संस्कृत सूक्तियाँ | Sanskrit Suktiyan (Proverb):- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। संस्कृत भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है।
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संस्कृत सूक्तियाँ
संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि संस्कृत भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ | Sanskrit Suktiyan (Proverb) पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।
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सूक्तियाँ हिन्दी में | सूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः) |
1.अङ्गूर खट्टे हैं- | -दुष्प्रापा द्राक्षा अम्लाः । -अलभ्यं हीनमुच्यते । |
2.अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जावेंगे- | स्थिरे मूले ध्रवा वृद्धिः । |
3.अन्तड़ी में रूप बुकची में छब्ब- | – रूपमन्ने छविर्वसने । – निराहारे कुतो रूपं निर्वस्ने च कुतश्छविः। |
4. अन्दर से काले बाहर से गोरे- | -विषकुम्भाः पयोमुखाः। -अन्तः शाक्ता बहिः शैवाः। |
5. अन्धा क्या चाहे दो आँखें- | इष्टलाभः परं सुखम्। |
6. अन्धा क्या जाने वसन्त की बहार | – गुणान्वसन्तस्य न वेत्ति वायसः। – लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति? – न भेकः कोकनदिनी किजल्कोस्वाद कोविदः। (कथासरितसागरे) |
7. अन्धा गुरु बहरा चेला दोनों नरक में ठेलम ठेला। | -अन्धस्यान्धानुलग्नस्य विनिपातः पदे पदे । |
8. अन्धा बांटे रेबड़ी फिर-फिर अपनों दे। | -विवेकरहितः खलु पक्षपाती। |
9. अन्धे के हाथ बटेर। | -अन्धस्य वर्तकीलाभः। |
10. अन्धे के आगे रोवे अपने नयन खोवे। | -अरण्यरुदितमिव निष्प्रयोजनम् । |
11. अन्धे को सब अन्धे ही दीखते हैं। | – पश्यति पित्तोपहतः शशिशुभ्रं शङ्खमपि पीतम्। – पित्तेन दूने रसने सितापि तिक्तायते। (नैषधे) |
12. अन्धेर नगरी चौपट राजा । टके सेर भाजी टके सेर खाजा । | -नृपे मूढे कुतो नयः। |
13. अन्धों ने ग्राम लूटा दौड़ियो रे लङ्गड़े । | -अन्धेर्लुण्ठितो ग्रामः पङ्गो रे धावसत्वरम् । |
14. अन्धों में काना राजा। | – यत्र विद्वज्जनो नास्ति श्लाध्यस्तत्राल्पधीरपि। – निरस्तपादपे देशे एरण्डोऽपि द्रुमायते। |
15. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। | -उत्पतितोऽपि चणकः शक्तः किं भ्राष्ट्र भक्तुम् ? |
उपदेशात्मक श्लोक
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।अर्थात् यह मेरा है , यह उसका है। इस प्रकार की सोच संकुचित मन वाले मनुष्य करते हैं। जबकि उदारचरित वाले अर्थात् उदार मन वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण संसार ही एक परिवार (कुटुम्ब) होता है।
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संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियों | Sanskrit Suktiyan (Proverb) को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र संस्कृत सीख सकेगें।
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।। जयतु संस्कृतं जयतु भारतम् ।।
सौजन्य- sanskritduniya.com
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