संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-3 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-3:- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। संस्कृत भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है।
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संस्कृत सूक्तियाँ
संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि संस्कृत भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-3 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-3 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।
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सूक्तियाँ हिन्दी में | सूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः) |
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है। | – निज सदननिविष्टः श्वान सिंहायते किम् ? |
अपनी बुद्धि तथा पराया धन कई गुना दिखाई देता है। | – स्वमतिः परधनञ्चैव वृद्धवृद्धं हि दृश्यते । |
अपनी देह किसे प्यारी नहीं ? | – कायः कस्य न वल्लभः ? (पञ्चतन्त्र) |
अपनी दही (या छाछ) को कोई खट्टा नहीं कहता। | – न हि कश्चिनिजं तक्रमम्लमि त्यभिधीयते । -सर्व. खलु कान्तमात्मीयं पश्यति । – इन्द्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्या पितर्गणः । |
अपयश से मौत भली। | -सम्भावितस्य चाकीर्तिमरणादतिरिच्यते । (गीतायाम् ) |
अब पछताये क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत । | – गते शोको निरर्थकः । – गतं शोचन्त्यपण्डिताः । |
अभी दिल्ली दूर है। | – अद्यापि दूरतः सिद्धिः । |
भरहर की टट्टी, गुजराती ताला। | -पाषाणे मृगमदलेपः । |
अस्सी की आमद चौरासी का खर्च । | -अल्प आयो व्ययो महान् । |
आंख और कान में चार अगुल का फर्क होता है। | -दर्शने श्रवणे चैव दृश्यते महदन्तरम् । |
आंख से दूर दिल से दूर । | – दूरता स्नेहनाशिनी। – नयनदूरं मनोदूरम् । |
आँखों के अन्धे नाम नयनसुख । | -ज्ञानेन हीनोऽपि सुबोधसंज्ञः । -यस्य पार्वे धनं नास्ति सोऽपि धनपाल उच्यते। |
आई को कौन टारे? | -कः कं शक्तो रक्षितुं मृत्युकाले ।(स्वप्नवासवदत्ते) – मृत्योर्नास्ति भेषजम् । – अपि धनवन्तरिर्वैद्यः किं करोति गतायुषि ? |
आई थी आग लेने घर की स्वामिनी गृहबन बैठी। | – अनलार्थं समायाता सञ्जाता स्वामिनी। -सूचीप्रवेशे मुशलप्रवेशः । |
आए की खुशी न गए का गम। | – सन्तुष्टः सदा सुखी। |
आग पानी का सङ्ग कैसे हो सकता है ? | – जलानलयोः सङ्गमः कुतः ? – सामानाधिकरण्यं हि तेजस्तिमिरयोः कुतः? |
आग लगने पर कुंआ नहीं खोदा जाता। | – न कूपखननं युक्तं प्रदीप्ते वह्निना गृहे। |
संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-3 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-3 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र संस्कृत सीख सकेगें।
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।। जयतु संस्कृतं जयतु भारतम् ।।
सौजन्य- sanskritduniya.com