संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-11 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-11:- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। इस भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है।
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संस्कृत सूक्तियाँ
संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि यह भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-11 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-11 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।
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सूक्तियाँ हिन्दी में | सूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः) |
न हि शील सम गहना दूजा । | शीलं परं भूषणम् । |
न होने से थोड़ा होना अच्छा। | १. वधिरान्मन्दकर्णः श्रेयान् । २. अभावादल्पता वरम् । |
निरन्तर खर्च से कुबेर का खजाना भी खाली हो जाता है। | भक्ष्यमाणो निरुदयः सुमेरुरपि हीयते। |
पर उपदेश कुशल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे ॥ | परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम् । धर्मे स्वीयमनुष्ठानं कस्य चित्तु महात्मनः ॥ |
पर घर कबहूँ न जाइये जात घटत है जोत । | परसदननिविष्टः को लघुत्वं न याति । |
पाप का भाँडा फूट ही जाता है। | नाधर्मश्चिरमृद्धये। (कथा० ) |
पैसा पापियों को पूज्य बना देता है। | चाण्डालोऽपि नरः पूज्यो यस्यास्ति विपुलं धनम् । |
पैसा रहा न पास यार मुख से नहीं बोलें। | वृक्षं क्षीणफलं त्यजन्ति विहगाः । |
पैसा हाथ का मैल है। | उदारस्य तृणं वित्तम् । |
प्राण जायें पर वचन न जाईं। | न चलति खलु वाक्यं सज्जनाना कदाचित् । |
बन्दर क्या जाने अदरख का स्वाद । | १. न भेक: कोकनदिनी किजल्कास्वादकोविदः । २. किं मिष्टमन्नं खरसूकराणाम् । |
बड़ों का मार्ग ही ठीक मार्ग है। | महाजनो येन गतः स पन्थाः । |
बड़ों की बड़ी बातें। | अहह ! महतां निस्सीमानश्चरित्र विभूतयः । |
बड़ों की संगत से बहुत लाभ होता है । | १. ध्रुवं फलाय महते महतां सहसङ्गमः । (कथासरित्सागरे ) २. सत्सङ्गतिः कथय किन्न करोति पुंसाम् । |
बहुत निबल मिलि बल करै, करें जु चाहैं सोइ । | बहूनामप्यसाराणां संहतिः कार्यसाधिका। |
संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-11 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-11 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र सीख सकेगें।
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।। जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् ।।
सौजन्य- sanskritduniya.com