संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-7 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-7:- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। संस्कृत भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है।
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संस्कृत सूक्तियाँ
संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि संस्कृत भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-7 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-7 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।
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सूक्तियाँ हिन्दी में | सूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः) |
एके साधे सब सधे, सब साधे सब जाय । | एकलक्ष्ये सर्वसिद्धिलक्ष्याधिक्ये न काचन । |
ओछे की प्रीत बाल की भीत। | अस्थिरं क्षुद्रसौहृदम् । |
ओस के चाटे प्यास नहीं बुझती। | १. प्रालयलेहान्न तृषाविनाशः । २. न तारालोकेन तृषाविनाशः । |
और बात खोटी सही दाल रोटी। | अन्नपानं परित्यज्य सर्वमन्यन्निरर्थकम् । |
कड़वी दवाई का फल मीठा । | यत्तदने विषमिव परिणामेऽमृतोपमम् । |
कन्या पराया धन होती है। | अर्थो हि कन्या परकीय एव । (अभिज्ञानशाकुन्तले ) |
करमगति टारे नाहिं टरी। | भवितव्यतानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र ।(अभिज्ञान० ) |
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। जो जस करहिं तस फल चाखा। या जैसी करनी वैसी भरनी। | १. स्वकर्मसूत्रग्रथितो हि लोकः । २. कर्मायत्तं फलं पुंसाम् । ३. यो यद्वपति बीजं हि लभते सोऽपि तत्फलम् । ४. भद्रकृत् प्राप्नुयाद् भद्रम्, अभद्रं चाप्यभद्रकृत् । (कथा० ) |
कल की छोड़ो आज की बात करो। | वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति मनीषिणः । |
कह रहीम परकाजहित सम्पति संचहि सुजान । | १. आदानं हि विसर्गाय सतां वारिमुचामिव।(रघुवंशे) २. आपन्नातिप्रशमनफलाः सम्पदो युत्तमानाम् । |
का करै असहायजन यद्यपि होय समर्थ। | १. असहायः समर्थोऽपि तेजस्वी किं करिष्यति? (पञ्चतन्त्रे) २. सबलोऽप्येकलोऽबलः। |
काला अक्षर भैंस बराबर। | निरक्षरभट्टाचार्यः । |
संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-7 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-7 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र संस्कृत सीख सकेगें।
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।। जयतु संस्कृतं जयतु भारतम् ।।
सौजन्य- sanskritduniya.com