प्रकृति के रंग अपने संग- प्रकृति मनुष्य के जीवन का अथवा प्राणियों के जीवन का आधार है। मनुष्यों से इतर जो प्राणी है वह प्रकृति को अपनी समझ के अनुसार कभी हानि नहीं पहुंचाते मानो उन्हें ज्ञात रहता है कि प्रकृति हमारा आधार है। वह प्रकृति से उतना ही लेते हैं जितनी उनको आवश्यकता होती है और परोक्ष रूप से प्रकृति की सुंदरता को बनाए रखने में अपना सहयोग करते रहते हैं ।

दूसरी ओर मनुष्यों की बात की जाए तो वह आधुनिक काल में अपने जीवन को भागम भाग भरी दिनचर्या के साथ प्रारंभ कर अधिक काम के बोझ के तले दबाकर समाप्त कर देते हैं। फिर वही मनुष्य प्रकृति का प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूपों से भोग कर शोषण करते हैं और जब स्थिति चरम पर होती है तब हा-हाकार करने लगते हैं। अतः उपरोक्त चिन्तन कर हम प्रकृति का संरक्षण कैसे कर अपने आस-पास ही सुन्दर वातावरण का निर्माण कर सकते हैं।

प्रकृति के रंग 

उक्त लेख के माध्यम से यह जानने का प्रयास करते हैं कि प्रकृति के रंग हमारे संग कैसे हैं। मनुष्य आजीवन कुछ ना कुछ नया करने में प्रयासरत रहता है और यह एक अच्छी बात भी है। परंतु इस चकाचौंध में हम अपने मूल अस्तित्व को खोते चले जाते हैं। मनुष्य का अस्तित्व प्रकृति के बिना नहीं है। प्राकृतिक सौंदर्य मनुष्य की चिंतन शक्ति पर अपना प्रभाव डालता है। वर्तमान परिदृश्य को देखते हैं तो लोग अपने घरों से बाहर ना जाकर अपने घरों में ही आभासीय (वर्चुअल) दुनिया में रहने को विवश हो गए हैं। और भविष्य में भी अब लोग ऑनलाइन आदि माध्यमों से घर में बैठकर ही कार्य संपादित करेंगे इस प्रकार की स्थिति देखने में आ रही है। इस स्थिति में तो मनुष्य का प्रकृति के समीप रहना और ज्यादा अनिवार्य हो जाता है।

शोधकर्ताओं ने भी अनुसंधान कर यह बताया है कि “प्रकृति में कुछ इस तरह की शक्ति है जो मनुष्य के तनाव को कम करती है और उसको आनंद प्रदान करती है। जिससे वह सुखमय जीवन जीने के लिए प्रेरित होता है।” यही बातें भारतीय शास्त्रों में पुरातन काल में ही बता दी गई थी वहां पर मनुष्य का प्रकृति के साथ कैसा संबंध है इस प्रकार की विस्तृत चर्चा प्राप्त होती है।

कोरोना संकट में प्रकृति के लाभ

वर्तमान कोरोना संकट में हम सब अपने घरों से बाहर नहीं जा पा रहे हैं अथवा आवश्यकता अनुसार ही जा पा रहे हैं। तो इस प्रकार की परिस्थितियों में कैसे हम प्रकृति के समीप रहें ताकि हम तनाव रहित रहकर घर से भी ऑनलाइन आदि कार्य संपादित कर सकें और स्वयं तथा परिवार को स्वस्थ और खुशहाल जीवन व्यतीत करने में सहयोग प्रदान कर सकें। इसके लिए हमें अपने घर के प्रांगण में ही प्रकृति को लेकर आना पड़ेगा।

घर के प्रांगण में, बरामदे में, सीढ़ीयों में, ड्राईंग रूम में इत्यादि स्थानों पर हम फूलों के, हरे पत्तेदार पौधे, लताओं वाले पौधे, तुलसी के पौधे, अथवा छोटे परन्तु सुन्दर पौधों का अथवा आयुर्वेदिक पौधों का प्रयोग कर हम प्रकृति के समीप रह सकते हैं। जब हम इस प्रकार के सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाले प्राकृतिक वातावरण में रहेंगे तो हम तनाव रहित हो पाएंगे।

इम्यूनिटी में प्रकृति के फायदे

वर्तमान में इम्यूनिटी को लेकर वर्चुअल दुनिया में बहुत चर्चा हो रही है। जिसकी इस समय सबसे ज्यादा आवश्यकता भी है तो तो कैसे हम प्रकृति के समीप भी रहे और इम्युनिटी की दृष्टि से आयुर्वेदिक छोटे-छोटे पौधों को अपने प्रांगण के बगीचे में अथवा वाटिका में लगाएं। जैसे तुलसी का पौधा, पुदीने का पौधा, दालचीनी का पौधा, अश्वगंधा का पौधा, ऐसे अनेक पौधे हो सकते हैं जिनका प्रयोग हम अपनी इम्यूनिटी को बढ़ाने की दृष्टि से लगाकर उनके पत्तों का काढ़े में प्रयोग कर सकते हैं और इनको हम आसानी से उपलब्ध कर अपने घर की वाटिका में अथवा प्रांगण में गमलों में लगाकर प्रकृति के समीप रहते हुए शरीर के स्वास्थ्य का भी लाभ ले सकते हैं।

तुलसी
तुलसी

       फूल हमारे जीवन में प्रसन्नता भरने का काम करते हैं। फूलों को देख कर मन प्रसन्न होता है और जब मन प्रसन्न होता है तो हम तनाव से दूर रहते हैं और जब तनाव से दूर रहते हैं तो हम कई प्रकार की शारीरिक और मानसिक बीमारियों से दूर रहते हैं। अतः अपने घर के प्रांगण की वाटिका में हमें वातावरण अनुकूल सुंदर-सुंदर पुष्पों के पौधे लगाने चाहिए बहुत सारे पुष्पों के पौधे तो आयुर्वेदिक दृष्टि से लाभ कर होते हैं।

बहुत सारे क्षेत्रों में तो गुलाब की पंखुड़ियों को सुखाकर उसका प्रयोग चाय अथवा काहड़े में किया जाता है। अतः हम अपने प्रांगण में विविध प्रकार के गुलाब के पुष्प भी लगा सकते हैं। लाल, पीला, सफेद इत्यादि जिससे हमारे प्रांगण की सुंदरता भी बढ़ेगी और हम प्रकृति के समीप रहते हुए स्वस्थ और प्रसन्न जीवव का आनन्द ले सकेंगे। यह भी पढ़े- तुलसी एक फायदे अनेक

अतः हम अपने प्रांगण में विविध प्रकार के गुलाब के पुष्प भी लगा सकते हैं। लाल, पीला, सफेद इत्यादि जिससे हमारे प्रांगण की सुंदरता भी बढ़ेगी और हम प्रकृति के समीप रहते हुए स्वस्थ और प्रसन्न जीवव का आनन्द ले सकेंगे।

लेखक-

(डॉ. मुकेश शर्मा)

शिक्षा संकाय

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय

वेदव्यास परिसर बलाहर, कांगड़ा, (हि.प्र.)

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