संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-8 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-8:- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। संस्कृत भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है।
यह भी पढ़े- संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-5 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-5
संस्कृत सूक्तियाँ
संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि संस्कृत भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-8 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-8 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।
यह भी पढ़े- संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-3 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-3
यह भी पढ़े- यह भी पढ़े- संस्कृत सूक्तियाँ | Sanskrit Suktiyan (Proverb)
सूक्तियाँ हिन्दी में | सूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः) |
काठ की बिल्ली तो बन गई परन्तु म्याऊँ कौन करेगा। | सुलभा रम्यता लोके दुर्लभं हि गुणार्जनम् । |
कुत्ता कुत्ते का बैरी होता है। | १. भिक्षुको भिक्षुकं दृष्ट्वा श्वानवद् गुर्गुरायते। २. याचको याचकं दृष्ट्वा श्वानवद् गुर्मुरायते। |
कुत्ते की पूंछ बारह वर्ष नली में रखो तो भी टेढी की टेढी। | तरुणीकच इव नीच कौटिल्यं नैव विजहाति । |
क्या बूढ़ा क्या जवान मृत्यु के लिये सब समान। | मृत्योः सर्वत्र तुल्यता। |
खूंटे के बल बछड़ा कूदे। | अन्यस्माल्लब्धपदो नीचः प्रायेण दुःसहो भवति । |
गङ्गा गए गङ्गादास, जमुना गए जमुनादास । | भजन्ति वैतसी वृत्ति मानवाः काल वेदिनः। |
गरीब को खुदा की मार । | देवो दुर्बलघातकः । |
गरीब को संसार सूना | १. सर्वं शून्यं दरिद्रस्य । २. सर्वशून्या दरिद्रता । |
गरीब को सुख कहाँ ? | निर्धनस्य कुतः सुखम् । |
गुणी गुणों से आदर पाते हैं, आयु तथा लक्षणों से नहीं । | गुणाः पूजास्थानं गुणिषु नहि लिङ्ग न च वयः । |
गुस्सा बड़ा चाण्डाल है। | १. क्रोधो मूलमनर्थानाम् । २. धर्मक्षयकरः क्रोधः । |
गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाता है। | अपेक्षन्ते हि विपदः किं पेलवम-पेलवम् ? |
घर का जोगी जोगड़ा आन गांव का सिद्ध । | स्वदेशजातस्य नरस्य नूनं गुणाधि कस्यापि भवेदवज्ञा। |
चुपड़ी और दो दो। | यथौषधं स्वादु हितं च दुर्लभम् । |
चमड़ी ज़ाय दमड़ी न जाय । | प्राणेभ्योऽप्यर्थमात्रा कृपणस्य गरीयसी। (कथासरित्सागरे) |
चार दिन की चाँदनी फिर अंधेरी रात। | तिष्ठत्येकां निशां चन्द्रः श्रीमान् सम्पूर्णमण्डलः । |
संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-8 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-8 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र संस्कृत सीख सकेगें।
यह भी पढ़े- संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-7 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-7
यह भी पढ़े- संस्कृत सीखें पाठ-15 | सब्जियों और मसालों के नाम संस्कृत में
।। जयतु संस्कृतं जयतु भारतम् ।।
सौजन्य- sanskritduniya.com