद शर्मा नामक विद्वान ब्राह्मण निवास करता था। उसकी स्त्री का नाम लीलावती था। जो अच्छी थी। उस वेद शर्मा से लीलावती को सात परम तेजस्वी पुत्र और एक सर्व लक्षण सुलक्षणा वीरावती नामक कन्या उत्पन्न हुई।

वह ब्राह्मण अपनी नीलकमल सदृश्य नेत्र वाली पूर्ण चंद्रमा के समान मुख वाली उस वीरावती कन्या को विवाह योग्य जानकर , शुभ समय में वेद वेदांग शास्त्र ज्ञाता उत्तम ब्राह्मण से उसका विवाह कर दिया। उसी समय वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ गौरी व्रत किया। जब कार्तिक बदी चतुर्थी आई उस समय वीरावती और उसकी भाभीयां सब मिलकर बड़े प्रेम से संध्या के समय वट वृक्ष के नीचे अर्थात् उसके मूल में महेश्वर गणेश एवं कार्तिकेय के साथ गौरी माता की पूजा अर्चना गंध पुष्प और अक्षत से की।

तथा गौरी मंत्र को बोलती हुई कहने लगी कि शर्वाणी शिवा के लिए नमस्कार है। सौभाग्य और अच्छी संतति उन स्त्रियों को दें। जो हे हर की प्यारी! तेरी भक्ति वाली हो। उसके पास में स्थित महादेव गणेश और स्वामी कार्तिकेय को फिर धूप दीप और पुष्पक अक्षत से अलग-अलग पूजन कर फिर पकवान अक्षत और दीपक सहित 10 करवे तथा मिष्ठान नैवेद्य एवं चंद्रमा को अर्घ्य देने की प्रतीक्षा में बैठी वीरावती भूख प्यास से पीड़ित हो रही थी।

इसी कारण से कमजोर शरीर वाली होकर भूमि पर गिर पड़ी। यह देख उसके बांधवगण रोने लगे। कोई उसको हवा करने लगा, कोई मुख पर पानी छिड़कने लगा। उसका भाई कुछ सोच विचार कर एक बड़े भारी पेड़ पर चढ़ गया बहन के प्रेम में पीड़ित था। हाथ में एक जलती हुई मशाल ले रखी थी उस जलती मशाल को ही उसने चंद्र बता कर दिखा दिया। उसने उसे चांद समझकर विधि पूर्वक देखकर भोजन किया।

इसी दोष से उसका पति मर गया। पति को मरा देख शिव का पूजन किया फिर उसने 1 साल तक निराहार व्रत किया। पर उसकी भाभियों ने संवत्सर के बीत जाने पर वह व्रत किया। पहले कहे हुए विधान से शोभन मुख वाली वीरावती ने भी व्रत किया उस समय कन्याओं से घिरी हुई इन्द्रलोक की महारानी सची देवी इसी व्रत को करने के लिए स्वर्ग लोक से चली आई। और वीरावती के भाग्य से उसके पास अपने आप पहुंच गई।

सची देवी ने उस मानुषी को देख कर उससे सब बातें पूछी। एवं वीरावती ने नम्रता के साथ सब बातें बताई है।  वीरावती ने देवेश्वरी को बताया कि विवाह के बाद जब अपने पति के घर पहुंची तब मेरा पति मर गया। ना जाने मैंने ऐसा कौन सा उग्र पाप किया है। जिनका यह फल मिल रहा है। फिर भी आज मेरे किसी पुण्य का उदय हुआ है। जिससे हे महेश्वरी आप यहां पधारी हैं। आप से यही प्रार्थना है कि आप मेरे पति को शीघ्र जीवित करने की कृपा करें।

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 यह सुनकर इंद्राणी बोली कि हे वीरावती! तुमने अपने पिता के घर पर करक चतुर्थी का व्रत किया था। पर वास्तविक चंद्रोदय के हुए बिना ही अर्घ देकर भोजन कर लिया था। इस प्रकार अज्ञान से व्रत भंग करने पर तुम्हारा पति मर गया है। इस कारण आप अपने पति के पुनर्जीवन के लिए विधि पूर्वक उसी करक चतुर्थी का व्रत करिए। मैं उस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे पति को जीवित करूंगी।

तब भगवान श्री कृष्ण द्रोपदी से बोले कि हे द्रोपदी! इंद्राणी के वचन सुनकर उस वीरावती ने विधिपूर्वक करक चतुर्थी का व्रत किया। उसके व्रत को पूरा हो जाने पर इंद्राणी भी अपने प्रतिज्ञा के अनुसार प्रश्न्नता प्रकट करते हुए एक चुल्लू जल लेकर वीरावती के पति की मरण भूमि पर छिड़क कर उसके पति को जीवित कर दिया। वह पति देवताओं के समान हो गया।

 वीरावती अपने घर पर आकर अपने पति के साथ क्रीडा करने लगी। वह धन्य धान्य सुंदर पुत्र और दीर्घायु पा गया। अतः द्रोपदी तुम भी अच्छी तरह से इस व्रत को करो।

सूत जी सौनकादि मुनियों से कहते हैं कि इस प्रकार श्री कृष्ण चंद्र भगवान के वचनों को सुनकर द्रोपदी ने करक चतुर्थी के व्रत को किया। उसी व्रत के प्रभाव से संग्राम में कौरवों को पराजित करके उसके पति पांडव सब दुखों को मिटाने वाली अतुल राज्य संपत्तियों को पा गए। और जो सौभाग्य स्त्रियां इस व्रत को संध्या काल में करेंगी और रात्रि को चंद्रोदय में अर्घ देकर भोजन करेंगी। उन स्त्रियों को पुत्र धन्य धन्य सौभाग्य और अतुल यश की प्राप्ति होगी।

दूध अथवा जल से भरे हुए रत्न समेत करवे को दान करती हूं। इससे मेरा पति चिरंजीवी हो इस प्रकार कहकर उनको योग्य ब्राह्मण के लिए दान देना चाहिए। और इस व्रत में सुहागिन स्त्रियों के लिए ही देना चाहिए। सुहागिन स्त्रियों से ही लेना चाहिए। इस प्रकार जो स्त्री अपने सौभाग्य सुख संपत्ति के लिए इस व्रत को करती है। उसको सौभाग्य पुत्र पुत्र आदि तथा निश्चल संपत्ति मिलती है। यह वामन पुराण का करक चतुर्थी का व्रत पूरा हुआ।

उपरोक्त संपूर्ण कथा शास्त्र अनुरूप है अतः इसका श्रवण करवा चौथ के दिन सौभाग्यवती स्त्रियों को करना ही चाहिए जिसके फल आदि का वर्णन उपरोक्त कथा में कर दिया गया है।

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