मिठाईयों के नाम संस्कृत मेंमिठाईयों के नाम संस्कृत में

संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। इस भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है। 

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संस्कृत का प्रचार-प्रसार अब वर्तमान तकनीकी युग में बहुत तेजी से बढ़ रहा। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि संस्कृत भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने।

आज हम मिठाईयों के नाम संस्कृत मेंपढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।

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मिठाईयों के नाम संस्कृत में

मिठाईयों के नाम संस्कृत में

आलू-आलुः
गोलमाल-वर्तुलम्
आलू को टिकिया-पक्वालुः
घी-घृतम्, आज्यम्
इमरती-अमृती
घेबर-घृतपूरः
इलायची-एला
चटनी-अवलेह
कचौरी-माषगर्भा, पिष्टिका
चाट-अवदेशः
कढ़ी-तेमनम्
चायपानी-चायपानम्
कलाकन्द-कलाकन्दः
चीनी-सिता
कसैला-कषायम्
छाछ(मट्ठा)-तक्रम, कालशेयम्
काफी-कफघ्नी
जलपान-जलपानम्
कुलफी-कूलपी
जलेबी-कुण्डली, कुण्डलिका
केतली–कन्दुः
टाफी-गुल्यः
खाजा-मधुशीर्षः
टी पार्टी-सपीतिः
खीर-पायसम्
टेढ़ा-वक्रम्
गजक-गजकः
टोस्ट-भृष्टापूवः
गुलाब जामुन-दूग्धपूपिका
डबल रोटी-अभ्यूषः
गुझिया-संयावः
तेज-तिक्तम्
मक्खन-नवनीतम् , दधिजम्
दही-दधि
मलाई-सन्तानिका
दहीबड़ा-दधिबटकः
मसाला-व्यंजनम्
दालमोठ-दालमुद्गः
मिठाई-मिष्ठान्नम्
दूध-दुग्धम्, पयः, क्षीरम्
मालपूजा-अपूयः, मल्लपूयः
नमक-लवणम्
मुरब्बा-मिष्टपाकः
नमकीन-लवणान्नम्
मावा (खोया)-किलाटः, किलाटिका
नमकीन सेव-सूत्रकः
मिस्री-सिता
पकवान-पक्वान्नम्
पकौड़ी-पक्ववटिका
मोहन भोग-मोहनभोगः
पपड़ी-पर्पटी
खाड़ी-कूर्चिका
परौंठा-पूपिका
रसगुल्ला-रसगोलः
पापड़–पर्पटा
रायता-दाधेयम्, राज्यक्तम्
पुलाव (तहरी)-पुलाकः
लंच-सहभोजः
पूआ-पूपः, पीठिका
लड्डु-मोदकः
पूड़े-अपूपः
लपसी-यवागूः
पूरी-पूलिका, शष्कुली
लस्सी-दाधिकम्
पेड़ा-पिण्डः
लहशुन-लशुनः, लशुनम्
पेठे की मिठाई-कौष्माण्डम्
लाजा-लाजाः
पेस्टी-पिष्टान्नम्
शक्कर-शर्करा
फैनी- फेनिका
शक्वरपारा-शर्करापालः
बताशा-वाताशः
संमोसा-समोषः
बरफी-हैमी
सुपारी-पूगम्, पूगीफलम्
बालू शाही-मिष्टमण्ठः, मधुमण्ठः
सेवई-सूत्रिका
बिस्कुट-पिष्टकः
हलुआ-लप्सिका
भाँग-भङ्गा, मातुलानी
हलवाई-कान्दविकः

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संस्कृत सीखें के अन्तर्गत इस पाठ में हमने मिठाईयों के नाम संस्कृत में जाना। इसका अभ्यास अधिक से अधिक करें। जितना अधिक अभ्यास रहेगा उतने ही शीघ्र संस्कृत सीख सकेगें। 

उपदेशात्मक संस्कृत श्लोक

माता यस्य गृहे नास्ति भार्या चाप्रियवादिनी।

अरण्यं तेन गन्तव्यं यथारण्यं तथा गृहम् ॥ 

अर्थात् जिसके घर में न माता हो और न स्त्री प्रियवादिनी हो , उसे वन में चले जाना चाहिए। क्योंकि उसके लिए घर और वन दोनों समान ही हैं ।

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। जयतु संस्कृतं जयतु भारतम् ।।

सौजन्य- sanskritduniya.com

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