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संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-4 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-4:- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। संस्कृत भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है। 

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संस्कृत सूक्तियाँ

संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि संस्कृत भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-4 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-4 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।

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सूक्तियाँ हिन्दी मेंसूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः)
आग लगा पानी को दौड़े।अन्तर्दुष्टः क्षमायुक्तः सर्वानर्थकर किल।
आगे कुआं पीछे खाई । या इधर कुआँ उधर खाई।१. इतः कूपस्ततस्तटी।
२. इतोऽन्धकूपः ततो दन्दशूकः ।
आगे जगह देखकर पैर रखा जाता है ।१. दृष्टिपूतं न्यसेत् पादम् । (मनुस्मृती)
२. नासमीक्ष्य परं स्थानं पूर्वमायतनं त्यजेत् ।
आगे नाथ न पीछे पगहा, सबसे भला कुम्हार का गदहा।का चिन्ता बन्धुहीनस्य ।
आदत सिर के साथ जाती है।१. स्वभावो दुरतिक्रमः ।
२. स्वभावो मूनि वर्तते ।
३. अभ्यासो हि दुस्त्यजः ।
आज का कार्य कल पर मत छोड़ो।यदद्य कार्य न श्वः कुर्यात् ।
आधा तीतर आधा बटेर।विषमयोगो न युज्यते ।
आधी छोड़ सारी को धावे, ऐसा डुबे पार न पावे ।यो ध्रुवाणि परित्यज्य मध्रुवाणि निषवते । ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव च ।
आप हारे बहू को मारे ।निजापराधे भृत्यस्य भत्सर्नम् ।
आमों की कमाई नींबू में गँवाई ।इतो लाभस्ततः क्षतिः ।
आमों के आम गुठलियों के दाम ।एका क्रिया द्वयर्थकरी प्रसिद्धा ।
आम बोओ आम खाओ।१. यादृशमुप्यते बीजं तादृशं फलमाप्यते।
२.अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभार. शुभम् ।
आवेगा सो जावेगा राजा रङ्क फकीर।जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः ।
आलस्य बुरी बलाय है।आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः ।
आसमान पर थूका अपने सिर ।पको हि नभसि क्षिप्तः क्षेप्तुः पतति मूर्ध्नि ।
आसमान से गिरा खजूर पर अटका।इतो मुक्तो ततो बद्धः ।

संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-4 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-4 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र संस्कृत सीख सकेगें। 

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। जयतु संस्कृतं जयतु भारतम् ।।

सौजन्य- sanskritduniya.com

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