संस्कृतश्लोकसंस्कृतश्लोक

संस्कृताक्षरि | संस्कृत श्लोक | सुभाषित-01 संस्कृत साहित्य में ऐसे अनमोल श्लोक अथवा सुभाषित है, जो व्यक्ति के जीवन को निराशा से आशा, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जानें में सहायक सिद्ध होते हैं। आईए उनको पढ़े जाने और समझें…..

अष्टावक्र गीता

  •  “स्वातन्त्र्यात् सुखमाप्नोति स्वातन्त्र्याल्लभते परम्।

      स्वातन्त्र्यात् निर्वृत्तिं गच्छेत् स्वातन्त्र्यात् परमं पदम्।।”- अष्टावक्र गीता, 18.50

अर्थात- मनुष्य स्वतन्त्रता से सुख को प्राप्त करता है। स्वतन्त्रता से परम तत्व को प्राप्त करता है। स्वतन्त्रता से निर्वृत्ति (शान्ति) को प्राप्त करता है। स्वतन्त्रता से परम पद को प्राप्त करता है।

  • अलब्धं चैव लिप्सेत, लब्धं रक्षेत् प्रयत्नत:।

     रक्षितं वर्धयेत् चैव, वृध्दं पात्रेषु निक्षिपेत् ॥ – मनुस्मृति, 7.102

अर्थात्- जो नही मिला है, उसे (धर्मयुक्त मार्ग से)पाने की इच्छा करे। जो मिला है, उस की प्रयत्नपूर्वक रक्षा करे। जो रक्षित है, उसे बढाये और बढा हुआ योग्य व्यक्ति को दान दे।

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  • अनित्यं यौवनं रूपं जीवितं द्रव्यसंचयः।
    आरोग्यं प्रियसंवासो गृध्येत्तत्र न पण्डितः।।- महाभारत, 3.2.45

अर्थात्- युवावस्था, बाल्यावस्था, शरीर और धनसम्पत्ति ये सब अनित्य हैं। जैसे समुद्र की लहरें अपने रूप को निरन्तर बदलती हैं । वेसै सब चीजें अपने पुर्व स्वभाव से अन्ये स्वभाव को प्राप्त होते हैं।

  • “उत्तमस्य क्षणं कोपो मध्यमस्य प्रहरद्वयं |

अधमस्य त्वहोरात्रे पापिष्ठो नैव मुञ्चति ||”

अर्थात्-  उत्तम श्रेणी के व्यक्तियों को किसी कारण वश क्रोध आता है तो वह क्षण मात्र तक ही रहता है। मध्यम श्रेणी के व्यक्तियों का क्रोध दो प्रहर (छः घण्टे) तक ही रहता है, तथा निम्न श्रेणी के व्यक्तियों का क्रोध एक दिन और एक रात पर्यन्त ही बना रहता है। परन्तु जो पापी और निकृष्ट व्यक्ति होते हैं। क्रोध उनका साथ कभी भी नहीं छोडता है। अर्थात वे सदैव क्रोधित ही रहते हैं ।

  • निरुत्साहस्य दीनस्य शोकपर्याकुलात्मनः ।

सर्वार्था व्यवसीदन्ति व्यसनं चाधिगच्छति ॥

अर्थात्-  उत्साह हीन, दीन और शोकाकुल मनुष्य के सभी काम बिगड़ जाते हैं , वह घोर विपत्ति में फंस जाता है ।

  • जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे।

मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्या च विभवक्षये।।

अर्थात्-  किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेज़ते समय सेवक की पहचान होती है। दुःख के समय में बन्धु-बान्धवों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है

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