पुण्यदायिनी पुरुषोत्तमा एकादशी:- समस्त संसार में भारत देश सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है जिसका एकमात्र कारण है भारत की आध्यात्मिक की संस्कृति यद्यपि अन्य देश शक्ति में धन में वैभव में संपत्ति में भारत से उन्नत स्थान पर हो सकते हैं किंतु अध्यात्म नाम का जो धन है अध्यात्म नाम की जो संपत्ति है वह हमारे यहां भारतीय संस्कृति में अत्यंत समृद्ध है। इसके कारण भारत विश्व गुरु कहा जाता रहा है। हमारा देश अध्यात्म प्रधान देश है जिसमें भले ही अनेकों अनेक समुदाय एवं परंपराएं हो किंतु वह समस्त समुदाय व समस्त परंपराएं हमें एक ब्रह्म की ओर ले जाने के लिए प्रेरित करती है।
भारत देश में अनेकों त्यौहारों का आयोजन किये जाते हैं जिन सभी का अपना अपना विशेष महत्व है। दीपावली विजयादशमी वैशाखी शिवरात्रि श्री कृष्ण जन्माष्टमी रामनवमी इत्यादि। अनेक पर्व और त्योहार भारत में बहुत ही उत्साह और मनोयोग से मनाए जाते हैं जो सभी भारतीयों को अपनी समृद्ध परंपरा को जीवंत रखने के लिए सर्वदा प्रेरित करते आए हैं। और न केवल परंपरा को ही संबंध रखना है और उनके आचरण से एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है उर्जा के प्रभाव से अध्यात्म विद्या के बल से यह देश अनादिकाल से समस्त विश्व का सिरमौर एवं अग्रणी रहा है।
व्रतों में श्रेष्ठ व्रत एकादशी व्रत
भारत की अस्मिता और गौरवशाली परंपरा में ऋषि काल से ही वैदिक और पौराणिक काल से ही व्रतों और अनुष्ठानों का आचरण पुण्यप्रद कहा गया है। समस्त व्रतों में एकादशी का व्रत है जिसे व्रतों का राजा कहा जाता है। एकादशी के व्रत से तात्पर्य केवल किसी भी पक्ष की एकादशी के दिन भूखे रहने मात्र से नहीं है। यह तो अपनी इंद्रियों और मन को वश में करने में बल प्रदान करता है। और जो इनको वश में कर लेता है उसके बाद वह अपने आत्म तत्व को जान सकता है। जिसे शिवोहम शिवोहम हमारे ऋषियों ने कहा हुआ है जिसके जान से ही हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है
वस्तुत पूरे वर्ष में 12 मास होते हैं और वह मां से शादी के क्रम से होते हैं उन 12 मासों में प्रत्येक मास के दोनों पक्ष होते हैं जो क्रमशः कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष कहे जाते हैं प्रत्यक्ष की एकादशी तिथि को एकादशी व्रत करने का विधान हमारे शास्त्रों में कहा गया है इस प्रकार से हम देखते हैं कि 12 मासों में 24 एकादशी व्रत होते हैं अर्थात 12 मासों में 24 एकादशी ना होती हैं जिनमें से प्रत्येक एकादशी का अपना अलग नाम अपना अलग महत्व और प्रत्येक एकादशी की विभिन्न पुराणों में हमें प्राप्त होती है
पुरुषोत्तमा एकादशी
जिस प्रकार से प्रत्येक एकादशी का अपना महत्व है उसी प्रकार से प्रत्येक मास का भी अपना अपना महत्व होता है और प्रत्येक मास का नामकरण भी ज्योतिष शास्त्र में किया गया है। किंतु ज्योतिषीय गणना के आधार पर कदाचित 32 वर्षों में एक बार 112 मासों में एक बार आता है जिसे हमारे यहां पुरुषोत्तम मास शास्त्रों में कहा गया है। इसका एक और नाम अजय कुमार तथा एक अन्य नाम मलमास भी कहा गया है। 12 मासों से अधिक होने के कारण उसका नाम अधिकमास है
पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही पुरुषोत्तमा एकादशी कहा जाता है क्योंकि यह एकादशी पुरुषोत्तम मास में आती हैं इसलिए इसे पुरुषोत्तमी एकादशी कहते हैं ।
समस्त एकादशीयों की अपेक्षा पुरुषोत्तम मास की इस पुरुषोत्तम एकादशी का सबसे अधिक महत्व है क्योंकि एकादशी तिथि के स्वामी साक्षात भगवान पुरुषोत्तम भगवान नारायण कहे गए हैं।
पुरुषोत्तम शब्द से साक्षात अर्थ भगवान श्रीराम का लिया जाता है क्योंकि भगवान श्री राम भगवान विष्णु के अवतार हैं। और उन्होंने इस धरा पर अवतरित होकर पुरुष के रूप में अर्थात सामान्य मानव के रूप में ही एक ऐसा गौरवमई आदर्श स्थापित किया जो अनादि काल तक समस्त लोगों को समस्त विश्व समुदाय को प्रेरणा देता रहेगा। इसलिए उन्हें पुरुषों में उत्तम पुरुषोत्तम कहा जाता है।
हमारे यहां ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक तिथि का एक एक देवता स्वामी के रूप में गणित किया गया है। जिसमें एकादशी तिथि के स्वामी विश्व देव कहे गए हैं यह विश्वदेव नामांतरण से भगवान विष्णु ही होते हैं। इसलिए एकादशी तिथि को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है । इसका नाम पुरुषोत्तम एकादशी है जिसे पद्मिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस मास में किया गया प्रत्येक दानादि पुण्कय र्म से तात्पर्य है धार्मिक आध्यात्मिक कर्म से है । कर्म को करने की आज्ञा हमारे शास्त्र देते हैं वह किया गया कोई भी धार्मिक कर्म अत्यंत पुण्यदायी होता है इसलिए इस एकादशी का महत्व समस्त एकादशी से अधिक है।
कब है पुरुषोत्तमा एकादशी-
इस वर्ष भी वर्तमान समय में पुरुषोत्तम मास चला हुआ है और अभी उसका शुक्ल पक्ष चला हुआ है और आगामी 27 सितंबर 2020 रविवार को पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है इसलिए उसी दिन पुरुषोत्तम एकादशी व्रत किया जाएगा। हमारे यहां शैव और वैष्णव भेद से एकादशी का व्रत दो प्रकार से प्रचलित है
पुरुषोत्तमा एकादशी की कथा
पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि जो अत्यंत श्रेष्ठ है इसके विषय में पुराणों में मिलता है विष्णु पुराण ब्रह्म पुराण श्रीमद्भागवत महापुराण इत्यादि में एकादशीयो के संबंध में विभिन्न कथाएं प्राप्त होते हैं उसमें पद्मपुराण में तथा ब्रह्म वैवर्त पुराण में पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के विषय में भी एक कथा प्राप्त होती है जिसके विषय में सर्वप्रथम प्रजापति ब्रह्मा जी ने देवर्षि नारद को और महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इस पुरुषोत्तमी एकादशी के महत्व को बताया था।
प्राचीन समय में महिष्मति नगरी में कृति वीर्य नाम के एक श्रेष्ठ राजा राज्य करते थे और उनकी पत्नी जिसका नाम पता था वह भी धर्म अनुरागिनी थी किंतु उन्हें एक दुख हमेशा संतप्त करता रहता था जिसका कारण था उनके घर में संतान का ना होना राज आकृति वीर्य ने पुत्र प्राप्ति के लिए अनेक अनुष्ठान इत्यादि का आचरण किया एकांत में जाकर के कठिन तपस्या भी की किंतु फिर भी उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हुई। जिससे वे अत्यंत दुखी हुए तब उनकी पत्नी ने अत्री ऋषि के आश्रम में जाकर परम पतिव्रता सती अनुसुइया जी के चरण कमलों में संतान प्राप्ति के लिए उपाय बताने हेतु निवेदन किया।
तब सती अनुसूया ने उन्हें पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को करने का उपाय बताया उस रानी ने उस विधान का आचरण किया उसके प्रभाव से भगवान नारायण अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने रानी प्रमादा और राजा को एक अत्यंत बलशाली पुत्र होने का वरदान दिया। और उन्हीं का वह पुत्र बाद में सहसरार्जुन के नाम से विख्यात हुआ इस प्रकार पुराणों और महाकाव्य में भी पुरुषोत्तम मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में स्थान प्राप्त होते हैं
एकादशी के मुख्य नियम
एकादशी के व्रत को करने का विधान यह है कि जो भी मानव सभ्यता का आचरण करना चाहता है। वह एकादशी से पिछली रात अर्थात दशमी की रात को भी प्रयत्न करें कि अन्न का ग्रहण ना करें और यदि अन्न के बिना वह नहीं रह पाता हो तो सूर्यास्त से पहले ही अन्न का ग्रहण कर लें उसमें भी चावल इत्यादि का प्रयोग ना करें । और भी अच्छा है इस प्रकार से दसवीं के रातों को भगवान विष्णु के चरणों का ध्यान करते हुए अगले दिन एकादशी के व्रत को करने का मन में संकल्प ले।
एकादशी तिथि के प्राप्त होने पर ब्रह्म मुहूर्त में अर्थात सूर्योदय से कम से कम डेढ़ घंटा पूर्व उठकर के अपना नित्य क्रियाएं कर संभव हो तो किसी तीर्थ में नहीं हो तो किसी नदी में स्नान करें। ऐसा भी संभव नहीं हो तो घर में ही अपने जल पात्र में गंगाजल आदि मिलाकर के आंवला का चूर्ण मिलाकर के कुछ हल्दी मिलाकर के जल से समस्त तीर्थों का मन में ही ध्यान करते हुए और जल में समस्त तीर्थों का गंगादी पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए स्नान करें। स्नान के बाद भूत वस्त्र और और प्रिय वस्त्र को धारण करें।
माथे में चंदन लगा कर उपरांत शिखा बंधन कर ले उसके बाद जो चंदन आदि कर्म किए जाते हैं उन्हें करें उसके बाद भगवान विष्णु की पूजा अत्यंत श्रद्धा और मनोयोग से अपने सामर्थ्य के अनुसार करें। पूजा करने के बाद ओम नमो भगवते वासुदेवाय उक्त द्वादश अक्षर मंत्र का अपनी सामर्थ्य के अनुसार जप करें। और विष्णु सहस्त्रनाम श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीमद्भागवत महापुराण आदि का यथासामर्थ्य पाठ करें उसके बाद पूजन इत्यादि से भगवान विष्णु की मंगल आरती करें और ब्राह्मण और गाय इत्यादि के लिए भी उनकी पूजा करने के बाद कुछ दान इत्यादि करें। गायों को हरा चारा और किसी तपस्वी ब्रह्मा निष्ठा श्रोत्रिय ब्राह्मण को फल वस्त्र तथा दक्षिणा इत्यादि देकर के साष्टांग प्रणाम करके संतुष्ट करें।
इस प्रकार से भगवान का ही नाम संकीर्तन करें अन्यथा मौन धारण करने की चेष्टा करें एकादशी के दिन किसी भी प्रकार का अर्थ का अनर्थ बातें ना करें मौन होकर के भगवान के ही नामों का जप करता रहे भगवान की ही लीलाओं का स्मरण इत्यादि करता रहे करने पर भगवान अत्यंत प्रसन्न होकर के भक्तों के समस्त वालों को अर्थात काम क्रोध मोह लोभ अहंकार इत्यादि समस्त विकारों को नष्ट करके मानव की बुद्धि आत्मा और मन को शुद्ध करते हैं और आरोग्य का धन संपत्ति का भी प्रदान प्रदान करते हैं
एकादशी को क्या न खाएं
एकादशी तिथि को अन्न का बिल्कुल निषेध है। यहां इस बात को जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि एकादशी तिथि को ना केवल चावल अपितु दाल गेहूं मक्का अथवा किसी भी प्रकार के अन्य का अत्यंत निषेध है अर्थात एकादशी तिथि को दिन रात में एक बार भी अन्न को नहीं ग्रहण करना चाहिए। इस दिन गाजर मूली चुकंदर शहद पत्तेदार सब्जियां इत्यादि खाने का भी पूर्ण निषेध है। नमक का भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। केवल शुद्ध और पके हुए फलों का ही आहार एक बार लेना चाहिए। इस प्रकार से अत्यंत संयमित होकर के इस एकादशी के व्रत को करने का विधान है।
इस दिन किसी से विवाद असत्य भाषण कलह क्लेश धन इत्यादि का लेनदेन यदि अत्यंत आवश्यक ना हो तो नहीं करना चाहिए। ना ही इस दिन किसी से अनावश्यक दान लेना चाहिए मैथुन इत्यादि क्रियाएं तो बिल्कुल ही नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से निश्चित ही उस मानव के समस्त पुण्यों का नाश हो जाता है। उसे लोक और परलोक में कभी भी सुख और शांति प्राप्त नहीं होती है। इस प्रकार से यह पुरुषोत्तम मास की एकादशी समस्त एकादशी व्रतों की अपेक्षा सर्वश्रेष्ठ और सबसे अधिक पुण्य लाभ को देने वाली है जिससे हमारे समस्त पापों और समस्त विकारों का नाश तो होता ही है। इसके अतिरिक्त हमारे पुण्यों का भी संचय होता है और भगवान की कृपा हम पर बनी रहती है इस तरह से अपना कल्याण चाहने वाले समस्त लोगों को इस एकादशी के व्रत का आचरण अवश्य ही करना चाहिए।
साभार-
डॉ. दीप कुमार
विशेषज्ञ- ज्योतिष एंव कर्मकाण्ड पुरोहित्य
सहायकाचार्य, ज्योतिष विभाग
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय वेदव्यास परिसर कांगड़ा हिमाचल प्रदेश