युद्ध एवं शस्त्रास्त्र सम्बन्धी शब्द संस्कृत में :- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। संस्कृत भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है।
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संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि संस्कृत भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम युद्ध एवं शस्त्रास्त्र सम्बन्धी शब्द संस्कृत में पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।
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युद्ध एवं शस्त्रास्त्र सम्बन्धी शब्द संस्कृत में एटम बम- परमाण्वस्त्रम् घुड़सवार- सादिन्, अश्वारोहः, अश्ववारः कवच- वर्मन् काठी- पर्यावम् चाकू- छुरिका कृपाण- कौक्षेयकः चिघाड़- चीत्कारः कैद- कारावासः छावनी- शिविरम् कोड़ा- कशा जल सेनापति- नौ सेनाध्यक्षः खड्ग- निस्त्रिंशः जेल- कारा गँडासा- तोमरः टीयर गैस- धूम्रास्त्रम् गदा- गदा डेरा- निवेशः, वासस्थानम् गुप्ती- करवालिका तूणीर- तूणीरः गोली- गुलिका तोप- शतघ्नी धड़- कबन्धः युद्ध- आहवः, आजिः, जन्यम् धनुर्धर- धन्विन् यूनिफार्म- परिधानम् धनुष- कार्मुकम् , कोदण्डः, चापः रकाब- पादधानी पताका- वैजयन्ती रणकुशल- सांयुगीनः पनडुब्बी- जलान्तरितपोतः लक्ष्य- शरव्यम् पानी का जहाज- पोतः लगाम- खलीनः, खलीनम्, वल्गा पिस्तौल- लघुभुशुंडिः लड़ाई का जहाज- युद्धपोतः पैदल सेना- पदातिः, पत्तिः, पदचारिन् लड़ाई का विमान- युद्धविमानम् फौजी आदमी- सैनिकः लोहे का टोप- शिरस्त्रम् बन्दूक- भुशुंडिः वर्दी- सैन्यवेषः बम- आग्नेयास्त्रम् वायु सेनापति– वायुसेनाध्यक्षः बम फेंकना- आग्नेयास्त्रक्षेपः विजयी- जिष्णुः, विजयिन् बर्छी- शल्यम् शस्त्र- प्रहरणम् , शस्त्रम् बाण- विशिखः, शरः, बाणः शस्त्रागार- आयुधागारम् , शस्त्रागारम् बारूद- अग्निचूर्णम् शस्त्रास्त्र- आयुधम् भाला- प्रासः सिपाही- रक्षिन् भूसेनापति- भूसेनाध्यक्षः हाइड्रोजन बम- जलपरमाण्वस्त्रम् मस्तूल- कूपकः हाथी का झूल- कूथम् मोर्चा बाँधना- परिखया परिवेष्टनम् हद- सीमा |
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संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने युद्ध एवं शस्त्रास्त्र सम्बन्धी शब्द संस्कृत में जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र संस्कृत सीख सकेगें।
उपदेशात्मक संस्कृत श्लोक
माता यस्य गृहे नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी।
अरण्यं तेन गन्तव्यं यथारण्यं तथा गृहम् ॥
अर्थात् जिसके घर में न माता हो और न स्त्री प्रियवादिनी हो , उसे वन में चले जाना चाहिए। क्योंकि उसके लिए घर और वन दोनों समान ही हैं ।
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।। जयतु संस्कृतं जयतु भारतम् ।।
सौजन्य- sanskritduniya.com