Sanskrit Suktiyan (Proverb)Sanskrit Suktiyan (Proverb)

संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-9 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-9:- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। संस्कृत भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है। 

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संस्कृत सूक्तियाँ

संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि संस्कृत भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-9 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-9 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।

सूक्तियाँ हिन्दी मेंसूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः)
जगत् भेड़ चाल है।गतानुगतिको लोकः न लोक: पारमाथिकः।
जब बुरे दिन भाते हैं बुद्धिमारी जाती है।१. प्रायः समापन्न विपत्तिकाले धियोऽपि पुंसां मलिना भवन्ति ।
२. विनाशकाले विपरीतबुद्धिः ।
जब भाग्य ही सीधा न हो तो काम कैसे सिद्ध हो।१. वक्रे विधी वद कथं व्यवसायसिद्धिः?
२. वामे विधौ न फलन्त्यभिवाञ्छितानि ।
जब लगि पैसा गाँठ में तब लगि ताको यार।अम्बुगर्भो हि जीमूतश्चातकैरभिनन्द्यते। (रघुवंशे)
जरूरत के वख्त गधे को भी बाप कहा जाता है।महानपि प्रसङ्गेन नीचं सेवितुमिच्छति।
जहाँ न जावे रवि वहाँ जावे कवि।कवयः किं न पश्यन्ति ?
जान किसे प्यारी नहीं ?कायः कस्य न वल्लभः ?
जिसका खावें उसी के गीत गावें। या लेने देने से सब अपने हो जाते हैं।को न याति वशं लोके, मुखे पिण्डेन पूरितः ?
जिसकी लाठी उसकी भैंस।१. वीरभोग्या वसुन्धरा ।
२. औचित्यं गणयति न विशेषकायः ।
जितना गुड़ डालोगे उतना मीठा होगा।अधिकस्याधिकं फलम् ।
जितने मुख उतनी बातें।नवा वाणी मुखे मुखे ।
जीभ रोगों की जड़ है।रसमूला हि व्याधयः ।
जीवन का क्या भरोसा।१. क्षणादूवं न जानामि विधाता किं करिष्यति?
२. अस्थिरं जीवतं लोके ।
जैसा कारण वैसा कार्य।१. यादृशास्तन्तवः कामं तादृशो जायते पट:।
२. यथा वृक्षस्तथा फलम् । ३. यथा बीजं तथाङ्कुरः ।
जैसी संगत वैसी रंगत ।संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति ।
जो अपनी सहायता करता है, ईश्वर भी उन्हीं की सहायता करता है।१. ईश्वर इच्चरतः सखा ।
२. देवं सहायतां याति हि सदोद्योगशालिनाम्।

संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-9 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-9 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र संस्कृत सीख सकेगें। 

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। जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् ।।

सौजन्य- sanskritduniya.com

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