संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-12 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-12:- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। इस भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है।
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संस्कृत सूक्तियाँ
संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि यह भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-12 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-12 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।
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सूक्तियाँ हिन्दी में | सूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः) |
बातों से काम नहीं चलता। | न नश्यति तमो नाम कृतया दीपवार्तया । |
बाप पर बेटा तुखम पर घोड़ा। | कार्य निदानाद्धि गुणानधीते । |
विन घरनी घर भूत का डेरा। | प्रियानाशे कृत्स्नं जगदरण्यं हि भवति । |
बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय। | १. सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् । (किरातार्जुनीये) २. सहसा हि कृतं कार्यं कथं मा भूद्विपत्तये। (कथा०) |
बुरी संगत का बुरा फल, या को न कुसङ्गति पाइ नसाई ? | १. असन्मैत्री हि दोषाय कूलच्छायेव सेविता। (किरात० ) २. दुरन्ता दुष्टसङ्गतिः । |
बूंद-बूंद के पड़ने से घड़ा भर जाता है। | जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः। |
भले कार्य में देर कैसी? | शुभस्य शीघ्रम्। |
भलों का सङ्ग करना चाहिए। | १. सद्भिः कुर्वीत सङ्गतिम्। २. सद्भिरेव सहासीत। |
भूख में सब कुछ अच्छा लगता है। | क्षुधातुराणां न रुचिर्न पक्वम्। |
भैंस के आगे बीन बजाना। | १. अन्धस्य दीपः । २. बधिरस्य गीतम् । |
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत । | जितं जगत् केन ? मनो हि येन । (शङ्कराचार्यः) |
मन चङ्गा तो कठौती में गङ्गा। | निवृत्तरागस्य गृहं तपोवनम् । |
मनस्वी लोग सुख-दुःख की परवाह नहीं करते। | मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दुःखं न च सुखम् । |
मरता क्या न करता। | १. क्षीणा जना निष्करुणा भवन्ति । २. बुभुक्षितः किन्न करोति पापम् । |
महात्मागों के मन वाणी और कर्म में एकता होती है। | मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्म नाम् । |
मांगन गए सो मर गए। | १. याचनान्तं हि गौरवम् । २. याचनान्मरणं वरम् । ३. वरं हि मानिनो मृत्युर्न दैन्यं स्वजनाग्रतः। |
संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-12 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-12 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र सीख सकेगें।
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।। जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् ।।
सौजन्य- sanskritduniya.com