संस्कृत लोकोक्तियाँ | लोकोक्तियां | Sanskrit Proverbs | lokoktiyan :- संस्कृत भाषा हमारे देश का गौरव ही नहीं अपितु ज्ञान-विज्ञान की जननी भी है। यह भाषा विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। इस भाषा को पढ़ने, समझने और जानने की रुचि भारत में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ रही है।
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संस्कृत सूक्तियाँ
संस्कृत का प्रचार-प्रसार वर्तमान काल में बहुत तीव्रता सेहो रहा है। प्रचार का माध्यम चाहे संस्कृत शिविरों के माध्यम से हो रहा हो अथवा संस्कृत में हिन्दी गानों का अनुवाद कर उनका गायन कर हो रहा हो। सबका एक ही ध्येय है कि यह भाषा पुनः बोल चाल की भाषा बने। आज हम संस्कृत लोकोक्तियाँ | लोकोक्तियां | Sanskrit Proverbs | lokoktiyan पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से संस्कृत पढ़ने में सरलता आयेगी।
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- स हि भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला- जिसकी कामनाएँ विशाल हैं, वह ही दरिद्र है।
- जलबिंदुनिपातेन पूर्यते घट: – बूंद बूंद से घड़ा भरता है।
- न हि सर्व: सर्वं जानाति- सभी लोग सब कुछ नहीं जान सकते हैं।
- वृतं यत्नेन संरक्षेत् वित्तमेति च याति च-चरित्र की रक्षा यत्नपूर्वक करनी चाहिए धन तो आता जाता रहता है।
- गरीयषी गुरो: आज्ञा-गुरुजनों की आज्ञा महान् होती है, उनका पालन करना चाहिए।
- आचार: परमो धर्मः-आचार ही परम धर्म है।
- यथा वृक्षस्तथा फलम्- जैसी मुँह वैसी चपेट।
- संसर्गजा दोषगुणा: भवन्ति- संगति से ही दोष और गुण होते हैं।
- न हि प्रियं प्रवक्तुमिच्छन्ति मृषा हितैषिण:-जो कल्याण चाहते हैं, वह किसी से उम्मीद (इच्छा) नहीं करते हैं।
- लोभ: पापस्य कारणम्- लालच पाप का कारण है।
- अनतिक्रमणीया नियतिरिति- नियति को कोई नहीं टाल सकता।
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- उद्यमेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः- उद्यम से जो कार्य सिद्ध होता है वह पराक्रम से नहीं होता ।
- हेम्न: संलक्ष्यते ह्यग्नौ विशुध्दि: श्यामिकापि वा- सोने की शुध्दता अथवा मलीनता की परीक्षा अग्नि में डालने से ही होती है।
- कालः सर्वं विरोपयति- समय सारे घाव भर देता है।
- यदन्नः पुरुषो भवति तदन्नास्तस्य देवता- जो व्यक्ति यदन्न होता है उसका देवता भी तदन्न ही होता है।
- उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः- परिश्रम सफलता की पूँजी है।
- यथा राजा तथा प्रजा- जैसा राजा वैसी प्रजा।
- न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्य- मनुष्य धन की इच्छा से कभी तृत्प नहीं होता
- दूरस्था: पर्वता: रम्या: – दूर के ढोल सुहावने लगते हैं ।
- शठे शाठ्यं समाचरेत् – जैसे का तैसा।
- बलवान् जननीस्नेहः- माता का स्नेह बलवान् होता है।
- कः कं शक्तो रक्षितुं मृत्युकाले- मृत्यु समीप आ जाने पर कौन किसकी रक्षा कर सकता है।
- संघे शक्तिः कलौ युगे – एकता में बल है
- विषमस्य विषमौषधम्- जहर को जहर मारता है ।
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- अति सर्वत्र वर्जयेत- अति सब जगह वर्जित है।
- आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महानरिपु- व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य होता है।
- कण्टकेनैव कण्टकम् – कांटे से कांटा निकाला जाता है ।
- वीरभोग्या वसुन्धरा – (केवल वीर ही इस वसुंधरा का उपभोग कर सकते हैं) जिसकी लाठी उसकी भैंस।
- महाजनो येन गतः स पंन्थाः- बड़ो की राह भली।
- विषकुम्भं पयोमुखम् – मूंह में राम बगल में छुरी ।
- एका क्रिया द्वयर्थकरी प्रसिद्धा – एक पन्थ दो काज ।
- शुभस्य शीघ्रम् – तुरन्त दान महाकल्याण ।
- मौनं सम्मतिलक्षणम्- मौन रहना सम्मति का लक्षण है।
- इतो भ्रष्टोरततो नष्ट: -धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।
- आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् -आहार और व्यवहार में संकोच ना करने वाला सुखी रहता है।
- दुर्बलस्य बलं राजा -निर्बल के बल राम ।
- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी- जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है |
- बह्वारम्भे लघुक्रिया – खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
- मुंडे मुंडे मतिर्भिन्नाः-अलग अलग लोगों की अलग अलग राय होती है।
- दुखं न्यासस्य रक्षणम्- न्यास की रक्षा करना बहुत कष्ट का विषय है।
- हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः- हितकारी और मनोहारी वचन दुर्लभ है।
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- परोपकाराय सतां विभूतयः- सज्जनों की विभूति हमेशा परोपकार के लिए होती है।
- यत्ने कृते यदि नसिद्धयति को अत्र दोषः- प्रयत्न करने पर भी कम न हो तो किसका दोष?
- यादृशी शीतलादेवी तादृशी वाहन खरः – जैसे को तैसा।
- संतोष: परमो सुखम्- सबसे श्रेष्ठ सुख संतोष ही है।
- अतिथि देवो भव- अतिथि देव स्वरूप होता है।
- स हि भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला- जिसकी कामनाएँ विशाल हैं, वह ही दरिद्र है।
- गत: कालो न आयाति- गया वक्त हाथ नहीं आता।
- चरन् वै मधु वदन्ति- कार्यशील ही मधु को प्राप्त करता है ।
- सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्यजति पण्डित:-भागते चोर की लँगोटी ही सही ।
- न कूपखननं युक्तं प्रदीप्ते वह्निना गृहे- पहले कार्य आरम्भ न करके अन्तिम समय में कार्य आरम्भ करना।
- शीलं परं भूषणम्- सहनशीलता सबसे बड़ा आभूषण है।
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