गोपाष्टमीगोपाष्टमी

गोपाष्टमी व्रत 2021 । जाने इसकी पूजा विधि, कथा एवं पौराणिक महत्त्व:- हमारी सनातन संस्कृति पूरे विश्व में व्रत पर्व एवम त्यौहारों की संस्कृति के रूप में जाना जाता है। इन्हीं पर्व और त्योहारों में से एक है गोपाष्टमी व्रत।

गोपाष्टमी व्रत का संबंध है द्वापर युग के भगवान श्री कृष्ण के साथ है। गोपाष्टमी को भगवान श्री कृष्ण का गौ माता के प्रति प्रेम एवं स्नेह के रूप में माना जाता है।

गोपाष्टमी व्रत

द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के कालखंड में जब इंद्रदेव ने ब्रज वासियों पर अपना प्रकोप वर्षा कर प्रदर्शित किया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगूठी पर उठाकर ब्रज वासियों की रक्षा की थी। उसके बाद जब इंद्र देव का घमंड टूटा तब कामधेनु ने भगवान श्रीकृष्ण का आपने दूध से अभिषेक किया था। पौराणिक मान्यता अनुसार उसी समय से गोपाष्टमी पर्व मनाने की परंपरा प्रारंभ हुई। आज के लेख में हम गोपाष्टमी व्रत विधि, कथा एवं इसके पौराणिक महत्त्व के विषय में जानेंगे।

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गोपाष्टमी व्रत तिथि

गोपाष्टमी व्रत-  11 नवंबर 2021 गुरुवार को

अष्टमी तिथि का प्रारंभ-  11 नवंबर 2021 को प्रातः 06:50 से

अष्टमी तिथि का समापन-  12 नवंबर 2021 को प्रातः 05:51 तक

गोपाष्टमी व्रत पूजन विधि

वर्तमान परिदृश्य में गोपाष्टमी का आयोजन औऱ भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब बहुत सी गायें बेसहारा रूप में घुम रही है। गोपाष्टमी व्रत तभी सफल माना जाएगा अगर बेसहारा गायों का भी पूजन एवं उनका पालन लोग प्रारंभ करें। आइए इसी संकल्प के साथ गोपाष्टमी व्रत पूजन विधि को जानते हैं।

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  • आज के दिन गाय तथा उनके बछड़ों को साफ स्वच्छ तथा वह लाकर तैयार किया जाता है
  • गौमाता तथा बछड़े को सुंदर वस्त्र पहनाकर उनको सजाएं उनको तैयार करें।
  • इसके बाद गौ माता की परिक्रमा कर उन्हें बाहर लेकर जाना चाहिए तथा उनको पकड़ कर कुछ दूरी तक चलना चाहिए।
  • विशेष रूप से इस दिन गाय का दान  करना शुभ माना जाता है
  • गाय तथा बछड़े को हरा चारा आदि शुद्ध सात्विक मन से खिलाना चाहिए।
  • गाय की पूजा अर्चना गंगाजल फुल तथा धूप दीप आदि जलाकर प्रसन्न मन से करें।
  • विशेष रूप से आज के दिन लोगों को चाहिए कि वह गौशालाओं में जाकर खाने की चीजें तक कुछ अन्य वस्तुएं अवश्य दान करें।
  • आज के दिन जो कोई भी गौ भक्त गाय को भोजन के रूप हरा चारा आदि कराता है, उसकी सेवा करता है। तथा संध्याकाल में गौ माता की पंचोपचार विधि से पूजा अर्चना करता है। भगवान श्रीकृष्ण उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

गोपालन का ले संकल्प

वर्तमान परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए लोगों को चाहिए कि आज के दिन गोपालन का संकल्प लें। ऐसा करने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगीं। बेसहारा गायों को सहारा देकर उनके पालन का संकल्प लेना चाहिए। यह गोपालन हमारी संस्कृति का प्रतीक है। इनका सड़क में या अन्य स्थान में बेसहारा रूप में घूमना हमारी संस्कृति के लिए अच्छी बात नहीं है। अतः गोपाष्टमी के दिन पूजा अर्चना के साथ साथ है गौशाला में दान आदि करने की प्रवृत्ति रखें तथा संभव हो तो गोपालन के लिए प्रेरित होकर उनका संरक्षण भी करें। तभी भगवान श्रीकृष्ण हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे

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गोपा अष्टमी व्रत कथा

गोपाष्टमी व्रत का यह पर्व संपूर्ण भारतवर्ष में गौ सेवा के भाव को प्रकट करने का पर्व रहता है। भारतवर्ष में विशेष रुप से ब्रज, गोकुल, मथुरा, वृंदावन जैसे प्रसिद्ध स्थानों में यह पर बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। गोपाष्टमी के व्रत की कथा को सुनकर मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं गोपाष्टमी व्रत कथा के बारे में।

द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण मात्र 5 से 6 वर्ष के थे। तो वे अपनी यशोदा मैया से जिद करने लगे कि अब मैं बड़ा हो गया हूं, तथा मैं भी गायों को चराने के लिए जाना चाहता हूं। मैया यशोदा उनको छोटा होने का तर्क देकर समझाती रही परन्तु भगवान श्री कृष्ण अपनी जिद पर अड़े रहे। तब मैया यशोदा ने उनको कहा कि वह अपने नन्द बाबा को इस बारे में पूछ लें।

तब भगवान श्रीकृष्ण ने नंद बाबा को पूछा। नंद बाबा ने भी हमको बहुत समझाया परंतु वह नहीं माने। तब बाल हठ्ठ को जानकर नंद बाबा ने उनको गो चारण की अनुमति दे दी। परन्तु पहले ज्योतिषियों से गो चारण हेतु मुहूर्त पता करने के लिए गए।

तब नंद बाबा ने ज्योतिषियों के पास जाकर शुभ मुहूर्त के बारे में बात की। ज्योतिषियों ने उनको बताया कि आज ही शुभ मुहूर्त है। इसके बाद यह मुहूर्त्त 1 साल बाद ही हम आएगा। यह सब जानकर नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण को गौ चरण की अनुमति दे दी। यह गोपाष्टमी वही दिन है जब भगवान श्री कृष्ण ने गो चारण प्रारंभ किया था। इसी कारण इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है।

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