Sanskrit Suktiyan (Proverb)Sanskrit Suktiyan (Proverb)

संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-5 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-5:- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। संस्कृत भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है। 

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संस्कृत सूक्तियाँ

संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि संस्कृत भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-5 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-5 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।

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सूक्तियाँ हिन्दी मेंसूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः)
आहारे व्यवहारे लज्जा न कारे।माहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ।
इधर बाघ उधर खाई।इतो व्याघस्ततस्टी।
इलाज लाख एक पथ्य ।पथ्ये सति गदार्तस्य किमौषधि निषेवणः ।
इस हाथ दे, उस हाथ ले१. इतो देयं ततो ग्राह्यम् ।
२. त्वरितं फलं कर्मणाम् ।
इंट का जवाब पत्थर से।१. शठे शाठ्यं समाचरेत् ।
२. कृते प्रतिकृतिं कुर्यात् ।
ईश्वर की निगाह सीधी तो कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है।श्रीकृष्णस्य कृपालवो यदि भवेत् कः कं निहन्तुं क्षमः ?
ईश्वर की निगाह सीधी तो शत्रु भी मित्र बन जाता है।सानुकूले जगन्नाथे विप्रियः सुप्रियो भवेत् ।
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया।देवस्य विचित्रा गतिः ।
ऊखली में सिर दिया तो मूसलों से डर क्या ?रणे योद्धं प्रवृत्तस्य शत्रुशस्त्रात् तु किं भयम् ?
उतर गई लोई क्या करेगा कोई।१. निर्जज्जस्य कुतो भयम् ?
२. मानहीन मनुष्याणां लोकोऽयं कि करिष्यति ?
उधार मोहब्बत की कैची है।उद्धारः स्नेहनाशकः ।
उधार दिया ग्राहक खोया।उद्धारः क्रेतृलोपकः ।
उल्टे बांस बरेली को।गङ्गां हिमाचलं नयति ।
ऊधो मनमाने की बात ।तस्य तदेव हि मधुरं यस्य मनो यत्र संलग्नम् ।
ऊँट के मुंह में जीरा।  १. दाशेरकस्य मुखे जीरः ।
२. न स्तोकेन धस्मरतृप्तिः ।
ऊँची दूकान फीके पकवान ।निस्सारस्प पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान् ।
ऊँटों के विवाहों में गदहे गवैये ।उष्ट्राणां विवाहेषु गीतं गायन्ति गर्दभाः ।

संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-5 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-5 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र संस्कृत सीख सकेगें। 

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। जयतु संस्कृतं जयतु भारतम् ।।

सौजन्य- sanskritduniya.com

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