संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-2 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-2:- संस्कृत भाषा हमारे भारत देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा के साथ साथ लगभग सभी भाषाओं की माँ भी है। अर्थात् इसी भाषा से सभी भाषाएं उत्पन्न हुई हैं। संस्कृत भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है। जिसके प्रमाण ब्रिटेन, जर्मनी जैसे देशों में देख सकते हैं।
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संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-2
संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि संस्कृत भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-2 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-2 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।
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सूक्तियाँ हिन्दी में | सूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः) |
अकल बड़ी कि भैस ? | – मतिरेव बलाद् गरीयसी । – बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् । |
अच्छी वस्तु स्वयमेव प्रसिद्ध हो जाती है। | – यदि सन्ति गुणाः पुंसां विकसन्त्येव ते स्वयम्। – न हि कस्तूरिकामोदः शपथेन विभाव्यते । |
अच्छी सन्तान सुख की खान । | – सुखमूलं सुसन्ततिः । – सन्ततिः शुद्धवंश्या हि परत्रेह च शर्मणे। |
-अढाई पाव कॅगनी, चौबारे रसोई। -ऊँची दूकान फीके पकवान । | – निःसारस्य पदार्थस्य प्रायेणाडम्बरो महान् । |
-अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप। -अति का भला न बरसना, अति की भली न धुप। | -अति सर्वत्र वर्जयेत् । |
-अदले का बदला । -जैसे को तैसा। | – कृते प्रतिकृति कुर्यात्। – शठे शाठ्यं समाचरेत्। – भद्रो भद्रे खलः खले। – आर्जव कुटिलेषु न नीतिः।(नैषधे) |
अधजल गगरी छलकत जाय। | – अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम्। – सम्पूर्णशब्दो न करोति शब्दम्। |
अधिकार बड़ा है न कि बल। | – स्थानं प्रधानं न बलं प्रधानम्। |
अनहोनी होती नहीं, होनी होवनहार। | – यदभावि न तद् भावि । – भावि चेन्न तदन्यथा । (हितोपदेशे) |
अपना टैटर न देखे, दूसरे की फुल्ली निहारे। | – खल: सर्षपमात्राणि परच्छिद्राणि पश्यति । – आत्मनो बिल्वमात्राणि पश्यन्नपि न पश्यति ।(महाभारते) |
अपना पेट तो कुत्ता भी भर लेता है। | – जठरं को न बिभर्ति केवलम् ? – काकोऽपि जीवति चिराय बलिञ्च भुङ्क्ते। |
अपना पैसा खोटा तो परखिया का क्या दोष? | – आत्मीयाः सदोषाश्चेत् को लाभः परदूषणः ? – समले सुवर्णे निकषो न निन्द्यः। |
अपनी करनी पार उतरनी। | – कृत्यैः स्वकीयः खलु सिद्धिलब्धिः। |
-अपनी इज्जत अपने हाथ । -अपनी पगड़ी अपने हाथ । | – निजाधीनं स्वगौरवम् । |
अपनी गरज बावली होती है। | – किन्न कुर्वन्ति स्वार्थिनः ? – अर्थार्थी जीवलोकोऽयं श्मशानमपि सेवते। (पञ्चतन्त्रे) |
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संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-2 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-2 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र संस्कृत सीख सकेगें।
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।। जयतु संस्कृतं जयतु भारतम् ।।
सौजन्य- sanskritduniya.com