करवाचौथ व्रतकरवाचौथ व्रत

हिंदुओं के अनेक व्रत एवं पर्व कार्तिक मास में आते हैं। अतः इस मास में करवाचौथ व्रत, अहोई अष्टमी व्रत, महालक्ष्मी व्रत, धनतेरस, दीपावली इत्यादि प्रमुख हैं। कार्तिक मास में पंच भीष्म, तुलसी विवाह एवं हरि प्रबोधिनी एकादशी अपना विशेष महत्व बनाए हुए हैं। इन्हीं व्रतों में करवाचौथ व्रत को सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए प्रमुख रूप से रखती हैं।

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परंपरा के अनुसार मायके से आने वाली सरगी को खाने का, तो कहीं नहीं खाने का भी प्रचलन मिलता है। इस व्रत में सरगी प्रात: काल सुबह ग्रहण करने पर महिलाओँ में दिनभर ऊर्जा बनी रहती है।

सौभाग्यवती स्त्री को संपूर्ण श्रृंगार कर चंद्रमा के उदय होने तक व्रत धारण करती हैं। संपूर्ण दिन निर्जल व्रत रखकर रात्रिकाल में चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति द्वारा जल पिलाने पर व्रत संपूर्ण होता है।

प्रत्येक स्थान पर प्रचलित देशाचार के अनुसार व्रत रखा जाता है। 

करवा पूजन व कथा श्रवण

इस व्रत में मिट्टी के करवे लाकर उनकी पूजा अर्चना करने का विधान रहता है। उसके बाद करवाचौथ की कथा का श्रवण विशेष रूप से रहता है।
कहीं कहीं भगवान शिव की सपरिवार (गणेश, माता पार्वती, कार्तिकेय, और नंदी सहित) पूजा की जाती है। पूजा अर्चना के बाद चंद्रमा के उदय होने पर छलनी से दर्शन कर उसी छलनी से पति के दर्शन करने का नियम लोकप्रसिद्ध है।

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पूजन एवं चन्द्र अर्घ्य का मुहूर्त्त

पूजन मुहूर्त-

करवाचौथ व्रत के पूजन हेतु 24 अक्टुबर 2021 रविवार सांयकाल को निम्न मुहूर्त्त रहेगा।

– 5:43 बजे से शाम 6:59 तक

चन्द्र अर्घ्य का मुहूर्त्त-

करवाचौथ व्रत के दिन चन्द्र  रात्रि 8 बजकर 7 मिनट पर निकलेगा। अलग- अलग शहरों में चांद निकलने के समय में बदलाव हो सकता है। 

इस दिन महिलाएं चन्द्र अर्घ्य देने के बाद अपने पति के हाथों से जल एवं मिष्ठान आदि ग्रहण कर अपने व्रत को खोलती है।

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करवाचौथ व्रत विधि एवं पूजन सामग्री

करवा चौथ का दिन महिलाओं के लिए बहुत ही विशेष रहता है। इस दिन महिलाएं प्रातः काल उठकर शुद्ध स्नान कर स्वच्छ एवं सुंदर वस्त्र धारण करते हुए श्रृंगार आदि करती हैं । संपूर्ण शिव परिवार की पूजा अर्चना करती हैं। और पूरे दिन निर्जला रहते हुए व्रत रखती हैं। करवा की पूजा के साथ-साथ शिव परिवार की भी पूजा करते हुए चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने व्रत को संपन्न करती है।

करवा चौथ व्रत की पूजन विधि

महिलाएं प्रातकाल ही अपने नित्य कर्म आदि से निवृत्त होकर व्रत के लिए संकल्प लेती हैं।

कहीं-कहीं पर महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में ही सरगी का सेवन कर लेती है उसके उपरांत दिन भर पानी के बिना रहती हुई व्रत का उद्यापन करती है।

सुहागिन स्त्रियों को करवा चौथ व्रत पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए और वह मंत्रजप का संकल्प लेती हुई “ॐ नमः शिवाय” अथवा “ॐ षणमुखाय नमः” मंत्र का दिन भर यथाशक्ति जाप करती रहें।

सायं काल के समय पार्वती के रूप में मां भगवती की प्रतिमा जिसमें श्री गणेश भगवान उनकी गोद में विराजमान हो ऐसी मूर्ति अथवा फोटो के सामने धूप दीप जलाकर पुष्पादि जैसी सभी प्रकार की पूजन सामग्री से मां पार्वती का पूजन करें।

मां पार्वती का पूजन करते समय करवे को जल से भर कर उसका पूजन भी अवश्य करें और माता को एक करवा वस्त्र दक्षिणा सहित अवश्य अर्पित करें।

पूजन के उपरांत सौभाग्यवती स्त्रियों को चाहिए कि वह करवा चौथ व्रत की कथा का श्रवण करें और चंद्र उदय होने पर चंद्र को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथ से जल एवं मिष्ठान ग्रहण कर व्रत को खोलें।

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करवा चौथ व्रत हेतु सामग्री सूची –

  1. चंदन,
  2. शहद,
  3. धूप,
  4. पुष्प,
  5. शक्कर,
  6. शुद्ध घी,
  7. दही,
  8. मिठाई,
  9. गाजल,
  10. अक्षत (चावल),
  11. मिट्टी का करवा ढक्कन सहित
  12. दीपक,
  13. रुई,
  14. शक्कर,
  15. हल्दी
  16. जल का लोटा,
  17. पूजा के लिए मूर्ति, 18 आसन,
  18. छलनी,
  19. दक्षिणा (दान) के लिए पैसे आदि।
  20. सौभाग्य सामग्री- सिंदूर, कंघी, बिंदिया, चुनरी, चूड़ी, मेहंदी, रीबन, कज्जल, शीशा और सौभाग्य की अन्य सामग्री

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करवाचौथ व्रत की कथा

एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक करवा नाम की बहन थी। सभी सातों भाई अपनी बहन करवा से बहुत स्नेह रखते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। उनकी बहन करवा विवाह उपरान्त एक बार ससुराल से मायके आई हुई थी।

सांय काल करवा के भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर लौटे तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई भोजन करने के लिए बैठने लगे और अपनी बहन से भी भोजन करने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है, और वह भोजन सिर्फ चंद्र दर्शन कर उसे अर्घ्‍य देकर ही कर सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला था, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी थी।

सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की ऐसी दशा देखी नहीं गई और उसने दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत रहा था कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो।

इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।

वह पहला ग्रास मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा ग्रास डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा ग्रास मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है।  ऐसा सुनकर करवा बौखला जाती है।

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।

सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।

एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है।

सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।

अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।

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डॉ. महेन्द्र कुमार

ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड विशेषज्ञ

चण्डीगढ़

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