संस्कृताक्षरि | संस्कृत श्लोक | सुभाषित-03 संस्कृत साहित्य में ऐसे अनेक अनमोल श्लोक अथवा सुभाषित है, जो व्यक्ति के जीवन को निराशा से आशा, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जानें में सहायक सिद्ध होते हैं। आईए उनको पढ़े जाने और समझें….
वाणी रसवती यस्य,यस्य श्रमवती क्रिया।
लक्ष्मी : दानवती यस्य,सफलं तस्य जीवितं।।
अर्थ — जिस मनुष्य की वाणी अर्थात् बात चीत मीठी हो, जिसका काम परिश्रम से भरा हो, जिसका धन दान करने में प्रयुक्त हो अर्थात् जो अर्जित धन को दान करने में लगा रहता है, उसका जीवन सफ़ल है।
प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात तदैव वक्तव्यम वचने का दरिद्रता।।
अर्थ — प्रिय वाक्य बोलने से सभी जीव संतुष्ट हो जाते हैं, अतः प्रिय वचन ही बोलने चाहिए। ऐसे वचन बोलने में कंजूसी कैसी।
पुस्तकस्था तु या विद्या,परहस्तगतं च धनम्।
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम्।।
अर्थ — किसी पुस्तक में रखी विद्या और दूसरे के हाथ में गया धन। ये दोनों जब जरूरत होती है तब हमारे किसी भी काम में नहीं आती।
देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चन:।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः।।
अर्थ — भाग्य रूठ जाये तो गुरू रक्षा करता है। गुरू रूठ जाये तो कोई नहीं होता। गुरू ही रक्षक है, गुरू ही शिक्षक है, इसमें कोई संदेह नहीं।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।
अर्थ — बड़ों का अभिवादन करने वाले मनुष्य की और नित्य वृद्धों की सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल ये हमेशा बढ़ती रहती है।
सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्।।
अर्थ — सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ से, और विद्यार्थी को सुख कहाँ से, सुख की इच्छा रखने वाले को विद्या और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख का त्याग कर देना चाहिए।
स्तस्य भूषणम दानम, सत्यं कंठस्य भूषणं।
श्रोतस्य भूषणं शास्त्रम,भूषनै:किं प्रयोजनम।।
अर्थ — हाथ का आभूषण दान है, गले का आभूषण सत्य है, कान की शोभा शास्त्र सुनने से है, अन्य आभूषणों की क्या आवश्यकता है।
अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम्।।
अर्थ — निम्न कोटि के लोग सिर्फ धन की इच्छा रखते हैं। मध्यम कोटि का व्यक्ति धन और सम्मान दोनों की इच्छा रखता है। वहीं एक उच्च कोटि के व्यक्ति के लिए सिर्फ सम्मान ही मायने रखता है। सम्मान से अधिक मूल्यवान है।
विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभ्य सह।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वाऽमृतमश्नुते।।
अर्थ — जो दोनों को जानता है, भौतिक विज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक विज्ञान भी, पूर्व से मृत्यु का भय अर्थात् उचित शारीरिक और मानसिक प्रयासों से और उतरार्द्ध अर्थात् मन और आत्मा की पवित्रता से मुक्ति प्राप्त करता है।
संस्कृताक्षरि | संस्कृत श्लोक | सुभाषित-03 संस्कृत साहित्य में ऐसे अनेक अनमोल श्लोक अथवा सुभाषित है, जो व्यक्ति के जीवन को निराशा से आशा, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जानें में सहायक सिद्ध होते हैं। आईए उनको पढ़े जाने और समझें….
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्।।
अर्थ — ज्ञान विनम्रता प्रदान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से धन प्राप्त होता है, जिससे व्यक्ति धर्म के कार्य करता है और सुखी रहता है।
न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।
अर्थ — न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न इसका भाइयों के बीच बंट वारा होता है और न ही संभलना कोई भर है। इसलिए खर्च करने से बढ़ने वाला विद्या रुपी धन, सभी धनों से श्रेष्ठ है।
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यं प्रियम।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात एष धर्म: सनातन:।।
अर्थ — सत्य बोलो, प्रिय बोलो, अप्रिय लगने वाला सत्य नहीं बोलना चाहिए प्रिय लगने वाला असत्य भी नहीं बोलना चाहिए।
काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमतां।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा।।
अर्थ — बुद्धिमान लोग काव्य-शास्त्र का अध्ययन करने में अपना समय व्यतीत करते हैं। जबकि मुर्ख लोग निंद्रा, कलह और बुरी आदतों में अपना समय बिताते हैं।
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अर्थ — गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं, गुरू ही शंकर है, गुरू ही साक्षात परमब्रह्म हैं। ऐसे गुरू का मैं नमन करता हूं।
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्।।
अर्थ — विद्या हमें विनम्रता प्रदान करती है। विनम्रता से योग्यता आती है व योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है और इस धन से हम धर्म के कार्य करते है और सुखी रहते है।
सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्।।
अर्थ — सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ से, और विद्यार्थी को सुख कहाँ से, सुख की इच्छा रखने वाले को विद्या और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख का त्याग कर देना चाहिए।
स्वातन्त्र्यात् सुखमाप्नोति स्वातन्त्र्याल्लभते परम्।
स्वातन्त्र्यात् निर्वृत्तिं गच्छेत् स्वातन्त्र्यात् परमं पदम्।।”- अष्टावक्र गीता, 18.50
अर्थात- मनुष्य स्वतन्त्रता से सुख को प्राप्त करता है, स्वतन्त्रता से परम तत्व को प्राप्त करता है, स्वतन्त्रता से निर्वृत्ति (शान्ति) को प्राप्त करता है, स्वतन्त्रता से परम पद को प्राप्त करता है।
- अलब्धं चैव लिप्सेत, लब्धं रक्षेत् प्रयत्नत:।
रक्षितं वर्धयेत् चैव, वृध्दं पात्रेषु निक्षिपेत् ॥ – मनुस्मृति, 7.102
अर्थात्- जो नही मिला है, उसे (धर्मयुक्त मार्ग से)पाने की इच्छा करे। जो मिला है, उस की प्रयत्नपूर्वक रक्षा करे। जो रक्षित है, उसे बढाये और बढा हुआ योग्य व्यक्ति को दान दे।
- अनित्यं यौवनं रूपं जीवितं द्रव्यसंचयः।
आरोग्यं प्रियसंवासो गृध्येत्तत्र न पण्डितः।।- महाभारत, 3.2.45
अर्थात्- युवावस्था, बाल्यावस्था, शरीर और धनसम्पत्ति ये सब अनित्य हैं। जैसे समुद्र की लहरें अपने रूप को निरन्तर बदलती हैं वेसै सब चीजें अपने पुर्व स्वभाव से अन्ये स्वभाव को प्राप्त होते हैं॥
- “उत्तमस्य क्षणं कोपो मध्यमस्य प्रहरद्वयं |
अधमस्य त्वहोरात्रे पापिष्ठो नैव मुञ्चति ||”
अर्थात्- उत्तम श्रेणी के व्यक्तियों को किसी कारण वश क्रोध आता है तो वह क्षण मात्र तक ही रहता है। मध्यम श्रेणी के व्यक्तियों का क्रोध दो प्रहर (छः घण्टे) तक ही रहता है, तथा निम्न श्रेणी के व्यक्तियों का क्रोध एक दिन और एक रात पर्यन्त ही बना रहता है। परन्तु जो पापी और निकृष्ट व्यक्ति होते हैं, क्रोध उनका साथ कभी भी नहीं छोडता है, अर्थात वे सदैव क्रोधित ही रहते हैं ।
- निरुत्साहस्य दीनस्य शोकपर्याकुलात्मनः ।
सर्वार्था व्यवसीदन्ति व्यसनं चाधिगच्छति ॥
अर्थात्- उत्साह हीन, दीन और शोकाकुल मनुष्य के सभी काम बिगड़ जाते हैं , वह घोर विपत्ति में फंस जाता है ।
- जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे।
मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्या च विभवक्षये।।
अर्थात्- किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेज़ते समय सेवक की पहचान होती है। दुःख के समय में बन्धु-बान्धवों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है