विवाह में विलम्ब योग एवं उपाय :- संसार के समस्त प्राणियों में मानव को श्रेष्ठ प्राणी कहा गया है क्योंकि सभी की अपेक्षा वह  सोचने समझने और कर्त्तव्य अकर्तव्य विवेक से सम्पन्न होता है। श्रेष्ठ जीवन यापन हेतु संस्कारों की सतत आवश्यकता होती है क्योंकि संस्कारों से ही मन के विकारों का उपशमन और गुणों का आधान सम्भव है। इसलिए हमारी शाश्वत सनातन संस्कृति में मुख्य रूप से सोलह संस्कारों का प्रतिपादन वेदव्यासादि ऋषियों ने किया है। इन संस्कारों में विवाह संस्कार का महत्वपूर्ण स्थान है। देव द्विज अग्नि इत्यादि को साक्षी मानकर वेदोक्त रीति से वर और कन्या का सम्बंध स्थापन करना विवाह कहलाता है।

यह भी पढ़े- मांगलिक दोष शांति के धर्मशास्त्रोक्त 07 अचूक उपाय

विवाह संस्कार के बाद पति-पत्नी के रूप में आजीवन एक अटूट पवित्र रिश्ता बन जाता है। इस संस्कार के बाद ही गृहस्थाश्रम में प्रवेश होता है इसलिए विशेष प्रकार और विशेष प्रयत्न से गृहस्थाश्रम सम्बन्धि कर्त्तव्य का वहन ही विवाह शब्द से अभिप्रेत है ।

ब्रह्मचर्यादि अन्य तीन आश्रमों का आधार विवाह संस्काराधारित गृहस्थाश्रम ही है। जिस प्रकार से वायु का आश्रय लेकर सभी प्राणी जीते हैं उसी प्रकार गृहस्थाश्रम का आधार लेकर बाकी तीन आश्रम चलते हैं। इस तरह से अप्रत्यक्ष रूप से विवाह संस्कार ही समस्त आश्रमों का मूलभूत कारण है। इसी विवाह संस्कार में कई जातकों को बहुत विलम्ब होता है जिसके ज्योतिषीय ग्रहयोगो का संक्षिप्त विवरण इस लेख में प्रस्तुत किया जा रहा है।

यह भी पढ़े- प्रबल और निर्बल मंगल दोष विचार

विवाग में विलम्ब योग एवं कारण

  • जिन जातकों के जन्माङ्ग चक्र में विवाह प्रतिबन्धक योग हो उनके विवाह में विलम्ब होता है ।
  • सप्तम स्थान से किसी भी प्रकार सम्बन्ध रखकर सूर्य शुक्र या चन्द्र शुक्र शनि अथवा अन्य किसी क्रूर ग्रह से युक्त या दृष्ट हों तो विवाह देरी से होता है ।
  • यदि प्रथम पंचम सप्तम भावों में बन्ध्या राशि अर्थात् मिथुन सिंह कन्या राशियां हों तो भी विवाह में विलम्ब होता है ।
  • सप्तमस्थ बुध शुक्र यदि शुभग्रह दृष्टि रहित हो तब भी विवाह विलम्ब से होता है।
  • त्रिकेश अर्थात् षष्ठ अष्टम द्वादश भावों का स्वामी यदि शुभ दृष्टि रहित सप्तम भाव में हो तो भी विवाह में विलम्ब करवाता है ।
  • सप्तमेश यदि त्रिकेश भी हो तब भी विवाह विलम्ब योग बनता है ।
  • सप्तम भाव में मंगल, शनि या सूर्य हो तो भी विवाह विलम्ब से होता है ।
  • द्वितीय तथा सप्तम भाव में पाप ग्रह रहने पर भी विवाह विलम्ब योग बनता है ।
  • शुक्र पापाक्रान्त हो या त्रिक स्थान में पाप ग्रह की राशि में अवस्थित हो तब भी विवाह विलम्ब से होता है ।

यह भी पढ़े-  मंगलदोष के परिहार एवं उपाय

पुरुष की कुंडली में विवाह विलम्ब योग होने पर क्या करें

योग कारक ग्रह का जप होम दानादि करने के साथ-साथ दुर्गा सप्तशती में कथित मन्त्र के सम्पुटित दुर्गा शत पाठ  करने चाहिए। मन्त्र निम्नोक्त है-

पत्नीम् मनोरमाम् देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।

तारिणीम् दुर्ग संसारसागरस्य कुलोद्भवाम् ।।       

स्त्री की कुंडली में विवाह विलम्ब योग होने पर क्या करें

स्त्री की कुंडली में इस योग के रहने पर श्रीमद्भागवतमहापुराणोक्त गोपियों द्वारा आचरित कात्यायनी अनुष्ठान करने से इस विलम्ब योग का निराकरण होता है। इसके अतिरिक्त कुलदेवता तथा गौरीशंकर के विधिवत् पूजन तथा व्रताचरण से भी विवाह के विषय में अभीष्ट सिद्धि होती है ।

इस प्रकार कुण्डली में विवाह विलम्ब योग होने पर ज्योतिषी के परामर्शानुसार समय पर विवाह संस्कार हेतु प्रयास करना चाहिए ।

साभार-

डॉ दीपकुमार

सहायकाचार्य‌‌‌, ज्योतिष विभाग

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय

वेदव्यास परिसर बलाहर, जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।

यह भी पढ़े-

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *