संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-13 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-13:- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। इस भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है।
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संस्कृत सूक्तियाँ
संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि यह भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-13 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-13 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।
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सूक्तियाँ हिन्दी में | सूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः) |
मित्र की पहिचान विपद में ही होती है। | १. हेम्नः संलक्ष्यते ह्यग्नौ विशुद्धिः श्यामिकाऽपि वा (रघुवंशे ) 2. मित्रस्य निकषो विपत् । ३. स सुहृद् व्यसने यः स्यात् । |
मन ही मुक्ति तथा बन्धन का कारण है। | मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । |
मूर्ख लोग भेड़ की चाल चलते हैं। | मूढ़ो हि परप्रत्ययनेयबुद्धिः।(कालिदासः) |
मेरे मन कछु और है विधिना के कछु और। | को जानाति जनो जनार्दनमनोवृत्तिः कदा कीदृशी? |
मौत का कोई इलाज नहीं | अपि धन्वन्तरिर्वैद्यः किं करोति गतायुषि? |
योग्य योग्य के साथ ही फबता है। | चकास्ति योग्येन हि योग्यसङ्गमः। |
रखिये मेल कपूर में हींग न होय सुगन्ध । | कि मदितोऽपि कस्तूर्या लशुनो याति सौरभम् ? |
राम राम जपना पराया माल अपना। | अहो विश्वास्य वञ्च्यन्ते धूर्तश्छद्मभिरीश्वराः। |
रोग तथा शत्रु को छोटा न समझो। | अल्पीयसोप्यामयतुल्यवृत्तेमहापका राय रिपोविवृद्धिः। (किराता०) |
लालच बुरी बला है। | नाऽस्ति तृष्णासमो व्याधिः । |
लोभ है पापों की खान | १. लोभः पापस्य कारणम् । २. पापानामाकरो लोभः । |
लोकमर्यादा का पालन अवश्य करना चाहिए। | यद्यपि शुद्धं लोकविरुद्धं नो करणीयं नाचरणीयम्। |
विधि का लिखा मिटाया नहीं जा सकता। | १. अभद्रं भद्रं वा विधिलिखितमुन्मूल यति कः ? २. यद्देवेन ललाटपत्रलिखितं तत्प्रोज्झितं कः क्षमः ? ३. लिखितमपि ललाटे प्रोज्झितुं क: समर्थः ? |
संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-13 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-13 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें।
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।। जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् ।।
सौजन्य- sanskritduniya.com