Sanskrit Suktiyan (Proverb)Sanskrit Suktiyan (Proverb)

संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-10 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-10:- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। संस्कृत भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है। 

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संस्कृत सूक्तियाँ

संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि संस्कृत भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-10 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-10 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।

सूक्तियाँ हिन्दी मेंसूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः)
जो अपनी सहायता करता है, ईश्वर भी उन्हीं की सहायता करता है।१. ईश्वर इच्चरतः सखा ।
२. देवं सहायतां याति हि सदोद्योगशालिनाम् ।
  
जो गरजते हैं वे बरसते नहीं।नीचो वदति न कुरुते, वदति न साधुः करोत्येव ।
जो तोको काटा बुवै ताहि बोइ तू फूल ।क्षारं पिबति पयोधेवर्षयम्भोधरो मधुरमम्भः ।
जो पैदा हुआ सो मरेगा।१. जातस्य हि ध्र वो मृत्युः ।
२. मरणं प्रकृतिः शरीरिणाम् ।
३. कः कालस्य न गोचरान्तरगत: ?
जो है जिसको भावता सो ताही के पास ।न हि विचलति मैत्री दूरतोऽपि स्थितानाम् ।
डूबा वंश कबीर का उपजे पूत कमाल।कुपुत्रेण कुलं नष्टम् ।
थोथा चना बाजे घना।१. अल्पज्ञानी महाभिमानी।
२. अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम् ।
३. न सुवर्णे ध्वनिस्तादूग यादक कांस्य प्रजायते ।
दमड़ी की बुढ़िया, टका सिरमुड़ाई।१. न काचस्य कृते जातु युक्ता मुक्तामणेः क्षतिः। (कथासरित्सागरे )
२. रत्नव्ययेन पाषाणं को रक्षितुमिच्छति।
दुधार गौ की लात भली।काश्मीररजस्य कटुताऽपि नितान्तरम्या।
दूध का जला छाछ भी फूंककर पीता है।पाणी पयसा दग्धे तकं फूत्कृत्य पामरः पिबति ।
दूर के ढोल सुहावने ।दूरतः पर्वता रम्याः ।
धन यौवन का गरब न कीजै ।१. किञ्चित्कालोपभोग्यानि यौवनानि धनानि च ।
२. अस्थिरे धनयौवने।
न इधर के रहे न उधर के रहे।१. इतो भ्रष्टस्ततो भ्रष्टः ।
२. उभयतो भ्रष्टः ।
३. इदं च नास्ति, न परं च लभ्यते ।
नहिं ऐसा कोई जग माहीं । प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं।ऋद्धिश्चित्तविकारिणी। २. कोऽर्थान् प्राप्य न गर्वितः ।
३. धनं हि मदकारकम् ।

संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-10 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-10 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र संस्कृत सीख सकेगें। 

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। जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् ।।

सौजन्य- sanskritduniya.com

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