जानें, सूर्य ग्रह का जन्म कुंडली के 12 भावों में प्रभाव:- भारतीय सनातन संस्कृति में सूर्य ग्रह को भगवान के रूप में पूजा जाता है। सूर्य ग्रह को काल का वाहक माना जाता है। हिंदू पंचांग की गणना सूर्य ग्रह के आधार पर की जाती है अतः सूर्य का प्रभाव मानव जीवन पर ही नहीं अपितु इस चराचर जगत के सभी प्राणियों के ऊपर रहता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रह को सभी ग्रहों में राजा माना जाता है। जन्म कुंडली के 12 भावों में अथवा घरों में सूर्य का अपना अलग-अलग प्रभाव अर्थात फल रहता है। जन्म कुंडली में सूर्य को पिता के प्रतिनिधित्व के रूप में माना जाता है।
सूर्य ग्रह का जन्म कुंडली के 12 भावों में प्रभाव
सूर्य ग्रह की राशि सिंह होती है अर्थात सूर्य सिंह राशि का स्वामी होता है और मेष राशि में सूर्य उच्च का माना जाता है वहीं तुला राशि में सूर्य नीच राशि का माना जाता है।
आइए आज के लेख में हम सूर्य ग्रह का जन्म कुंडली के बारह भावों में क्या-क्या प्रभाव रहता है उसको जानेंगे।
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प्रथम भाव
यदि किसी जातक अर्थात बालक की जन्म कुंडली के लग्न अर्थात् प्रथम भाव में सूर्य हो, तो वह जातक पतले शरीर वाला, धन तथा कुटुंब का सुख सामान्य वाला, नेत्र विकार अर्थात नेत्र समस्या वाला, स्त्री क्लेश वाला, शिरोभाग में चिन्ह वाला तथा शिरोरोग वाला होता है।
दूसरा भाव
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में सूर्य हो तो चतुष्पदों से सुख वाला, धन कुटुंब वाला, धातु का सुख मध्यम, कटु बोलने वाली प्रिया वाला, बड़े दांत वाला, नेत्र विकार वाला, कर्ण विकार तथा सामान्य स्त्री सुख वाला होता है।
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तीसरा भाव
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के तीसरे भाव में सूर्य हो तो वह पराक्रमी, भाग्यवान, यात्रा कारक, व्यवसाय, साहसी, मातृक्लेश वाला और सुखी होता है।
चतुर्थ भाव
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव में अर्थात चौथे भाव में सूर्य हो तो वह मातृक्लेश, उदर विकृति, बंधु विरोध, मित्र युक्त, पितृ सुख मध्यम, राज द्वार से लाभ, प्रतिष्ठा और गृह सुख वाला होता है।
पंचम भाव
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के पांचवें भाव में सूर्य हो तो वह जातक बुद्धिमान, विद्वान, मंत्रज्ञ, चंचल, साहसी, शत्रुनाशक और लाभगवान होता है परंतु उदर विकार तथा संतान बाधा भी होती है।
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छठा भाव
यदि जातक की जन्म कुंडली के छठे भाव में सूर्य हो तो शत्रु की चिंता, शत्रु नाश, रोग की अल्पता, चतुष्पद की वृद्धि, चतुष्पद से सुख, अच्छे पद की प्राप्ति, मातुल क्लेश, स्त्री क्लेश और विशेष व्यय, राजद्वारा व मित्रद्वारा होता है।
सातवां भाव
यदि किसी की जन्म कुंडली के सातवें भाव में सूर्य हो तो वह जातक स्त्री क्लेश कारक, स्त्री विरोधी, अल्प कामी, व्यवसाय न्यूनता, परदेस यात्रा, पतले शरीर वाला और चिंता करने वाला होता है।
आठवां भाव
यदि किसी की जन्म कुंडली के आठवें भाव में सूर्य हो तो रोगकारक, पित्त का विकार, चिंता अधिक, व्यय, गुप्त रोग, वर्ण विकार, कुटुंब, अखिलेश, भोजन क्लेश और धर्म, उन्नति कारक होता है।
नवम भाव
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के नौवें भाव में सूर्य हो तो यात्रा कारक, धर्म में हेतुवादिता, बुद्धि की क्षमता, विद्या की वृद्धि, सहस अधिकता, क्लेश कारी, वाहन सुख और नृत्य, सुख अर्थात नौकरों का सुख वाला होता है।
दशम भाव
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली के दसवें भाव में सूर्य स्थित हो तो वह जातक प्रतापी, व्यवसाय की वृद्धि करने वाला, राज सम्मान प्राप्त करने वाला, प्रतिष्ठा यश प्राप्त करने वाला, मातृक्लेश वाला, संपत्ति की वृद्धि करने वाला, क्लेश वृद्धि वाला, कम खर्च करने वाला होता है।
ग्यारहवां भाव
यदि किसी जातक की जन्मकुंडली के ग्यारहवें भाव में सूर्य स्थित हो तो अनेक प्रकार के लाभ वाला, राज्य संबंध वाला, साहस अधिकता वाला, चतुष्पद सुख वाला, प्रथम संतति क्लेश वाला और उदर विकार वाला होता है।
बाहरवां भाग
यदि किसी जातक की जन्मकुंडली के बाहर में भाव में सूर्य स्थित हो तो वह जातक अच्छे कार्य करने वाला, मातृक्लेश युक्त, शत्रु बाधा वाला, शत्रु नाश वाला, धर्म उन्नति वाला, पतले शरीर वाला, राजकीय कर्म में बाधा वाला होता है।
उपरोक्त वर्णन द्वारा हम जातक की जन्मकुंडली के 12 भावों में स्थित सूर्य के शुभ अशुभ फलादेश को जान सकते हैं ।
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