संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-15 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-15:- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। इस भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है।
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संस्कृत सूक्तियाँ
संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि यह भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-15| Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-15 पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।
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सूक्तियाँ हिन्दी में | सूक्तियाँ संस्कृत में (सूक्तयः) |
शूरवीर मौत की परवाह नहीं करते। | शूरस्य मरणं तृणम् । |
शेर भूखा मर जाता है परन्तु घास | १.न प्राणान्ते प्रकृतिविकृतिर्जायते नहीं खाता। चोत्तमानाम् । २. न स्पृशति पल्वलाम्भः पंजरशेषोऽपि कुञ्जरः क्वाऽपि । ३. सर्वः कृच्छगतोऽपि वाञ्छति जनः सत्त्वानुरूपं फलम् । |
संगठन में बड़ी शक्ति है। | १. संहतिः कार्य-साधिका । २. पञ्चभिमिलितः किं यज्जगतीह न साध्यते । |
सन्तों के कारज आप सँवारे । | देवेनैव हि साध्यन्ते सदाः शुभकर्मणाम् ।(कथा) |
सन्तोष सबसे बड़ा धन है? | १. सन्तोष एव पुरुषस्य परं निधानम् । २. सन्तोषः परमं धनम् । |
सन्तोष सबसे बड़ा सुख है। | सन्तोषः परमं सुखम् no |
संसार में धन ही अपना हितैषी है। | अर्थो हि लोके पुरुषस्य बन्धुः । |
सब गुण तो किसी में नहीं होते। | १. नहि पुनः सर्वत्र सर्वे गुणाः। (हनुमन्नाटके) २. नैकत्र सर्वो गुणसन्निपातः । |
सब सब कुछ नहीं जानते । | नहि सर्वविदः सर्वे। |
साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर | नास्ति सत्यात्परो धर्मः नाऽनृतात् पातकं परम् । |
सांप निकल गया तो लकीर पीटा करो। | १. चौरे गते वा किमु सावधानम्। २. पयोगते किं खलु सेतुबन्धः । |
सार-सार को गह रहे थोथा देय उड़ाय। | 1. सारं ततो ग्राह्यमपास्य फल्गु । 2. हंसो हि क्षीरमादत्ते तन्मिश्रा वर्जयत्यपः। (अभिज्ञानशा०) |
सारी जाती देखकर माधी लेय बचाय । | १. सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्द्ध त्यजति पण्डितः । २. त्यजेदेकं कुलस्यार्थे । |
सारी रात रोये एक भी न मरा। | परमार्थमविज्ञाय न भेतव्यं क्वचि. न्तुभिः। (कथा) |
सीख न दीजै बानरा जो बये का घर जाय। | १. उपदेशो हि मूर्खाणाम् प्रकोपाय न शान्तये। २. मूर्खाणाम् बोधको रिपुः । |
सीधी उंगलियों से घी नहीं निकलता। | आर्जवं हि कटिलेषु न नीतिः। ( नैषधे ) २. शाम्येत प्रत्यपकारेण नोपकारेण दुर्जनः । |
सुख दुःख सबके साथ लगे हुए हैं। | कस्यैकान्तं सुखमुपनतं दःखमेकान्ततोवा नीचैर्गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण। (मेघदूते ) |
सुतबिन सूना गेह। | अपुत्रस्य गृहं शून्यम्। |
सूरदास जासों जाको हित सो ही ताहि सुहात । | यदेव रोचते यस्मै भवेत् तत् तस्य सुन्दरम्। |
सोने में सुगन्ध । | केवलोऽपि सुभगो नवाम्बुदः किं पुनस्त्रिदशचापलाञ्छितः ।( रघुवंशे ) |
स्वभाव नहीं बदलता। | १. स्वभावो हि दुरतिक्रमः । २. या यस्य प्रकृतिः स्वभावजनिता केनापि न त्यज्यते । |
होनहार फिरती नहीं होवे बिस्से बीस । | १. हतविधिपरिपाकः केन वालङ्घनीयः। २. विधिरहो बलवानिति मे मतिः । ३. भवितव्यानां द्वाराणि भवन्ति सर्वत्र । ४. भवितव्यं भवत्येव कर्मणां गतिरीदृशी। |
हो विधिना प्रतिकूल जब तब ऊंट चढे कूकर काटत । | अहो विधी विपर्यस्ते न विपर्यस्तीह किम् ? |
संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने संस्कृत सूक्तियाँ, भाग-15 | Sanskrit Suktiyan (Proverb) Part-15 को जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें।
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।। जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम् ।।
सौजन्य- sanskritduniya.com